15 August 2023: शहीद भगत सिंह की अनसुनी कहानी, देखिये उस जेल की तस्वीर जहाँ उन्होंने बिताये थे अपने आखिरी पल
15 August 2023: आज हम भगत सिंह के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे पन्नों को आपके सामने रखेंगे जिसके बारे में कम ही जिक्र होता है। साथ ही आपको उस जेल के बारे में भी बताएँगे जिसमे भगत सिंह ने अपने ज़िन्दगी के आखिरी पल बिताये थे। वो आज भी वहीँ है।
15 August 2023: अमर शहीद भगत सिंह का नाम सुनकर आपका मन भी जोश से भर जाता होगा। उन्हें भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से एक माना जाता रहा है। उनके त्याग और बलिदान की कहानी तो हम सबको बखूबी पता है। लेकिन उन्होंने हमारे देश के लिए और क्या क्या त्याग किये वो शायद बहुत कम लोगों को पता होंगें। भगत सिंह की कहानी को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने भी कई बार बड़े पर्दे पर उकेरने की कोशिश की। वो काफी हद तक इसमें कामयाब भी हुए। लेकिन आज हम भगत सिंह के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे पन्नों को आपके सामने रखेंगे जिसके बारे में कम ही जिक्र होता है। साथ ही आपको उस जेल के बारे में भी बताएँगे जिसमे भगत सिंह ने अपने ज़िन्दगी के आखिरी पल बिताये थे। वो आज भी वहीँ है।
अमर शहीद भगत सिंह की अनसुनी कहानी
भगत सिंह को आज़ादी के दीवाने के नाम से भी जाना जाता है जिन्होंने महज़ 23 साल की उम्र में हँसते हुए फांसी के फंदे पर झूल जाना कबूल किया लेकिन गोरों की एक भी चाल नहीं चलने दीं। उन्होंने 116 दिनों तक बिना कुछ खाये या कुछ पिए बिताये थे जिससे घबराकर अंग्रेज़ों ने उन्हें ज़बरदस्ती खाना खिलाने और दूध पिलाने की भी कोशिश की थी। भगत सिंह एक कुशल वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। इतना ही नहीं उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में संपादन भी किया है।
ऐसे बीता था भगत सिंह का बचपन
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान) के बंगा में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। जब उनका जन्म हुआ था तब उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजीत और स्वर्ण सिंह 1906 में लागू किए गए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन के चलते जेल में थे। उन्हें हमेशा से ही पाने घर पर ही देश भक्ति का माहौल मिला था। इसी चिंगारी के साथ उन्होंने अपना बचपन जिया। भगत सिंह ने अपनी पांचवीं तक पढ़ाई अपने गांव में ही थी। इसके बाद वो लाहौर के दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में चले गए। भगत सिंह ने छोटी उम्र में ही महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन का पूरी निष्ठा के साथ पालन करना शुरू कर दिया था।
भगत सिंह जब बीए कर रहे थे तभी उनके पिता ने उनकी शादी की बात के लिए प्रस्ताव भगत के सामने रखा लेकिन उन्होंने साफ़ कह दिया कि वो गुलाम-भारत में विवाह नहीं करेंगे और ऐसे में उनकी दुल्हन केवल मृत्यु होगी।
भगत सिंह ने हमेशा ही खुले तौर पर अंग्रेजों का विरोध किया और अंग्रेज़ों की प्रायोजित पुस्तकों को जलाकर गांधी की इच्छा का पालन करते थे। उनका पूरा परिवार भी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए महात्मा गाँधी के अहिंसक दृष्टिकोण वाली विचारधारा का समर्थन किया था। इतना ही नहीं भगत सिंह ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और असहयोग आंदोलन का पुरज़ोर तरीके से समर्थन किया था। लेकिन जब चौरी चौरा कांड के बाद, गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लिया तो भगत सिंह इस निर्णय से बेहद नाखुश हुए जिसके बाद उन्होंने गाँधी जी की अहिंसक विचारधारा से खुद को अलग कर लिया। इसके बाद वो युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हुए। इन सबके बाद अंग्रेज़ों के खिलाफ भगत सिंह ने हिंसक विद्रोह के सबसे प्रमुख अधिवक्ता के रूप में देश की स्वतंत्रता की लड़ाई शुरू की।
देश में हुए कई हिंदू-मुस्लिम दंगों और अन्य धार्मिक प्रकोपों को अपनी आँखों से देखने के बाद भगत सिंह नास्तिक हो गए थे। लेकिन उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा दिया और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के युद्ध के नारे के रूप में बदल दिया।
वो जेल जिसमे भगत सिंह ने गुज़ारे थे अपने आखिरी पल
भगत सिंह ने अंग्रेज़ों की संसद में बम विस्फोट किया जिसके बाद उन्हें पकड़ लिया गया और फांसी की सजा सुनाई गयी। लेकिन इसके पहले उन्हें जिस जेल में रखा गया था वो जेल आज भी है। 23 मार्च 1931 को क्रांतिकारी भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरू को एक साथ फांसी दे दी गयी। लेकिन उसके पहले उन्हें कुछ दिन जेल में रखा गया था। आज भी वो जेल वैसे ही है। दरअसल भगत सिंह को 14 जून 1929 और उनके साथियों को जेल में बंद किया गया था।
आज भी ये जेल भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू के बलिदान और अंग्रेज़ों के अत्याचारों को आज भी बयां करती है। जेल से ही भगत सिंह ने अपने भाई को एक पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने अपने अंदाज़ में लिखा," ‘उसे यह फिक्र है, हरदम नया तर्ज-जफा क्या है, हमें यह शौक है, देखें सितम की इन्तेहा क्या है।’ ये उनके द्वारा लिखा आखिरी शेर था जो 3 मार्च, 1931 को लिखा था।
भगत सिंह अपनी माँ विद्यावती जी के अलावा भी किसी को बेबे कहकर बुलाया करते थे। उन्होंने अपने जीवन के कुछ साल जेल में बिताये थे जहाँ वो जेल में 'बोघा' नाम के सफाई करने वाले को अपनी बेबे का दर्जा देते थे। दरअसल 'बोघा' वो व्यक्ति था जो जेल में अंग्रेज़ों के अत्याचारों के बाद कैदियों के मल मूत्र होने पर उसे साफ़ किया करता था। वहीँ भगत सिंह बेहद प्यार से उन्हें बेबे बोलते थे। जबकि 'बोघा' उन्हें इसके लिए मना करता था। भगत सिंह 'बोघा' से कहते,बेबे मेरा मन करता है कि तुम एक दिन मुझे अपने हांथों से रोटियां बनाकर खिलाओ।" इसपर 'बोघा' उन्हें मना करता था उसका कहना था कि, आप ऊँची जाति के हैं और में एक भंगी जाति का हूँ।
आप मेरे हाँथ से कुछ भी नहीं खा सकते।" इसपर भगत सिंह उन्हें अपने गले लगा लिया करते थे। एक बार भगत सिंह से उनके साथियों ने पूछी कि 'बोघा' उनकी बेबे कैसे है और वो उसको बेबे क्यों बुलाते हैं? इसपर भगत सिंह ने कहा कि,"जैसे बचपन में उनकी बेबे उनका मॉल मूत्र साफ़ किया करतीं थीं वैसे ही 'बोघा' भी उनका मल मूत्र साफ़ करता है। ये सुनकर 'बोघा' भावुक हो गए और उनकी आंखें भर आईं। इसके बाद 'बोघा' ने भगत सिंह के लिए रोटियां बनाई और अपने हांथों से खिलाई भी। जिसके बाद भगत सिंह भी उन्हें गले लगाकर काफी भावुक हो गए।