मोदी सरकार ने बदला 50 साल पुराना कानून, अब भ्रष्ट कर्मचारियों की खैर नहीं
नई दिल्ली: केंद्र की मोदी सरकार ने 50 साल पुराने नियम को बदलते हुए अब अपने कर्मचारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच पूरी करने के लिए छह महीने की समय सीमा तय कर दी है। यह फैसला ऐसे मामलों की जांच में तेजी लाने के उद्देश्य से किया गया है। इनमें से अधिकतर मामले काफी समय से लंबित पड़े हैं।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने केंद्रीय लोक सेवाएं (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 में संशोधन किया है। जांच के महत्वपूर्ण चरणों और जांच प्रक्रियाओं के लिए समय सीमा का फैसला लिया है।
क्या है संशोधित नियम में
संशोधित नियम में कहा गया है कि जांच प्राधिकरण को छह महीने के भीतर जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट सौंप देनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि हालांकि, अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा लिखित में अच्छा और पर्याप्त कारण बताये जाने पर अधिकतम छह माह का जांच विस्तार दिया जा सकता है। इससे पहले जांच पूरी करने के लिए कोई समय सीमा नहीं होती थी।
चुनिंदा श्रेणियों को राहत
केंद्र सरकार का यह नया नियम अखिल भारतीय सेवाओं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेना (आईएफओएस) सहित कुछ अन्य श्रेणियों के अधिकारियों को छोड़कर सभी श्रेणी के कर्मचारियों पर लागू होगा।
सीवीसी ने दिया था निर्देश
गौरतलब है, कि हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों, बीमा कंपनियों और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों को निर्देश दिया था कि वे भ्रष्टाचार के लंबित मामलों की जांच में तेजी लाएं। बता दें कि सीवीसी सरकारी संगठनों में भ्रष्टाचार की शिकायतें जांच और रिपोर्ट के लिए संबंधित सीवीओ को भेजता है।
भ्रष्टाचार में रेलवे अव्वल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल की अपेक्षा 2016 में विभिन्न सरकारी विभागों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों में 67 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं, रेलवे भ्रष्टाचार की सूची में प्रथम स्थान पर है। संसद में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार निकाय को 2016 में 49,847 शिकायतें मिलीं, जबकि 2015 में मिली 29,838 शिकायतों से 67 प्रतिशत ज्यादा है।