Death Mystery: क्या डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की इस जहर को देकर हुई थी हत्या
लेकिन 23 जून 1953 को चिरनिद्रा में सोने वाले इस नेता की मौत क्या सिर्फ एक हादसा थी या इसके पीछे कोई और जिम्मेदार था। क्योंकि पं. जवाहर लाल नेहरू से मुखर्जी का विरोध जगजाहिर था। और मौत की परिस्थितियां भी अपने आप में एक रहस्य हैं
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत का रहस्य आज तक नहीं सुलझ सका है। जबकि जनता आज भी जानना चाहती है कि डॉ. मुखर्जी की मौत असली वजह क्या थी।
कहा जाता है कि डॉ. मुखर्जी को ‘पेनिसिलिन’ नामक दवा का डोज दिया गया। चूंकि इस दवा से मुखर्जी को एलर्जी थी, इसलिए यह उनके लिए जानलेवा साबित हुई।
कहा यह भी जाता है कि डॉक्टर इस बात को जानते थे कि यह दवा उनके लिए जानलेवा है। बावजूद इसके उन्हें यह डोज दिया गया।
लेकिन 23 जून 1953 को चिरनिद्रा में सोने वाले इस नेता की मौत क्या सिर्फ एक हादसा थी या इसके पीछे कोई और जिम्मेदार था। क्योंकि पं. जवाहर लाल नेहरू से मुखर्जी का विरोध जगजाहिर था।
लोगों ने उस समय आवाजें भी उठाई, लेकिन सरकार के सामने किसी की एक नहीं चली। और इस भयावह घटनाक्रम के प्रति पं. नेहरु का रवैया लोगों के गले के नीचे नहीं उतरा।
मौत का अनसुलझा रहस्य
आज 66 साल बीतने के बाद भी नतीजा सिफर है। उनकी मौत के रहस्य का खुलासा नहीं हो सका है जबकि वर्तमान में केंद्र की सत्ता खुद उनके अनुयायियों के हाथ में है।
इतने सालों बाद भी इस नेता की मौत के कारणों का किसी के पास जवाब न होना है एक गहरी और बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहा है। लेकिन सब खामोश है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में जन्म हुआ था। बंगाल में जन्म लेने वाले महानायकों में से एक थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी। राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से करने वाले डॉ. मुखर्जी देश के पहले उद्योग मंत्री भी रहे हैं।
कांग्रेस से निकलकर हिन्दू महासभा
बाद में शरणार्थियों और कश्मीर पर पं. जवाहर लाल नेहरू से अलग हो कर पहले वह हिन्दू महासभा में गए और बाद में भारतीय जनसंघ की नींव रखी, जो बाद में भाजपा बनी और जिसकी केंद्र में सरकार है।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल विधान परिषद में भी रहे लेकिन जल्द उनका मोहभंग हो गया। पहले उन्होंने विधान परिषद का पद और बाद में कांग्रेस को भी छोड़ दिया।
इसके बाद वह निर्दल चुनाव लड़े और जीते। वह चाहते तो किसी दूसरी पार्टी का दामन थाम सकते थे। प्राथमिक स्तर पर उन्होंने हिन्दू महासभा से जुड़ना पसंद किया। थोड़े ही समय में वह हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी बन गए।
पहले उद्योग मंत्री
1947 में देश आजाद होने के बाद जवाहरलाल नेहरु के नेतृत्व में नई सरकार बनी तो इस सरकार में उन्हें उद्योग और आपूर्ति विभाग की जिम्मेदारी मिली। इस पद पर रहकर उन्होंने भारत की पहली उद्योगनीति तैयार की। जो आगे चलकर मील का पत्थर साबित हुई।
इसी बीच 1950 के आसपास पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दुओं पर जानलेवा हमले शुरू हो गये। करीब 50 लाख हिन्दू पूर्वी पाकिस्तान को छोड़ भारत वापस आ गए। हिन्दुओं की हालत देखकर मुखर्जी चाहते थे कि देश पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए।
लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने इसे अनसुना कर दिया और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ समझौता कर लिया। जिसके तहत दोनों देश के शरणार्थी बिना किसी परेशानी के अपने-अपने देश आ जा सकते थे।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नेहरु जी की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत ही कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफ़ा देते ही वह शरणार्थियों की मदद में जुट गए।
जनसंघ का गठन
1951 में मुखर्जी ने ‘भारतीय जनसंघ‘का गठन किया। इसके पीछे सबसे खास वजह थी निजी स्वतंत्रता, क्योंकि उन्हें किसी के दवाब में रहना मंजूर नहीं था।
जनसंघ की स्थापना के साथ उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कांग्रेस की हर एक उस नीति का उन्होंने विरोध किया, जो देशहित में नहीं थी।
इसी बीच 1953 में जवाहरलाल नेहरु ने कश्मीर को एक अलग राज्य बनाने की ठान ली। मुखर्जी ऐसे किसी भी प्रयास के खिलाफ थे। वह इसे भारत में एकता के खिलाफ मानते थे। उन्होंने आर्टिकल 370 का बहिष्कार शुरू कर दिया। सड़क से लेकर सदन जमकर हंगामा हुआ।
अलग कश्मीर का विरोध
लेकिन नेहरू की जिद के आगे किसी की नहीं चली। आख़िरकार कश्मीर को अलग कर दिया गया. उसे अपना एक नया झंडा, नया संविधान, नई सरकार और प्रधानमंत्री का पद दे दिया गया।
एक नया कानून भी जिसके तहत कोई दूसरे राज्य का व्यक्ति वहां जाकर नहीं बस सकता। यह मुखर्जी के लिए बड़ा आघात था। वह एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे के नारे के साथ वह कश्मीर के लिए निकल पड़े।
पं. नेहरू को जैसे ही इस बात की खबर हुई तो उन्होंने हर हाल में डॉ. मुखर्जी को हर हाल में रोकने का आदेश जारी कर दिया। लेकिन श्यामा प्रसाद मुखर्जी गुप्त तरीके से कश्मीर में दाखिल हो गए। लेकिन सारी मशीनरी उनके खिलाफ थी उन्हें बिना इजाजत कश्मीर में घुसने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। एक अपराधी की तरह उन्हें श्रीनगर की जेल में बंद कर दिया गया।
बीमारी की खबरें
कुछ वक्त बाद उन्हें दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया गया। कुछ वक्त बाद उनकी बीमारी की खबरें आने लगीं। गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल ले जाया गया। यहीं पर संदिग्ध परिस्थितियों में यह नेता चिरनिद्रा में सो गया। उनकी मौत का रहस्य आज भी बरकरार है।
मुखर्जी की मौत की खबर उनकी मां को पता चली तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने नेहरु से गुहार लगाई कि उनके बेटे की मौत की जांच कराई जाये। पत्र भी लिखा लेकिन नेहरू ने इसे अनदेखा कर दिया।