15 August 2023: कैसे बनें विनायक दामोदर वीर सावरकर, जानिए कैसे उन्होंने जेल में बिताये इतने दिन
15 August 2023: क्या आप जानते हैं कि विनायक दामोदर कैसे वीर सावरकर बनें। उन्होंने अपने जीवन में अंग्रेज़ों की क्या क्या यातनाएं झेलीं? आज हम आपको उनके विनायक दामोदर से वीर सावरकर बनने की कहानी बताने जा रहे हैं।
15 August 2023: विनायक दामोदर सावरकर की कहानी आज भले ही इतिहास के पन्नों में है लेकिन उनकी यादें और त्याग की कहानी को हर एक सच्चा हिंदुस्तानी आज भी गर्व से याद करता है। उन्होंने अंग्रेज़ों की वो यातनाएं झेलीं जिन्हे सुनकर ही हमारी रूह काँप जाये। देश की आज़ादी में विनायक दामोदर सावरकर की काफी अहम भूमिका है। क्या आप जानते हैं कि विनायक दामोदर कैसे वीर सावरकर बनें। उन्होंने अपने जीवन में अंग्रेज़ों की क्या क्या यातनाएं झेलीं? आज हम आपको उनके विनायक दामोदर से वीर सावरकर बनने की कहानी बताने जा रहे हैं।
विनायक दामोदर से वीर सावरकर बनने की कहानी
सावरकर पर अंग्रेज़ों ने कई तरह के आरोप लगाए थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। साल 1909 में उनपर कई अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्याओं की प्लानिंग करके हिंदुस्तान से ब्रिटिश सरकार की जड़ों को उखाड़ फेंकने की साज़िश करने के कई आरोप लगाए थे। जिसके बाद उन्हें 25-25 साल की सजा के दो टर्मों के साथ अंडमान द्वीप समूह में सेल्यूलर जेल भेजा गया। जिसे पहले काला पानी की सजा के तौर पर देखा जाता था। ये सजा और यहाँ की जेल को सबसे क्रूर सज़ा और जेल में से एक माना जाता था। वहीँ अगर इस सजा का किसी भी तरह से कोई भी उल्लंघन होता था तो इसपर कड़ी से कड़ी सज़ा का भी प्रावधान था। ब्रिटिश सरकार के अनुसार सावरकर ने जेल से अधिकारीयों को कई पत्र लिखे जिसके बाद उन्हें जनवरी 1924 को सशर्त रिहा किया गया। जिसमे ये कहा गया कि वो रत्नागिरी जिले में ही निवास करेंगे और राजनीति में किसी भी तरह से भाग नहीं लेंगे। लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई थी इसका आज तक कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है।
हिंदुस्तान के महान क्रांतिकारी और विचारक वीर सावरकर ने देश की आज़ादी के लिए काफी संघर्ष किया। उन्होंने अपने जीवन के 10 साल कड़ी यातना के बिताए थे, आज भी आपको वहां आज इसके निशान मिल जायेंगे। जिस जेल में सावरकर को रखा गया था उसमे 694 कोठरियां थीं। यहाँ की कुछ कोठरियों में तो सूरज की रोशनी तक नहीं आती थी। अंडमान निकोबार की इस जेल में दूर दूर तक सिर्फ समुद्र का पानी ही पानी था। उन्हें महाराष्ट्र के नासिक जिले के तत्कालीन कलेक्टर जैक्सन की हत्या की साज़िश करने के आरोप में दोषी पाया गया था।
यहाँ कैदियों को कोल्हू में बैल की तरह जोता जाता था। वीर सावरकर को इस सेल्युलर जेल में नारियल के छिलकों से तेल निकालने के लिए कोल्हू के बैल की तरह जोता जाता था। जेल के आस पास दलदली ज़मीन भी थी। वीर सावरकर से उसकी सफाई और ऊँची नीची भूमि को समतल करने का काम भी करवाया जाता था। इसपर अगर वो थोड़ी देर आराम करने बैठ जाते तो उन्हें बेंत व कोड़ों से पीटा जाता था। उन्हें ये तक नहीं पता होता था कि उनके बगल में कौन सा कैदी कैद है। उन्हें आदमियों की शक्ल भी इन कोठरियों में नहीं दिखती थी। इसका एक सबूत है कि सावरकर को जिस कोठरी में कैद किया गया था उससे कुछ दूर पर ही एक कोठरी में उनके सगे भाई को रखा गया था लेकिन इसके बारे में उन्हें ज़रा सी भी भनक नहीं होने दी।
कैदियों को उसी जेल में मल मूत्र त्यागना होता था और वहीँ उन्हें रहना भी होता था। इतना ही नहीं इसे साफ़ करने भी कोई वहां नहीं आता था। 15 गुना 8 फीट की इन कोठरियों में 3 मीटर की ऊंचाई पर एक रोशनदान था। यहाँ से बस समुद्र ही दिखाई देता था। इतना ही नहीं जेल के चारों और या तो भयानक दल दल थी या फिर समुद्र। जिससे भागने के बारे में कोई कैदी सोच भी नहीं सकता था। ऐसे में सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की इस भयावह कोठरी में रहे थे। जिसके बारे में कल्पना करना भी आपकी रूह कंपा देगी।