Manipur Election 2022 : कुल 265 उम्मीदवारों में से सिर्फ 17 महिलाएं चुनावी मैदान में
महिलाओं की अगुवाई वाले प्रदेश मणिपुर में यहां की राजनीति में महिलाओं की कमी नजर आती। पिछले विधानसभा चुनाव के तरह ही इस चुनाव में भी कुल उम्मीदवारों में महिला उम्मीदवारों की संख्या केवल 5 फ़ीसदी के करीब है।
नई दिल्ली। मणिपुर में कोई पर्यटक आये तो उसे यहाँ दुकानों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों आदि में महिलाएं ही कामकाज संभालती नजर आती हैं। यही नहीं, चौराहों पर मूर्तियाँ भी महिलाओं की स्थापित हैं। हर जगह महिलाओं का बोलबाला नजर आता है। लेकिन बात यहीं पर खत्म हो जाती है क्योंकि जब बात जनप्रतिनिधियों की आती है तो वहां महिलाओं का प्रतिनिधित्व शून्य है। इस बार सबसे अधिक महिला प्रत्याशी मैदान में हैं। कुल 265 उम्मीदवारों में से 17 महिलाएं हैं। यह चुनाव मैदान में कुल प्रतियोगियों का केवल 6.41 फीसदी है। वैसे, 2017 में केवल 10 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और दो ने जीत दर्ज की।
सोशल एक्टिविस्ट शर्मिला इरोम (Sharmila Irom) ने 2016 में मणिपुर के लोगों के लिए सबसे बड़े भावनात्मक मुद्दों में से एक, सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को वापस लेने की मांग करते हुए 16 साल तब अनशन किया और अंत में अपनी पार्टी शुरू की थी। उन्होंने खुद कांग्रेस (Congress) के ओकराम इबोबी सिंह (Okram Ibobi Singh) के खिलाफ चुनाव लड़ा, जो 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे थे। नजीमा बीबी (Najima Bibi) भी उनकी पार्टी की ओर से उम्मीदवार थीं। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों में जो नतीजे आये उससे शर्मिला का दिल टूट गया और उन्होंने राजनीति छोड़ने का फैसला कर लिया। इस चुनाव में शर्मिला को सिर्फ 90 वोट मिले थे जबकि नजीमा बीबी को मात्र 33 वोट।
आधुनिक मणिपुर 1972 में केंद्र शासित प्रदेश से एक राज्य बना था और इन 50 बरसों में यहाँ की 60 सीटों वाली विधानसभा के लिए केवल छह महिलाएं चुनी गई हैं। इनर मणिपुर और आउटर मणिपुर की दो सीटों के लिए लोकसभा चुनाव 1952 से हो रहे हैं, लेकिन संसद में केवल एक महिला ही पहुंची है। अब तक जो छह महिला विधायक चुनी गईं हैं उनमें से चार मुख्यमंत्रियों सहित प्रभावशाली राजनेताओं की पत्नियां थीं, और एक का पति सशस्त्र विद्रोही समूह का प्रमुख था।
केवल 6.41 फीसदी महिला उम्मीदवार
इस साल सबसे अधिक महिला प्रतियोगियों की संख्या देखी गई है। 265 उम्मीदवारों में से 17 महिलाएं हैं। यह चुनाव मैदान में कुल प्रतियोगियों का केवल 6.41 फीसदी है। वैसे, 2017 में केवल 10 महिलाओं ने चुनाव लड़ा और दो ने जीत दर्ज की। इंफाल पश्चिम जिले के पटसोई से कांग्रेस की अकोइजम मीराबाई (Akoijam Mirabai) और इसी जिले के कांगपोकपी से भाजपा की नेमचा किपगेन। दोनों ने 2012 का चुनाव भी जीता था।
इस साल, वे मणिपुर में तीसरी बार निर्वाचित होने वाली महिलाओं में शुमार होने की दौड़ में हैं। दोनों ही 2012 से 2017 के बीच ओकराम इबोबी सिंह की कांग्रेस सरकार 2017 से बीजेपी की एन बीरेन सिंह सरकार में मंत्री रही हैं। आलोचकों का कहना है कि किपगेन की जीत के पीछे उनके पति - सेम्मा टी थंगबोई किपगेन का प्रभाव रहा है, जो कुकी विद्रोही समूह यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (United Peoples Front) के प्रमुख हैं।
राज्य में भारत के राष्ट्रीय औसत से लगातार उच्च महिला लिंगानुपात रहा है। 1990 के दशक से पुरुष की तुलना में महिला मतदाता ज्यादा हैं। आर्थिक गतिविधियों और सामाजिक और नागरिक अधिकार आंदोलनों में महिलाओं को उनकी अग्रणी भूमिका के लिए जाना जाता है। खेलों में भी मणिपुर की महिलाओं ने बहुत नाम कमाया है। लेकिन सब कुछ होते हुए भी मणिपुर की विधानसभा और संसद की महिला सदस्यों का अनुपात बेहद विषम है। मणिपुर में पुरुष, महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारियों को साझा करने की अनुमति देते हैं और प्रोत्साहित करते हैं लेकिन राजनीतिक स्थान नहीं देते। विश्लेषकों का कहना है कि मणिपुर की चुनावी राजनीति में धन और बाहुबल का वर्चस्व है और महिलाओं की पहुंच इनमें नहीं है।