देश में नहीं आएगा इस्‍लामिक बैंक, सबके लिए समान बैंकिंग सुविधा

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने देश में इस्‍लामिक बैंकिंग के प्रपोजल को स्वीकार नहीं करने का फैसला किया है। सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में केंद्रीय बैंक ने कहा कि सभी नागरिकों को बैंकिंग और अन्य वित्तीय सेवाओं की 'विस्तृत और समान अवसर' की सुलभता के मद्देनजर यह फैसला लिया गया।

Update: 2017-11-12 11:27 GMT
देश में नहीं आएगा इस्‍लामिक बैंक, सबके लिए समान बैंकिंग सुविधा

नई दिल्ली : रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने देश में इस्‍लामिक बैंकिंग के प्रपोजल को स्वीकार नहीं करने का फैसला किया है। सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी में केंद्रीय बैंक ने कहा कि सभी नागरिकों को बैंकिंग और अन्य वित्तीय सेवाओं की 'विस्तृत और समान अवसर' की सुलभता के मद्देनजर यह फैसला लिया गया।

क्या है इस्लामिक बैंकिंग ?

-इस्लामिक बैंकिंग ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जो ब्याज (इंट्रेस्ट) नहीं लेने के सिद्धांत पर चलती है।

-इस्‍लाम में ब्याज लेना हराम और प्रतिबंधित है।

आरटीआई के जवाब में क्या कहा गया ?

इस्लामिक व्यवस्था को लेकर आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब में केंद्रीय बैंक ने कहा कि सभी नागरिकों को बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं विस्तृत और समान रूप से उपलब्ध हैं। लिहाजा इस्लामिक बैंक को खोलने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। आरबीआई से देश में इस्लामिक या 'ब्याज मुक्त' बैंकिंग व्यवस्था कायम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी मांगी गई थी।

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कमेटी का गठन

पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को जन धन योजना की शुरुआत की थी। जिसका मकसद देश के सभी परिवारों को वित्तीय समावेशन के दायरे में लाना है। इससे पहले ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रणाली के मसले पर गंभीरता से विचार करने के लिए साल 2008 के अंत में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था।

ब्याज लेना देना 'नाजायज'

इस कमेटी ने देश में ब्याज मुक्त बैंकिग प्रणाली के मुद्दे पर गंभीरता से सोचने की जरूरत पर जोर दिया था। कमेटी ने कहा कि कुछ धर्म ब्याज लेने-देनेवाले वित्तीय साधनों के इस्तेमाल को नाजायज ठहराते हैं। ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रॉडक्ट्स नहीं होने की वजह से कुछ भारतीय धर्म के कारण बैंकिंग प्रॉडक्ट्स और सर्विसेज का इस्तेमाल नहीं करते हैं। इनमें समाज की आर्थिक रूप से पिछड़ी आबादी भी शामिल है।

बाद में केंद्र सरकार के निर्देश पर आरबीआई में एक इंटर-डिपार्टमेंटल ग्रुप (आईडीजी) गठित कर दिया गया। इस ग्रुप ने देश में ब्याज मुक्त बैंकिंग प्रणाली शुरू करने के कानूनी, तकनीकी और नियामकीय पहलुओं की जांच कर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। आरबीआई ने पिछले साल फरवरी महीने में आईडीजी रिपोर्ट की एक कॉपी वित्त मंत्रालय को भेज दी और धीरे-धीरे शरिया के मुताबिक बैंकिंग सिस्टम शुरू करने के लिहाज से तत्काल परंपरागत बैंकों में ही एक इस्लामिक विंडो खोलने का सुझाव दिया।

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मंत्रालय को लिखी एक चिट्ठी में आईडीजी ने क्या कहा ?

सरकार की ओर से जरूरी अधिसूचना जारी करने के बाद शुरुआत में परंपरागत बैंकों के इस्लामिक विंडो के जरिए परंपरागत बैंकिंग प्रॉडक्ट्स के तरह ही कुछ सामान्य प्रॉडक्ट्स लाने पर विचार किया जा सकता है।

चिट्ठी में कहा गया कि हमें यह भी लगता है कि फाइनैंशल इनक्लूजन के लिए ब्याज मुक्त बैंकिंग में प्रॉडक्ट्स को शरिया नियमों के तहत प्रमाणित करने की सही प्रक्रिया अपनाने की जरूरत होगी।

इसमें जमा धन और कर्ज, दोनों समाहित होंगे और इन्हें दूसरे फंड्स के साथ मिलाया नहीं जा सकता। ऐसे में ब्याज मुक्त बैंकिग के लिए एक अलग विंडो की जरूरत होगी।'

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