Aatankwadi Afzal Guru History: खतरनाक आतंकवादी अफजल गुरु, संसद हमले से फांसी तक की पूरी कहानी
Khatarnak Aatankwadi Afzal Guru: 13 दिसंबर 2001 को हुए भारतीय संसद पर हमले के मुख्य आरोपी को 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। वह कश्मीर का रहने वाला था, लेकिन पाकिस्तान जाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल हो गया और संसद हमले में शामिल हुआ। आइए जानते हैं अफजल गुरु और संसद हमले की पूरी कहानी।;
Most Dangerous Aatankwadi Afzal Guru Life History (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Aatankwadi Afzal Guru Life History: अफजल गुरु का नाम भारतीय इतिहास में 13 दिसंबर 2001 को हुए भारतीय संसद पर हमले (2001 Indian Parliament Attack) के मुख्य आरोपी के रूप में दर्ज है। यह हमला भारत के लोकतंत्र पर सबसे बड़े हमलों में से एक था, जिसमें पांच आतंकवादी संसद भवन में घुसे और गोलियां बरसाईं। इस हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद भवन के दो गार्ड शहीद हुए थे।
इस हमले का मास्टरमाइंड जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammed) नामक आतंकवादी संगठन था, जो पाकिस्तान (Pakistan) में स्थित था। जांच के दौरान अफजल गुरु (Afzal Guru) का नाम सामने आया, जिसे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने इस हमले का मुख्य साजिशकर्ता माना। अदालत में मुकदमा चला, और उसे मौत की सजा सुनाई गई। आखिरकार, 9 फरवरी 2013 को उसे तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में फांसी दे दी गई।
अफजल गुरु कौन था (Most Dangerous Aatankwadi Afzal Guru Kaun Tha)
अफजल गुरु जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले (Baramulla) के सोपोर इलाके का रहने वाला था। उसने मेडिकल की पढ़ाई शुरू की थी, लेकिन बाद में छोड़ दी। 1989 में वह पाकिस्तान गया और वहां आतंकी प्रशिक्षण लिया।
वह 1989 में आतंकवादियों से जुड़ा और पाकिस्तान चला गया, जहां उसने आतंकवादी ट्रेनिंग ली। हालांकि, बाद में वह वापस भारत आकर एक सामान्य जीवन जीने की कोशिश करने लगा, लेकिन फिर से कट्टरपंथियों के प्रभाव में आकर आतंकी गतिविधियों में शामिल हो गया।
संसद हमला: 13 दिसंबर 2001 (Sansad Hamla Kab Hua Tha)
13 दिसंबर 2001 की सुबह भारतीय संसद में विंटर सेशन चल रहा था। उस समय महिला आरक्षण बिल (Women Reservation Bill) पर चर्चा होनी थी, लेकिन भारी हंगामे के कारण 11:02 बजे संसद को स्थगित कर दिया गया। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी सहित कई प्रमुख नेता संसद से निकल चुके थे।
कैसे हुआ आतंकी हमला?
लगभग 11:30 बजे, एक सफेद एम्बेसडर कार में सवार 5 आतंकवादी संसद के गेट नंबर-12 से अंदर घुसे। उस समय संसद की सुरक्षा में तैनात गार्ड निहत्थे थे। जब सुरक्षाकर्मियों को कुछ संदेह हुआ, तो उन्होंने कार रोकने की कोशिश की, लेकिन आतंकियों ने गाड़ी को उपराष्ट्रपति की कार से टकरा दिया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
चार घंटे तक चला ऑपरेशन
आतंकियों के पास AK-47 राइफलें, ग्रेनेड और विस्फोटक थे, जबकि संसद की सुरक्षा में तैनात गार्डों के पास हथियार नहीं थे। लेकिन भारतीय सुरक्षा बलों ने अदम्य साहस का परिचय दिया और शाम 4 बजे तक चले ऑपरेशन में सभी 5 आतंकियों को मार गिराया।
हमले में जान गंवाने वाले वीर योद्धा
इस आतंकी हमले में दिल्ली पुलिस के 5 जवान, CRPF की एक महिला गार्ड, राज्यसभा के 2 कर्मचारी और एक माली की शहादत हो गई।
हमले के बाद गिरफ्तारियां और न्यायिक प्रक्रिया
हमले के दो दिन बाद, 15 दिसंबर 2001 को चार संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया:-
1- अफजल गुरु
2- एस.ए.आर. गिलानी
3- अफशान गुरु
4- शौकत हुसैन
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एस.ए.आर. गिलानी और अफशान गुरु को बरी कर दिया। लेकिन अफजल गुरु की मौत की सजा बरकरार रही, जबकि शौकत हुसैन की फांसी की सजा को घटाकर 10 साल की कैद कर दिया गया। भारतीय संसद पर हुआ यह हमला देश की संप्रभुता और लोकतंत्र पर सीधा हमला था। सुरक्षा बलों की बहादुरी और बलिदान से संसद को बचाया गया, लेकिन इस हमले ने देश की सुरक्षा नीतियों को और कठोर बनाने की जरूरत को उजागर किया।
हमले के पीछे कौन था?
जांच में पता चला कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। इस हमले की साजिश रचने के आरोप में अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार किया गया।
अफजल गुरु की गिरफ्तारी और मुकदमा
हमले के बाद पुलिस ने सुरागों के आधार पर अफजल गुरु को गिरफ्तार किया। जांच में पाया गया कि उसने आतंकवादियों को दिल्ली में ठहराने, हथियार मुहैया कराने और संसद भवन तक पहुंचाने में मदद की थी।
अदालत ने 2002 में अफजल गुरु को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई। 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी। 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी फांसी की सजा को सही ठहराया।
मौत की सजा और विवाद
अफजल गुरु की फांसी को लेकर देश में विवाद छिड़ गया। कई मानवाधिकार संगठनों और कश्मीरी नेताओं ने उसकी फांसी का विरोध किया। कांग्रेस सरकार ने भी इस मुद्दे को लंबे समय तक लटकाए रखा। लेकिन 2013 में जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास दया याचिका पहुंची, तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया।
9 फरवरी 2013: अफजल गुरु को फांसी
9 फरवरी 2013 की सुबह तिहाड़ जेल में अफजल गुरु को गुपचुप तरीके से फांसी दे दी गई। सुरक्षा कारणों से इस फैसले को गुप्त रखा गया था। फांसी के बाद उसे तिहाड़ जेल के अंदर ही दफना दिया गया।
कैसे तय हुई फांसी की तारीख?
पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने अपनी आत्मकथा ‘फाइव डिकेड्स इन पॉलिटिक्स’ (Five Decades in Politics) में अफजल गुरु की फांसी से जुड़े घटनाक्रम को सिलसिलेवार तरीके से बयान किया है। उन्होंने लिखा कि अफजल गुरु को फांसी देने के लिए पहले 8 फरवरी 2013 की तारीख तय की गई थी। लेकिन सुरक्षा कारणों और संभावित अशांति को ध्यान में रखते हुए इसे एक दिन आगे बढ़ा दिया गया।
क्यों टालनी पड़ी फांसी की तारीख?
सुशील कुमार शिंदे के अनुसार, केंद्र सरकार को आशंका थी कि अफजल गुरु की फांसी की खबर से जम्मू-कश्मीर में तनाव फैल सकता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। इस कारण सरकार ने एक दिन की अतिरिक्त तैयारी का फैसला लिया।
गोपनीयता बनाए रखने के लिए उठाए गए कदम
शिंदे लिखते हैं कि सरकार ने सुनिश्चित किया कि मीडिया को इसकी भनक भी न लगे और सुरक्षा इंतजामों को मजबूत किया जाए। इसी सिलसिले में 8 फरवरी की सुबह गृह मंत्रालय में एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई गई, जिसमें शामिल थे: तिहाड़ जेल की डीजी विमला मेहरा, तत्कालीन गृह सचिव आरके सिंह, तिहाड़ जेल के जेलर सुनील गुप्ता। बैठक में शिंदे ने अधिकारियों से बार-बार पूछा कि क्या वे फांसी की प्रक्रिया को लेकर पूरी तरह से तैयार हैं।
तिहाड़ जेल में जल्लाद की अनुपस्थिति
इस दौरान सबसे बड़ी समस्या यह थी कि तिहाड़ जेल में कोई नियमित जल्लाद नहीं था। हालांकि, जेल प्रशासन ने सरकार को आश्वस्त किया कि सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
फांसी की अंतिम प्रक्रिया
9 फरवरी 2013 की सुबह, तिहाड़ जेल प्रशासन के एक अधिकारी ने अफजल गुरु को फांसी दे दी। सुरक्षा कारणों से सरकार ने यह फैसला लिया था कि फांसी के बाद भी इसकी जानकारी सार्वजनिक न की जाए, जब तक कि सभी व्यवस्थाएं पूरी तरह से नियंत्रित न हों।
सुशील कुमार शिंदे के अनुसार, अफजल गुरु की फांसी पूरी गोपनीयता के साथ दी गई थी ताकि किसी भी तरह की राजनीतिक या सुरक्षा संबंधी अस्थिरता न पैदा हो। इस पूरे घटनाक्रम में सरकार ने हर कदम सावधानीपूर्वक उठाया और जम्मू-कश्मीर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास किए।
राजनीतिक प्रभाव और विरोध
कश्मीर में इस फांसी के बाद भारी विरोध प्रदर्शन हुए। अलगाववादी नेताओं ने अफजल गुरु को 'शहीद' करार दिया। जम्मू-कश्मीर की पार्टियों ने भी इस फांसी का विरोध किया। भारत में कई बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार संगठनों ने न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाए। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर आपत्ति जताई। कांग्रेस सरकार पर आरोप लगा कि उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए फांसी दी। भाजपा और अन्य राष्ट्रवादी दलों ने इसे आतंकवाद के खिलाफ एक बड़ा कदम बताया।
भारतीय संसद पर 13 दिसंबर 2001 के आतंकी हमले के पीछे के कारण (Sansad Hamle Ke Kya Karan The)
इस हमले की साजिश पाकिस्तान में बैठे आतंकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा द्वारा रची गई थी। हमले के पीछे कई प्रमुख कारण थे:
1. भारत को अस्थिर करने की कोशिश
यह हमला भारत की राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करने के लिए किया गया था। संसद देश का सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्थान है, और उस पर हमला करके आतंकियों ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वे भारत की शासन प्रणाली को कमजोर कर सकते हैं।
2. कश्मीर मुद्दे पर दबाव बनाना
आतंकियों और उनके आकाओं का मुख्य उद्देश्य था कि भारत सरकार पर कश्मीर को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव डाला जाए। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन भारत में अस्थिरता फैलाकर कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना चाहते थे।
3. कारगिल युद्ध का बदला
1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा था। भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) के तहत पाकिस्तानी घुसपैठियों को बाहर निकाला था। संसद पर हमला कारगिल की हार का बदला लेने और भारत को कमजोर दिखाने की कोशिश का हिस्सा था।
4. 2001 में हुए आतंकवाद विरोधी अभियानों का प्रतिशोध
हमले से कुछ महीने पहले भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर में कई आतंकवादी ठिकानों पर सफल अभियान चलाए थे। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को भारी नुकसान हुआ था। इसलिए उन्होंने संसद पर हमला कर भारत को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की।
5. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध भड़काने की साजिश
आतंकवादी संगठनों का इरादा था कि भारत इस हमले के जवाब में पाकिस्तान पर हमला करे, जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ जाए। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को उम्मीद थी कि ऐसा करने से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलेगा और भारत पर दबाव बढ़ेगा।
6. अमेरिका और अफगानिस्तान में तालिबान पर हो रहे हमलों का असर
2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था। पाकिस्तान और वहां के आतंकी संगठनों पर अमेरिका का दबाव बढ़ रहा था। इस दबाव को हटाने और भारत का ध्यान कश्मीर पर केंद्रित करने के लिए संसद पर हमला किया गया।
7. भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास
संसद पर हमला भारत के लोकतंत्र, उसकी सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया एजेंसियों को कमजोर करने की एक कोशिश थी। आतंकवादी यह दिखाना चाहते थे कि वे भारत के सबसे सुरक्षित स्थान तक पहुंच सकते हैं और वहां हमला कर सकते हैं।
अफजल गुरु को मिली फांसी भारत की आतंकवाद विरोधी नीति का एक अहम कदम था। संसद हमले ने भारतीय लोकतंत्र पर गहरी चोट की थी, और इस साजिश के गुनहगारों को सजा मिलना जरूरी था। हालांकि, इस पर अब भी राजनीतिक और कानूनी बहस जारी है।अफजल गुरु की फांसी भारतीय न्याय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण फैसला था। यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्ती को दर्शाता है। हालांकि, इस पर राजनीतिक और कानूनी बहस आज भी जारी है।