Manipur Election 2022: मणिपुर में होगी कांग्रेस की अग्निपरीक्षा, जानिए पार्टी के लिए क्यों अहम बन गया है इस बार का चुनाव
Manipur Election 2022: पूर्वोत्तर को पहले कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है मगर एक-एक कर सभी राज्यों पर कांग्रेस की पकड़ ढीली हो चुकी है।
Manipur Election 2022: मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटों के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव (Manipur Vidhan Sabha Chunav) में सभी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है। इस बार का विधानसभा चुनाव कांग्रेस (Congress) के लिए काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि कांग्रेस यहां अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। पूर्वोत्तर को पहले कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है मगर एक-एक कर सभी राज्यों पर कांग्रेस की पकड़ ढीली हो चुकी है।
मणिपुर का चुनाव (Manipur Chunav) कांग्रेस के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि 2023 में पूर्वोत्तर के कई और राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। मणिपुर से निकला सियासी संदेश दूसरे राज्यों में भी काफी असर डालेगा। भाजपा (BJP) यहां पर कांग्रेस को एक बार फिर करारा झटका देने की तैयारी में जुटी हुई है।
2017 में मिलीं कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें
मणिपुर में विधानसभा की 60 सीटों के लिए पहले 27 फरवरी और 3 मार्च की तारीख तय की गई थी मगर अब आयोग (Election Commission) ने मतदान के लिए 28 फरवरी और 5 मार्च की तारीख तय की है। पहले चरण की सीटों के लिए शनिवार की शाम को चुनावी शोर थम जाएगा। ऐसे में सभी दलों की ओर से पहले चरण के आखिरी दौर का चुनाव प्रचार किया जा रहा है।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मणिपुर में 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके बावजूद कांग्रेस सरकार बनाने में विफल रही और भाजपा ने क्षेत्रीय दलों नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर यहां सरकार बना ली थी।
पिछले 5 वर्षों के दौरान भाजपा ने कांग्रेस को लगातार झटके (BJP vs Congress) दिए हैं। इस अवधि के दौरान कांग्रेस के 13 विधायक पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। इससे समझा जा सकता है कि सियासी स्तर पर कांग्रेस कितनी कमजोर हो चुकी है। पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस को लगातार झटके लगते रहे हैं। असम में चुनाव के बाद पार्टी के कई विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं जबकि मेघालय में कई विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है।
भाजपा की मजबूत घेराबंदी
यही कारण है कि मणिपुर का चुनाव कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) मणिपुर में चुनावी सभाएं कर चुके हैं। इस बार के चुनाव में एक बार फिर कांटे का मुकाबला माना जा रहा है।
हालांकि भाजपा की मजबूत घेराबंदी के सामने कांग्रेस कमजोर पड़ती दिख रही है। कांग्रेस ने इस बार लेफ्ट और जनता दल एस के साथ मिलकर मोर्चा बनाया है। हालांकि कांग्रेस नेताओं की ओर से दावा किया जा रहा है कि मोर्चा इस बार के चुनाव में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब होगा मगर जमीनी स्तर पर कांग्रेस का मोर्चा ज्यादा मजबूत नजर नहीं आ रहा है।
कभी पूर्वोत्तर था कांग्रेस का मजबूत गढ़
पूर्वोत्तर को कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था और 7 साल पहले यहां 8 में से 5 राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थी। हालांकि पिछले 7 वर्षों के दौरान कांग्रेस को पूर्वोत्तर में जबर्दस्त झटका लगा है और भाजपा ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कांग्रेस को सभी राज्यों की सत्ता से पूरी तरह बेदखल कर दिया है।
ऐसे में मणिपुर का चुनाव कांग्रेस के लिए बड़ा सियासी संदेश देने वाला साबित होगा। मणिपुर के चुनाव में कांग्रेस की एक बड़ी कमजोरी किसी मजबूत चेहरे का न होना भी है। पार्टी की ओर से ही इबोबी सिंह को एक बार फिर चुनाव मैदान में उतारा गया है। वेसे पार्टी के दूसरे नेता किसी मजबूत युवा चेहरे की कमी महसूस कर रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने भी ताकत लगाई
मणिपुर में इस बार कांग्रेस को भाजपा ही नहीं बल्कि तृणमूल कांग्रेस की मजबूत चुनौती का भी सामना करना है। पश्चिम बंगाल में तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के हौसले बुलंद हैं और उसने दूसरे राज्यों में पार्टी का विस्तार शुरू कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस को पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी मगर इस बार पार्टी पूरी दमदारी के साथ चुनाव मैदान में उतरी है।
भाजपा की कड़ी चुनौती के बाद तृणमूल कांग्रेस (TMC) की घेराबंदी भी कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होती दिख रही है। अब यह देखने वाली बात होगी कि मणिपुर से कांग्रेस के लिए कैसा सियासी संदेश निकलता है।
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