Garima Ke Sath Marne Ka Adhikar: गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार चर्चा में क्यों है, क्या है इसका मतलब और क्या होंगे इसके परिणाम
Right to Die With Dignity Kya Hai: ‘गरिमा के साथ मृत्यु’ का अधिकार लागू करने वाला कर्नाटक भारत का पहला राज्य बन गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में सभी जानकारी।;
Right to Die With Dignity (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Right to Die With Dignity Kya Hai: मृत्यु एक अपरिहार्य सत्य है। लेकिन क्या किसी व्यक्ति को यह अधिकार होना चाहिए कि वह गरिमा के साथ अपनी मृत्यु को चुन सके? यह प्रश्न लंबे समय से नैतिक, कानूनी और दार्शनिक चर्चाओं का विषय रहा है। "राइट टू डाई विद डिग्निटी" यानी गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार एक महत्वपूर्ण विषय है, जो मुख्य रूप से इच्छामृत्यु (Euthanasia) और आत्महत्या में सहायता (Assisted Suicide) से जुड़ा हुआ है।
हाल ही में भारत में "Right to Die with Dignity" (गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार) चर्चा का विषय बना हुआ है। दक्षिण भारत के एक राज्य ने इसे लागू करने का निर्णय लिया है और सभी अस्पतालों को इससे संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। इस पहल के कारण देशभर में एक बार फिर यह अधिकार चर्चा में आ गया है।
यह अभी चर्चा में क्यों है?
हाल ही में दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में ‘गरिमा के साथ मृत्यु’ का अधिकार लागू किया गया है, जिससे यह ऐसा करने वाला पहला राज्य बन गया है। अन्य राज्यों जैसे गोवा और महाराष्ट्र में भी इसे लागू करने की योजना बनाई जा रही है। हाल ही में भारत और अन्य देशों में कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई हैं, जिनके कारण यह विषय पुनः चर्चा में आया है:
भारत में लिविंग विल (Living Will) का क्रियान्वयन: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इच्छामृत्यु और 'लिविंग विल' से जुड़े दिशानिर्देशों को सरल करने का सुझाव दिया है, जिससे गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए अपने उपचार संबंधी निर्णय लेना आसान होगा।
नीदरलैंड और कनाडा में नए कानून: नीदरलैंड और कनाडा ने मानसिक बीमारियों से ग्रसित मरीजों के लिए इच्छामृत्यु की शर्तों को और अधिक लचीला बना दिया है।
ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी में इच्छामृत्यु पर नई बहस: कई देशों में नए कानून बनाने पर विचार चल रहा है, जिससे गंभीर रूप से बीमार मरीजों को गरिमा के साथ मृत्यु का विकल्प दिया जा सके।
वैज्ञानिक और चिकित्सा जगत में प्रगति: अत्यधिक पीड़ादायक बीमारियों में देखभाल और उपचार में सुधार के बावजूद, कई मरीज इच्छामृत्यु का समर्थन कर रहे हैं, जिससे इस पर नए सिरे से बहस छिड़ गई है।
क्या है 'गरिमा के साथ मृत्यु' का अधिकार (Right To Die With Dignity)?
यह एक ऐसा अधिकार है, जिसमें यदि कोई मरीज किसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहा है और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है, तो वह जीवनरक्षक उपचार को बंद करने का निर्णय ले सकता है। डॉक्टर मरीज के इस फैसले का सम्मान करेंगे और इसे कानूनी रूप से प्रमाणित किया जाएगा।
कैसे होगी प्रमाणिकता
इस अधिकार को लागू करने के लिए एक क्षेत्रीय स्वास्थ्य अधिकारी की निगरानी में एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा। इस बोर्ड में सर्जन, न्यूरोसर्जन, एनेस्थेटिस्ट और इंटेंसिविस्ट शामिल होंगे, जो मरीज के फैसले की समीक्षा करेंगे और अंतिम निर्णय लेंगे।
इच्छा मृत्यु और गरिमा के साथ मृत्यु के अधिकार में अंतर
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2023 में "Right to Die with Dignity" को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। इसके तहत मरीज को यह निर्णय लेने का अधिकार दिया गया कि वह अपने जीवन को जारी रखना चाहता है या नहीं।
गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार: इसमें मरीज को अपने जीवन के अंतिम पलों में सम्मानपूर्वक निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलती है।
इच्छामृत्यु: यह एक अलग प्रक्रिया है जिसमें किसी मरीज को सक्रिय रूप से मृत्यु प्राप्त करने में सहायता दी जाती है।
कैसे दी जा सकती है सहमति?
यदि कोई व्यक्ति यह महसूस करता है कि वह भविष्य में किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है, तो वह पहले से ही यह निर्णय ले सकता है कि उसे जीवन रक्षक उपकरणों पर न रखा जाए। इस फैसले को कानूनी रूप से दर्ज कराने के लिए मेडिकल विल (स्वास्थ्य से जुड़ा लिखित दस्तावेज) तैयार करना होगा। इसके लिए परिवार की सहमति भी अनिवार्य होगी।
इसका क्या इतिहास रहा है (Right To Die With Dignity History In Hindi)?
"गरिमा के साथ मृत्यु" का विचार प्राचीन काल से ही चर्चा में रहा है। ग्रीक और रोमन सभ्यताओं में इच्छामृत्यु को नैतिक रूप से स्वीकार्य माना जाता था, खासकर उन लोगों के लिए जो गंभीर रूप से बीमार थे। सुकरात, प्लेटो और स्टोइक दार्शनिकों ने भी इसे कुछ परिस्थितियों में न्यायसंगत माना। ईसाई धर्म और इस्लाम ने इच्छामृत्यु और आत्महत्या को अनैतिक करार दिया। इस काल में इसे पाप और अपराध माना जाने लगा।
19वीं और 20वीं सदी में वैज्ञानिक और दार्शनिक सोच के विकास के साथ इच्छामृत्यु पर बहस पुनः शुरू हुई। 1935 में ब्रिटेन में ‘वोलंटरी यूथेनेशिया लीग’ की स्थापना हुई। 1976 में अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य ने पहली बार मरीजों को जीवनरक्षक उपचार को अस्वीकार करने का अधिकार दिया।
गरिमा के साथ मृत्यु के प्रकार
सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia): डॉक्टर द्वारा घातक दवा देकर मरीज की मृत्यु सुनिश्चित करना।
निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia): जीवनरक्षक उपचार को रोकना जिससे मरीज की मृत्यु हो जाए।
डॉक्टर सहायता प्राप्त आत्महत्या (Physician-Assisted Suicide): डॉक्टर द्वारा ऐसी दवा प्रदान करना जिसे मरीज स्वयं लेकर अपनी जान ले सके।
विभिन्न देशों में गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार
वर्तमान में, कुछ देशों ने इच्छा मृत्यु और आत्महत्या में सहायता को कानूनी मान्यता दी है जबकि अन्य देशों में इसे अवैध माना जाता है।
नीदरलैंड: 2002 में दुनिया का पहला देश जिसने इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता दी।यहाँ डॉक्टरों को कुछ शर्तों के तहत मरीज को मरने में सहायता करने की अनुमति है।
बेल्जियम: 2002 में कानूनी मान्यता मिली। यहाँ तक कि 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए भी इच्छामृत्यु की अनुमति है।
स्विट्ज़रलैंड: यहाँ आत्महत्या में सहायता 1942 से वैध है।यहाँ ‘डिग्निटास’ नामक संस्था लोगों को मरने में सहायता प्रदान करती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका: कुछ राज्यों (ओरेगन, वाशिंगटन, कैलिफोर्निया आदि) में ‘डेथ विद डिग्निटी’ कानून लागू है।
कनाडा: 2016 में मेडिकल असिस्टेंस इन डाइंग (MAiD) कानून लागू हुआ।
भारत में गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार (Right To Die With Dignity In India)
भारत में यह विषय संवैधानिक, नैतिक और सामाजिक स्तर पर बहस का विषय बना हुआ है।मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि क्या इसमें गरिमा के साथ मरने का अधिकार भी शामिल है।
Gian Kaur v. State of Punjab (1996): सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के अधिकार को अस्वीकार किया।
Aruna Shanbaug Case (2011): कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को कुछ शर्तों के साथ अनुमति दी।
Common Cause v. Union of India (2018): सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध करार दिया और ‘लिविंग विल’ (Living Will) की अवधारणा को स्वीकार किया।
भारत में इच्छामृत्यु के लिए शर्तें: मरीज को गंभीर रूप से असाध्य बीमारी होनी चाहिए।इच्छामृत्यु की प्रक्रिया मेडिकल बोर्ड की निगरानी में होनी चाहिए।
गरिमा के साथ मृत्यु के संभावित परिणाम
मरीजों को आत्मनिर्णय का अधिकार: यह उन मरीजों को एक सम्मानजनक विकल्प देता है जो गंभीर और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित हैं।
परिवार पर मानसिक और आर्थिक प्रभाव: मरीज की देखभाल में लगने वाले अत्यधिक खर्च और मानसिक तनाव को कम किया जा सकता है।
चिकित्सा क्षेत्र में नैतिक दुविधा: डॉक्टरों के लिए यह निर्णय लेना कठिन हो सकता है कि वे मरीज की इच्छा का सम्मान करें या चिकित्सा शपथ का पालन करें।
कानूनी विवाद: गलत इस्तेमाल की संभावना बनी रहती है, जिससे कानूनी मामलों की संख्या बढ़ सकती है।
समाज में धारणा में बदलाव: समय के साथ समाज इसे अधिक स्वीकार कर सकता है, जिससे मरीजों की गरिमा और स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलेगा।
धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव: विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में मृत्यु को लेकर अलग-अलग धारणाएँ हैं, जिससे कुछ समुदाय इसका विरोध कर सकते हैं।
इस अधिकार के प्रभावों को देखते हुए, इसे लागू करने के लिए सख्त दिशानिर्देश और सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होगी ताकि इसका दुरुपयोग न हो सके।
भविष्य की संभावनाएँ
भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु को कानूनी बनाने पर भविष्य में चर्चा हो सकती है। धार्मिक मान्यताओं के कारण इच्छामृत्यु को व्यापक स्वीकृति मिलना मुश्किल हो सकता है।यदि भविष्य में दर्द प्रबंधन और देखभाल में सुधार होता है, तो इच्छामृत्यु की आवश्यकता कम हो सकती है।
"गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार" नैतिकता, कानून और समाज के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है। भारत सहित कई देशों में इसे मान्यता मिलने लगी है, लेकिन अभी भी इस पर व्यापक बहस जारी है। भविष्य में, इस अधिकार को और अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित करने और मानवीय दृष्टिकोण से लागू करने की आवश्यकता होगी।