Hemu Vikramaditya Ki Kahani: हेमू विक्रमादित्य, एक वीर योद्धा और भारत का भूला हुआ सम्राट

Hemu Vikramaditya History In Hindi: हेमू एक हिंदू योद्धा थे, जिन्होंने अपने बलबूते पर दिल्ली की सत्ता हासिल की थी। हालांकि उनका शासनकाल बेहद अल्पकालिक रहा था। आइए जानते हैं इस महान योद्धा के बारे में।;

Written By :  Akshita Pidiha
Update:2025-02-18 14:53 IST

Hemu Vikramaditya (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Hemu Vikramaditya Kon The: भारत के इतिहास में अनेक योद्धाओं ने अपने शौर्य, वीरता और नेतृत्व क्षमता से पहचान बनाई। उन्हीं में से एक थे हेमू विक्रमादित्य, जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर बैठकर हिंदू शासन की पुनर्स्थापना की थी। वे भारतीय इतिहास के उन चुनिंदा योद्धाओं में से थे, जिन्होंने अपने बलबूते पर सत्ता हासिल की और अपने शासनकाल में महत्वपूर्ण सुधार किए। हालांकि, उनका शासनकाल बेहद अल्पकालिक रहा, लेकिन उनका योगदान भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय है।

हेमू का प्रारंभिक जीवन (Hemu Vikramaditya Life Story In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हेमू का जन्म 1501 ईस्वी के आसपास हुआ था। उनके जन्म स्थान को लेकर मतभेद हैं, लेकिन अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि वे हरियाणा के रेवाड़ी या राजस्थान के किसी स्थान पर जन्मे थे। हेमू का जन्म एक हिंदू बनिया परिवार में हुआ था, जो व्यापार से जुड़ा हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मध्यमवर्गीय थी, और उनका प्रारंभिक जीवन साधारण व्यापारी जैसा ही था।

हेमू का प्रारंभिक जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने सब्जियां और साल्टपीटर (पोटैशियम नाइट्रेट) बेचा, लेकिन कृषि उत्पादन में लगातार गिरावट के कारण उन्होंने यह व्यवसाय छोड़ दिया। धीरे-धीरे उनकी रुचि सैन्य सेवाओं और युद्ध कला में विकसित हुई।

व्यापारिक कार्यों से जुड़े होने के कारण हेमू को प्रशासनिक कार्यों की अच्छी समझ थी। वे धीरे-धीरे सैन्य रणनीतियों में भी रुचि लेने लगे और अपने कौशल से उन्होंने खुद को एक कुशल प्रशासक और सेनापति के रूप में स्थापित किया।हेमू की शिक्षा तुलनात्मक रूप से सीमित थी, लेकिन वे युद्ध और प्रशासन की कला में निपुण थे।

हेमू का उदय और सूरी साम्राज्य में योगदान (Hemu Vikramaditya And Suri Empire)

हेमू का असली प्रभावशाली करियर तब शुरू हुआ जब वे सूरी वंश के अधीन कार्य करने लगे। शेरशाह सूरी के निधन के बाद उनके पुत्र इस्लाम शाह सूरी ने शासन किया। इस्लाम शाह ने हेमू की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रशासनिक तथा सैन्य कार्यों में बड़ी जिम्मेदारियाँ दीं। इस्लाम शाह सूरी के बाद आदिल शाह सूरी गद्दी पर बैठा, लेकिन वह शासन में कमजोर था। उसने हेमू को प्रधानमंत्री और सेनापति बना दिया और राज्य की वास्तविक सत्ता हेमू के हाथों में आ गई।

हेमू ने अपने कुशल नेतृत्व में 22 से अधिक युद्ध जीते, जिनमें अफगानों और कई अन्य विरोधी शक्तियों को हराया। उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल ने उन्हें उस समय के सबसे प्रभावशाली हिंदू योद्धाओं में से एक बना दिया।

दिल्ली की विजय और "विक्रमादित्य" की उपाधि

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1556 में मुगल सम्राट हुमायूं की अचानक मृत्यु हो गई, जिससे दिल्ली का शासन कमजोर हो गया। हेमू ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए दिल्ली पर आक्रमण करने की योजना बनाई। 7 अक्टूबर 1556 को हेमू ने दिल्ली पर चढ़ाई की और मुगल सेनाओं को हराकर राजधानी पर कब्जा कर लिया। जीत के बाद हेमू ने खुद को "विक्रमादित्य" की उपाधि दी और दिल्ली के सिंहासन पर बैठ गए। इस विजय के बाद वे पूरे उत्तर भारत के शासक बन गए और लगभग एक महीने तक दिल्ली पर शासन किया।

1556 में हुमायूं की मृत्यु के बाद, मुगलों ने अकबर को अपना नया शासक घोषित कर दिया। हेमू ने इसे एक स्वर्णिम अवसर समझा और बंगाल से दिल्ली की ओर कूच किया। उन्होंने इटावा, संभल, कालपी, नरूला और आगरा जैसे मुगल नियंत्रित शहरों पर कब्जा कर लिया। 7 अक्टूबर 1556 को उन्होंने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और तुगलकाबाद के किले में अपना शासन स्थापित किया। इस युद्ध में लगभग 3,000 मुगल सैनिक मारे गए। हेमू ने शाही छत्र के नीचे दिल्ली में विजयी प्रवेश किया, और समर्थकों ने उनके सम्मान में एक राजकीय छत्री का निर्माण किया।

पानीपत का दूसरा युद्ध (5 नवंबर 1556) और हेमू की हार

दिल्ली पर हेमू का कब्जा ज्यादा दिनों तक नहीं रह सका क्योंकि मुगल सेनापति बैरम खान ने अकबर के नेतृत्व में उन्हें चुनौती दी। अकबर उस समय केवल 13 वर्ष का था, लेकिन बैरम खान ने उसकी ओर से सेना की बागडोर संभाल ली। 5 नवंबर 1556 को हरियाणा के पानीपत में मुगलों और हेमू की सेना के बीच निर्णायक युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान हेमू ने जबरदस्त संघर्ष किया और उनकी सेना ने शुरुआत में मुगलों को कड़ी टक्कर दी। युद्ध के दौरान एक तीर हेमू की आंख में आ लगा, जिससे वे बेहोश होकर गिर पड़े। उनके गिरते ही उनकी सेना में अफरा-तफरी मच गई और मुगल सेना ने इस मौके का फायदा उठाकर हेमू की सेना को पराजित कर दिया।

अकबर को विजेता घोषित करने के लिए बैरम खान ने हेमू को बंदी बना लिया और फिर उसे मौत के घाट उतार दिया। बेहोशी की स्थिति में हेमू को बंदी बना लिया गया। बैरम खान ने अकबर को निर्देश दिया कि वह खुद हेमू का सिर काटकर युद्ध जीतने का श्रेय ले, लेकिन अकबर ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद बैरम खान ने स्वयं हेमू की हत्या कर दी और उनकी कटे हुए सिर को काबुल भेज दिया जबकि उनके धड़ को दिल्ली के पुराना किला के बाहर लटका दिया गया।

हेमू की वीरता और प्रशासनिक नीतियाँ

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

हेमू सिर्फ एक योद्धा ही नहीं बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे। उन्होंने अपने छोटे शासनकाल में प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत किया। वे हिंदू शासन की पुनर्स्थापना करना चाहते थे और इसलिए उनके शासनकाल को हिंदू पुनर्जागरण का प्रतीक भी माना जाता है। हेमू ने कानून व्यवस्था में सुधार किए और जनता के कल्याण के लिए कार्य किए।

हेमू को भारतीय इतिहास में अपेक्षित पहचान नहीं मिली, लेकिन वे भारत के महानतम योद्धाओं में से एक थे। उन्होंने विदेशी मुगलों के शासन के खिलाफ हिंदू सत्ता स्थापित करने की कोशिश की। उनका जीवन संघर्ष, वीरता और बलिदान की गाथा है, जो आज भी प्रेरणा देता है। उन्हें भारतीय इतिहास में उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली जितनी अकबर या अन्य मुगल शासकों को मिली, लेकिन वे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं।

हेमू विक्रमादित्य भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय योद्धा, रणनीतिकार और प्रशासक थे। उन्होंने एक सामान्य व्यापारी से राजा तक का सफर तय किया। वे भारत में हिंदू सत्ता को पुनर्जीवित करने वाले अंतिम हिंदू सम्राटों में से एक थे। उनकी वीरता, सैन्य कौशल और नेतृत्व क्षमता इतिहास में अमर रहेगी।

हेमू का बलिदान यह दिखाता है कि भारत में सदियों से विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ने की परंपरा रही है और देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने वालों की कभी कमी नहीं रही।

आज भी हेमू की कहानी हमें प्रेरणा देती है कि साहस, दृढ़ संकल्प और नेतृत्व से कोई भी असंभव को संभव बना सकता है।

हेमचंद्र विक्रमादित्य भारतीय इतिहास में एक असाधारण योद्धा और प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन में 22 युद्ध जीते और कभी हार नहीं मानी। वे भारत में हिंदू शासन की पुनर्स्थापना करने वाले अंतिम हिंदू राजा थे। उनकी वीरता, सैन्य कौशल और नेतृत्व क्षमता इतिहास में हमेशा प्रेरणादायक रहेगी।

इतिहासकारों का मानना है कि अगर हेमू कुछ और वर्षों तक जीवित रहते, तो भारत में मुगलों की जगह हिंदू राज्य की नींव रखी जा सकती थी। हेमू भारतीय इतिहास के उन महान योद्धाओं में से एक थे, जिनकी सैन्य प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता और निडरता इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।

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