# मुंबई की बारिश: 'आज भी कांप जाती है रूह जब पानी पर तैर रहे थे शव'

Update:2017-08-30 10:56 IST
# मुंबई की बारिश: 'आज भी कांप जाती है रूह जब पानी पर तैर रहे थे शव'

मुंबई: मायानगरी में हो रही लगातार बारिश और समुद्र से उठ रही ऊंची लहरों के बीच मर्चेंट नेवी अधिकारी कैप्टन शिवराज माने के दिलो दिमाग पर 26 जुलाई, 2005 की वह दुखद यादें कौंध जाती हैं, जब कुदरत के कहर ने देश की आर्थिक राजधानी को श्‍मशान बना दिया था।

करीब 12 साल पहले इसी दिन बादलों के रूप में बरसी आफत ने करीब 500 लोगों की जान ले ली थी। कुछ पानी से बचने के लिए गाड़ियों में बंद रहे लेकिन मौत ने उनका वहां भी पीछा नहीं छोड़ा। कुछ को बिजली का करंट लगा, तो कुछ गिरती दीवारों के नीचे दब गए। उस एक दिन में मुंबई में 94 सेंटीमीटर बारिश हुई थी

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पानी में जूझने वाला भी था बेबस

कैप्टन शिवराज माने के नौसेना में कार्यरत होने के कारण उन्हें पानी में जूझने की आदत थी। लेकिन निश्चित तौर पर उस दिन वह ऐसी हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं थे। माने का कहना था, कि उन दिनों के बारे में सोचकर आज भी उनकी रूह कांप उठती है।

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आज भी तस्वीरें तैरती हैं

शिवराज माने ने बताया, कि बिना सुरक्षा गियर के जलमग्न इलाके में वह एक भैंस पर चढ़कर आगे बढ़े और उन्होंने इस दौरान शवों को पानी में तैरते देखा। उनके दिमाग में कैद ये तस्वीरें आज भी उन्हें परेशान करती हैं। 31 वर्षीय इस नौसेना अधिकारी ने कहा, कि 'शहर में उस समय मौजूद अधिकतर लोगों को आज भी वह दिन याद है।'

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ढ़ाई घंटे के बदले ढ़ाई दिन में पहुंचे घर

माने ने बताया, 'कुछ आधिकारिक कार्यों के सिलसिले में उस दिन मैंने अंबरनाथ से नेरूल के लिए सुबह की लोकल ट्रेन ली, तो मानसून की बारिश अन्य दिनों की ही तरह मुंबई और ठाणे में हो रही थी।' माने के अनुसार, दोपहर तक उनका काम खत्म हो गया और वह करीब ढाई घंटे में घर पहुंच जाते, लेकिन उस बारिश में घर पहुंचने में उन्हें ढाई दिन लग गए।

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एहसास नहीं था कि बाहर क्या हो रहा

शिवराज ने बताया, 'मेरे पास पहले से बहुत काम था। इसलिए मुझे इस बात का एहसास नहीं था कि बाहर क्या हो रहा है। मुझे यह बाद में महसूस हुआ। मैंने हार्बर लाइन पर नेरूल रेलवे स्टेशन से ट्रेन ली लेकिन वह तिलकनगर तक ही गई, जबकि मुझे कुर्ला से ट्रेन बदलना था।'

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आगे दिखा तबाही का असल मंजर

शिवराज माने ने बताया, जब अन्य यात्रियों के साथ पैदल चलकर वो कुर्ला पहुंचे, तो उन्हें तबाही का असली मंजर देखने को मिला। रेलवे पटरी और प्लेटफार्म जलमग्न थे। वह किसी तरह ढाई दिन में अपने घर पहुंचे और इसे वह अपने जीवन का सबसे कठिन समय बताते हैं।

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