LG को तय समय में निपटानी होगी दिल्ली सरकार की फाइलें : SC

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) को दिल्ली सरकार की ओर से भेजी गई फाइलों को निपटाने के लिए समय सीमा तय करने और देरी होने पर उसकी वजह बताने की ओर इशारा किया।

Update:2017-11-03 04:15 IST
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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) को दिल्ली सरकार की ओर से भेजी गई फाइलों को निपटाने के लिए समय सीमा तय करने और देरी होने पर उसकी वजह बताने की ओर इशारा किया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.के. सीकरी, जस्टिस ए.एम. खानविल्कर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने कहा कि प्रारंभिक अवलोकन से यह सामने आया है कि दिल्ली के लोकतांत्रिक शासन की पूरी योजना का दायित्व उपराज्यपाल का बनता है।

पूरे दिन चली सुनवाई में दिल्ली सरकार की ओर से नियुक्त शीर्ष वकील गोपाल सुब्रमण्यम से न्यायधीशों ने कई सवाल पूछे। सुब्रमण्यम ने अपनी दलील में कहा कि 'उपराज्यपाल कामकाज करने के दौरान अपनी ताकत का इस्तेमाल किसी चुने हुए लोकतांत्रिक सरकार की तरह करते हैं।'

बहस से यह सामने आया कि दिल्ली सरकार कानून व्यवस्था, पुलिस व जमीन और ऐसे क्षेत्र जहां कानून लागू करने, सहायता करने और उपराज्यपाल की सलाह की जरूरत है, उन मामलों में दखल नहीं दे सकती। उपराज्यपाल अपने वीटो का इस्तेमाल कर सकते हैं और मतभेद का हवाला देकर मुद्दे को राष्ट्रपति के पास निर्णय के लिए भेज सकते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं, जिनमें दिल्ली सरकार के पास कोई अधिकार नहीं है।

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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्रपति केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपालों के जरिए अपना शासन चलाते हैं और अगर इसमें अतिक्रमण होता है तो कोर्ट उस मामले को देख सकती है।

जस्टिस भूषण ने भी सुब्रमण्यम से ऐसे विशिष्ट उदाहरण पेश करने के लिए कहा, जिससे लगता हो कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की राह में आकर खड़े हो गए हैं। सुब्रमण्यम ने कोर्ट को ऐसे उदाहरण गिनाए, जिसमें उपराज्यपाल संबंधित मंत्रियों की गैर मौजूदगी में अधिकारियों के साथ बैठक कर निर्देश जारी कर देते हैं।

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उन्होंने यह भी कहा कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की ओर से भेजी गई फाइलों का निपटारा नहीं कर रहे हैं और कुछ मामलों में तो एक साल से ज्यादा समय से उपराज्यपाल फाइलों को दबाकर बैठे हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण फाइल, जिसमें न्यूनतम मजदूरी 9000 से बढ़ाकर 15,000 करना है, वह भी उपराज्यपाल के पास लंबित है।

संवैधानिक पीठ दिल्ली सरकार के दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा खारिज की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा है। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार की अपील को खारिज करते हुए राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक निर्णय लेने में उपराज्यपाल की सर्वोच्चता बरकरार रखने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को करेगा।

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