Manipur Landslide: मणिपुर भूस्खलन में अब तक 47 मौतें, नए हादसे में हाईवे ठप
Manipur Landslide: मणिपुर में नोनी जिले में पिछले हफ्ते निर्माणाधीन टुपुल ट्रेन स्टेशन के पास हुए विनाशकारी भूस्खलन के बाद से अब तक मलबे में 47 शव बरामद हुए हैं।
Manipur Landslide: मणिपुर में नोनी जिले में पिछले हफ्ते निर्माणाधीन टुपुल ट्रेन स्टेशन (Tupul train station under construction) के पास हुए विनाशकारी भूस्खलन (Manipur Landslide) के बाद से अब तक मलबे में 47 शव बरामद हुए हैं। विशाल मलबे के पहाड़ के नीचे अभी कितने लोग और दबे हुए हैं, इसका कोई पता नहीं है।
पीड़ितों में टेरिटोरियल आर्मी (territorial army) के कई कर्मी शामिल हैं, जिसे जिरीबाम जिले से मणिपुर की राजधानी इम्फाल तक बनाई जा रही रेलवे लाइन की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था। इस बीच जिले में एक और भीषण भूस्खलन हुआ है जिससे नेशनल हाईवे 37 (NH 37) ठप हो गया है। भूस्खलन से हाईवे का करीब 200 मीटर हिस्सा मलबे में दब गया है।
रेलवे प्रोजेक्ट
पिछले हफ्ते की विनाशकारी घटना ने महत्वाकांक्षी 111 किलोमीटर की इम्फाल-जिरीबाम रेलवे परियोजना (Imphal-Jiribam Railway Project) के बारे में सवाल उठाए हैं। ये प्रोजेक्ट ट्रांस-एशियन रेलवे नेटवर्क (Trans-Asian Railway Network) का हिस्सा है जिसका उद्देश्य पूरे महाद्वीप के देशों को जोड़ना है। पूर्वोत्तर केंद्रित मीडिया आउटलेट 'ईस्टमोजो' के साथ एक साक्षात्कार में मणिपुर के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता एन. बीरेन सिंह (CM N. Biren Singh) ने कहा है कि इस त्रासदी के बाद अब रेलवे की परियोजना पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मणिपुर की पहाड़ी मिट्टी बहुत नरम है। रेलवे के लोगों के पास विशेषज्ञता है, लेकिन दुर्भाग्य से इस तरह की घटना हुई है और उन्हें फिर से विचार करने की जरूरत है।
यह तो पहले से ही पता था कि तुपुल और उसके आसपास की पहाड़ियां दरकने का ख़तरा हमेशा रहता है और एक भी भूस्खलन लंबे समय तक किसी भी प्रोजेक्ट को प्रभावित कर सकता है। रेलवे को जमीनी सर्वेक्षण के बाद सुरक्षित तरीके से लाइन का निर्माण करना चाहिए था। तथ्य यह है कि इसे नजरअंदाज कर दिया गया था, इसने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है और सब काम बरसों पीछे चला गया है।
ब्रॉड-गेज रेलवे लाइन का निर्माण से कनेक्टिविटी में किया जा रहा सुधार
इंफाल और जिरीबाम (Imphal and Jiribam) के बीच ब्रॉड-गेज रेलवे लाइन (broad-gauge railway line) का निर्माण पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे द्वारा दूरस्थ और असमान क्षेत्र में कनेक्टिविटी में सुधार के लिए किया जा रहा है। 2013 में शुरू हुई 14,000 करोड़ रुपये की परियोजना में 46 सुरंगों और 150 से अधिक पुलों का निर्माण शामिल है। ये परियोजना तीन चरणों में बनाई जा रही है - पहला जिरीबाम से वांगईचुंगपाओ तक, दूसरा वांगईचुंगपाओ से खोंगसांग तक और तीसरा खोंगसांग से तुपुल तक। परियोजना के तीसरे चरण में नोनी ब्रिज शामिल है, जो संभवतः दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल होगा।
इजेई नदी के किनारे के करीब स्थित है तुपुल रेलवे स्टेशन
प्रस्तावित तुपुल रेलवे स्टेशन (Tupul Railway Station) - जहां भूस्खलन प्रभावित हुआ। इजेई नदी के किनारे के करीब स्थित है, जो जिले में पहाड़ियों के बीच से गुजरती है। इन पहाड़ियों में स्थित मखुम गांव के निवासियों का मानना है कि यदि निर्माण से पहले उनसे सलाह ली जाती तो भूस्खलन को रोका जा सकता था। लोगों ने बताया कि स्थानीय निवासियों को यहाँ के भूगोल के बारे में पता है, प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली के बारे में, नदी कैसे बहती है, कहाँ ढीली मिट्टी और चट्टान है। लोगों का कहना है कि उनसे कभी कोई मशविरा नहीं किया गया। लोगों ने कहा कि इस क्षेत्र के लिए रेलवे का अवश्य महत्त्व है लेकिन परियोजना को सार्वजनिक परामर्श के बिना जारी नहीं रखना चाहिए। उन्हें स्थानीय निवासियों के साथ एक बैठक करनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो काम बंद करना होगा।
क्षेत्र में वनों की कटाई की गति ने दिया भूस्खलन में योगदान
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि क्षेत्र में वनों की कटाई की गति ने भी भूस्खलन में योगदान दिया हो सकता है। इस साल मई में एक ही दिन में तामेंगलोंग और नोनी जिलों में 300 मिमी तक बारिश हुई थी। भारी वर्षा और वनों की कटाई की तेज दर के कारण, मिट्टी की स्थिरता बदल गयी और उससे भूस्खलन को मदद मिली। इसके अलावा 2016 में तुपुल से लगभग 5 किमी दूर एक भीषण भूकंप आया था। हो सकता है कि इसने तुपुल में बहुत असर डाला होगा।
बहरहाल, फ़िलहाल सबसे बड़ी समस्या इजेई के बहाव में मलबे से आया अवरोध और झील का निर्माण हो जाना है। जब भी ये झील टूटेगी तो नीचे वाले इलाकों में व्यापक तबाही आने की पूरी पूरी आशंका है। इसके अलावा झील के पानी की बाढ़ से पर्यावरण की बर्बादी होना भी तय है।
बहरहाल, इस क्षेत्र में उग्रवादी समूहों ने लम्बे समय से इस क्षेत्र को विकसित नहीं होने दिया है। दूसरी ओर, रेलवे सहित अन्य राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ सेना चुपचाप विकास और एकीकरण की दिशा में काम करती है। टुपुल में टेरिटोरियल आर्मी टेरियर और श्रमिकों का मौन बलिदान सभी एजेंसियों द्वारा देश के सभी कोनों में विकास को आगे बढ़ाने के लिए किए गए प्रयासों का एक संकेतक था। वे अपने कार्यों को पूरा करते हुए चुपचाप मर गए।