सरकार सख्त, सार्वजनिक निर्माण विभाग के 22 इंजीनियर बर्खास्त
प्रदेश सरकार ने लोकनिर्माण विभाग के 22 इंजीनियरों को बर्खास्त कर दिया है। बर्खास्त किए गए इंजीनियरों में 16 जूनियर इंजीनियर और छह सहायक व अधिशासी अभियंता शामिल हैं।
लखनऊ: प्रदेश सरकार ने लोकनिर्माण विभाग के 22 इंजीनियरों को बर्खास्त कर दिया है। बर्खास्त किए गए इंजीनियरों में 16 जूनियर इंजीनियर और छह सहायक व अधिशासी अभियंता शामिल हैं। अपर मुख्य सचिव लोकनिर्माण विभाग सदाकांत ने इंजीनियरों को बर्खास्त करने की पुष्टि की है। अभी 273 पर कभी भी गाज गिर सकती है।
प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप में लोक निर्माण विभाग के 550 से ज़्यादा अफसरों पर कार्रवाई की तैयारी की है। स्क्रीनिंग के बाद लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) के 273 अफसरों पर जबरन रिटायरमेंट की गाज गिराने जा रही है। अधिशासी अभियंता, सहायक अभियंता और अवर अभियंता को बाहर का रास्ता दिखाए जाने के अलावा 286 अफसरों के खिलाफ विभागीय कार्यवाई की संस्तुति करते हुए शासन को रिपोर्ट भेजी गई है। इस बारे में न्यूज़ ट्रैक ने कल ही खबर प्रकाशित की थी।
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अपर मुख्य सचिव लोकनिर्माण ने बताया कि इन इंजीनियरों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई और भ्रष्टाचार आदि के मामले काफी समय से लंबित थे, जिसके आधार पर विभागीय स्क्रीनिंग कमेटी ने इनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की। इस आधार पर उनको बर्खास्त करने की कार्रवाई की गई है। इनमें 50 साल से अधिक आयु के इंजीनियर भी हैं।
खास बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शासन के 94 विभागों से 50 साल से अधिक आयु के लापरवाह और भ्रष्ट तथा खराब रिकार्ड वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने या बर्खास्त करने की कार्रवाई करके रिपोर्ट मांगी थी। कार्रवाई के लिए हर विभाग में स्क्रीनिंग कमेटी बनाई गई है। स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश पर ही विभाग कार्रवाई करके रिपोर्ट शासन को सूचनार्थ भेज रहे हैं। पिछले दिनों रिपोर्ट नहीं भेजने पर शासन ने अफसरों को फटकार भी लगाई थी।
इसके साथ ही इस रिपोर्ट को देने के लिए कई बार मुख्य सचिव राजीव कुमार और अपर मुख्य सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक दीपक त्रिवेदी ने अंतिम तारीख बढ़ा दी थी। अब आज यानी मंगलवार को अंतिम तारीख है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 50 साल से अधिक आयु के नकारा, भ्रष्ट और खराब रिकार्ड वाले अफसरों व कर्मचारियों को जबरिया रिटायर करने का शासनादेश 1985 का है, लेकिन पहली बार इस मामले में किसी सरकार ने सख्ती की है।