Manipur Election 2022: पहाड़ और तराई में बंटे हैं मतदाता और मुद्दे, भारी कठिनाइयों का सामना कर रहे यहां के निवासी

Manipur Election 2022: मणिपुर वस्तुतःपहाड़ी क्षेत्र और उससे घिरी इम्फाल घाटी का मिश्रण है और पहाड़ का क्षेत्र घाटी के बिल्कुल विपरीत है।

Written By :  Neel Mani Lal
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2022-01-28 05:33 GMT

मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 (फोटो-सोशल मीडिया)

Manipur Election 2022: मणिपुर विधानसभा चुनाव अब सिर पर है और ये साफ है कि मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है। लेकिन असलियत ये है कि राज्य में कांग्रेस और भाजपा से परे कहीं अधिक गहरे मुद्दे हैं जिनका राज्य की राजनीति पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। मणिपुर, विशेष रूप से इम्फाल घाटी, कभी एक रियासत रही थी, लेकिन वर्तमान मणिपुर उससे कहीं अधिक व्यापक है।

मणिपुर वस्तुतःपहाड़ी क्षेत्र और उससे घिरी इम्फाल घाटी का मिश्रण है और पहाड़ का क्षेत्र घाटी के बिल्कुल विपरीत है। घाटी में ज्यादातर जनसंख्या हिंदुओं की है जबकि पहाड़ियां लगभग पूरी तरह से ईसाई हैं। राज्य के लगभग 90 फीसदी क्षेत्र पर पहाड़ हैं जबकि लेकिन घाटी या मैदानी इलाका मात्र दस फीसदी है और राज्य के लगभग 60 लोग घाटी में रहते हैं।

पहाड़ की शिकायत

मणिपुर के पहाड़ों के निवासियों की शिकायत रहती है कि उन्हें विकास से वंचित कर दिया गया है। उदाहरण के लिए, अगर अस्पतालों जैसी बुनियादी चीज को लें तो चूड़ाचंदपुर, चंदेल, सेनापति, तामेंगलोंग, उखरूल, कामजोंग, नोनी, कांगपोकपी और फेरज़ावल के पहाड़ी जिलों में संयुक्त रूप से एक भी सरकारी मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल नहीं है।

उखरूल के हुंगपुंग में जिला अस्पताल है लेकिन यहां न स्पेशलिस्ट हैं और न बुनियादी ढांचा। स्टाफ की भी कमी है। नतीजतन जब भी कोई इमरजेंसी होती है तो इंफाल रेफर कर दिया जाता है। गरीबी के कारण पहाड़ों के अधिकांश लोगों को आगे के इलाज के लिए भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

स्वायत्त जिला परिषद

पहाड़ों की समस्याओं के निराकरण के लिए मणिपुर (पहाड़ी क्षेत्र) स्वायत्त जिला परिषद विधेयक प्रस्तावित है जिसकी सिफारिश हिल एरिया कमेटी (एचएसी) ने की है। ये विवादास्पद विधेयक यदि पारित हो जाता है तो मणिपुर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। लेकिन डर है कि इससे राज्य में पहले से ही कायम पहाड़ी-घाटी विभाजन और भी तेज हो सकता है।

इसी विधेयक पर जोर देने के लिए पिछले साल नवम्बर में अखिल आदिवासी छात्र संघ मणिपुर (एटीएसयूएम), ऑल नागा स्टूडेंट्स एसोसिएशन मणिपुर (एएनएसएएम), कुकी छात्र संगठन (केएसओ) आदि ने मणिपुर में अनिश्चितकालीन आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान किया था जिसके चलते ट्रकों का आवागमन ठप हो गया था। इम्फाल घाटी के प्रवेश द्वार पर पड़ोसी नागालैंड से आ रहे 800 से अधिक माल लदे ट्रक और अन्य वाहन फंस गए थे।

ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन, मणिपुर का कहना है कि एचएसी के पास इस बिल को विधानसभा में पेश करने का पूरा विशेषाधिकार और अधिकार है। लेकिन सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है।

मणिपुर के पर्यवेक्षकों के अनुसार, विकास और सामाजिक संबंधों के मामले में पहाड़ी-घाटी का विभाजन मुख्य रूप से उभरते हुए कुलीन वर्ग के द्वारा बढ़ाया जा रहा है। इसे अमीर और गरीब के बीच की खाई भी कह सकते हैं। बहरहाल, मणिपुर में वोटिंग का पैटर्न भी पहाड़ और तराई में अलग अलग दिखता है।

लेकिन एक महत्वपूर्ण बात ये है कि धार्मिक आधार पर किसी तरह का विभाजन या दरार नहीं है। मूल रूप से मसला सुविधाओं और आर्थिक अवसरों का है। एक्सपर्ट्स इस स्थिति को उत्तराखंड से जोड़ कर भी देखते हैं जहां पहाड़ और तराई के क्षेत्रों में आर्थिक अवसर पूरी तरह भिन्न हैं।


Tags:    

Similar News