कैबिनेट में बदलाव समेत PM मोदी के एजेंडे पर कई सियासी फैसले

Update: 2017-08-11 09:58 GMT

नई दिल्ली: संसद का मानसून सत्र समाप्त होते ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। मोदी सरकार बनने के बाद यह तीसरा ऐसा अहम उलट फेर होगा जिसका पूरा फोकस 2019 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है। कुछ प्रदेशों में राज्यपालों की नियुक्ति के साथ ही पार्टी संगठन में भी नए बदलाव का भारी भरकम एजेंडा अगले कुछ सप्ताह के भीतर पूरा किया जाना है।

सरकार के कई अहम मंत्रालयों में दमदार चेहरे लाने के अलावा कैबिनेट के ऐेसे मंत्रियों जिनकी कार्यशैली को लेकर पीएमओ को लगातार शिकायतें मिलती रहीं और लक्ष्यों को प्राप्त करने में उनका रिकॉर्ड फिसड्डी साबित हुआ उनका हटना तय है। ऐसे नाम कम से कम आधे दर्जन से अधिक हो सकते हैं। लेकिन अच्छी परफॉरमेंस वाले ऐसे मंत्रियों को जो राज्य मंत्री हैं या स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री हैं। उनका प्रमोशन इस बार तय माना जा रहा है। गुजरात, कर्नाटक व हिमाचल में विधानसभा चुनावों को देखते हुए वहां के कुछ सांसदों को कैबिनेट में लेने पर विचार हो रहा है।

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2019 की तैयारी की बिसात बिछाने के साथ ही विकास के लक्ष्यों के हिसाब से चेहरे ढूंढ़े जा रहे हैं, ऐसी सूरत में कई युवा व नए चेहरों पर नजरें घुमाई जा रही हैं जो अपने-अपने राज्यों में लोकसभा चुनावों में प्रभावी साबित हो सकते हैं लेकिन ऐसे प्रदेशों में जहां 2014 के चुनावों में भाजपा अपनी बड़ी ताकत नहीं दिखा सकी वहां भविष्य में भाजपा का प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों के मद्देनजर कुछ चेहरों पर प्रयोग आजमाने की कोशिशें हो सकती हैं। ऐसे प्रदेशों में ओडिशा, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश व पूर्वोत्तर के राज्य भी शामिल हैं।

बिहार में बदले राजनीतिक घटनाक्रमों के तहत नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को प्रतिनिधित्व देने की पेशकश की भी चर्चा चल रही है लेकिन जदयू सूत्रों के अनुसार अभी नीतीश कुमार दिल्ली में समानांतर पावर सेंटर नहीं बनने देंगे, इसलिए वे अपनी पार्टी व भाजपा का तालमेल अभी बिहार तक ही सीमित रखना चाहेंगे। बिहार से केंद्रीय कैबिनेट में शामिल कुछ मंत्रियों की छुट्टी किए जाने की भी अटकलें लग रही हैं। कुछ चेहरों को सरकार से हटाकर पार्टी संगठन में लिया जाना है ताकि लोकसभा आम चुनावों के लिहाज से सरकार व संगठन में प्रभावी तालमेल सुनिश्चित हो सके।

मोदी के सामने अनुभवी व मंजे हुए चेहरों की सरकार व संगठन दोनों ही मोर्चों पर भारी किल्लत है। ऐसे में वेंकैया नायडु जैसे मंजे हुए चेहरे के उपराष्ट्रपति बन जाने के बाद कैबिनेट में उनकी कमी को पूरा करने की गंभीर कवायद चल रही है। उनके दोनों बड़े मंत्रालयों शहरी विकास व सूचना प्रसारण को अभी काम चलाने के लिए नरेंद्र सिंह तोमर व स्मृति ईरानी के जिम्मे सौंपा गया हैं। सबसे बड़ा सिरदर्द रक्षा मंत्रालय को लेकर है।

मनोहर पर्रिकर के गोवा का सीएम बनने के बाद इतने अहम मंत्रालय को अतिरिक्त प्रभार के तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली के कंधों पर डाला गया है लेकिन जेटली पहले से ही वित्त मंत्रालय व कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के बोझ से दबे हैं। चीन के साथ भूटान सीमा में डोक्लाम क्षेत्र में चल रहे तनाव को देखते हुए देश को एक पूर्णकालिक रक्षा मंत्री की सख्त जरूरत है।

इधर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के राज्यसभा सांसद बनने के बाद उनके केंद्र में मंत्री बनने की अटकलें लग रहीं हैं। लेकिन भाजपा सूत्रों का मानना है कि अभी गुजरात विधानसभा चुनावों में अमित शाह की पूरी मौजूदगी जैसे सवालों पर विचार के बाद ही प्रधानमंत्री मोदी उनके बारे में फैसला करेंगे। दूसरा यह कि उन्हें कैबिनेट में लेने का मतलब नए भाजपाध्यक्ष की तलाश करनी होगी।

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