Manipur Election 2022 : कांग्रेस पर दलबदल की मार, नेतृत्व का घोर संकट
Manipur Election 2022 : राज्य कांग्रेस के दिग्गज और 3 बार के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में पार्टी 2017 के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी
Manipur Election 2022 : निराशा और नेतृत्व संकट - मणिपुर में ऐन चुनाव के मौके पर कांग्रेस का ये हाल है। इन स्थितियों में चुनाव प्रचार अभियान शुरू करना भी संघर्षपूर्ण स्थिति बन गई है।ऊपरी तौर पर मणिपुर कांग्रेस का दावा है कि वह विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार है और पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह पार्टी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे। लेकिन असलियत ये है कि राज्य में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से संकट में है।
पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह मणिपुर भी कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। लेकिन बाकी राज्यों की तरह मणिपुर में भी पार्टी लगातार नीचे जाती रही है। मौजूदा 60 सदस्यीय विधानसभा में उसके विधायकों की संख्या 2017 में 28 से गिरकर अब केवल 13 हो गई है।
3 बार के मुख्यमंत्री बने ओकराम इबोबी सिंह
राज्य कांग्रेस के दिग्गज और 3 बार के मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में पार्टी 2017 के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। लेकिन एन बीरेन के नेतृत्व वाली भाजपा ने छोटे दलों के साथ गठबंधन करके सदन में बहुमत हासिल कर लिया और सरकार बनाने में कामयाब रही। उसके बाद से पांच वर्षों में कांग्रेस लगातार नीचे की ओर खिसकती गई जिसकी वजह समय-समय पर हुए दलबदल रहे।
मौजूदा समय में भी पाला बदल खेल जारी है और कांग्रेस के दो वरिष्ठ विधायक, चल्टनलियन एमो और काकचिंग वाई सुरचंद्र, इस सप्ताह ही भाजपा में शामिल हो गए हैं। अगस्त 2021 में मणिपुर कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष गोविंददास कोंथौजम भी भाजपा में चले गए थे।
कभी हुआ करता था दबदबा
सन 50 के दशक से ही कांग्रेस पार्टी मणिपुर की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी रही है जबकि तब मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा भी नहीं मिला था। कांग्रेस के आर के कीशिंग, 1980 से 1988 तक और 1994 से 1997 तक तीन टर्म में मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 2002 से 2017 तक कांग्रेस के इबोबी सिंह मुख्यमंत्री रहे थे। यानी मणिपुर पर कांग्रेस ने 26 साल से ज्यादा समय तक शासन किया।
दलबदल की राजनीति
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि दलबदल उत्तर पूर्व की राजनीति की खासियत है। केंद्र में सत्तासीन पार्टी इन राज्यों की राजनीति को कंट्रोल करती रही है और कांग्रेस से भाजपा में विधायकों के दलबदल की लहरें उसी राजनीति का हिस्सा हैं। इस क्षेत्र की राजनीति को इसकी अस्थिरता से भी परिभाषित किया जाता है। ऐसा मणिपुर में 2020 में भी देखा गया था जब भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी के अलावा उसके अपने तीन विधायकों ने एन बीरेन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। तब भाजपा सरकार गिरने की कगार पर थी और कुछ दिनों के लिए ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस वापसी कर सकती है। लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद भाजपा अपने संकट को टालने में कामयाब रही थी।
नेतृत्व का संकट
इस बार कांग्रेस नेतृत्व संकट की चपेट में आती दिख रही है। वर्तमान में नेता विपक्ष 73 वर्षीय इबोबी सिंह, लंबे समय से एक्शन से बाहर हैं। वह शायद ही कभी अपने निर्वाचन क्षेत्र, थौबल में भी देखे जाते हैं, जहां से वह 2002 से जीत रहे हैं। बतौर सीएम इबोबी के दूसरे और तीसरे कार्यकाल के दौरान, कांग्रेस तीव्र गुटबाजी और अंदरूनी कलह से घिर गई थी। पार्टी में इबोबी के वफादार विधायकों और असंतुष्ट ग्रुप के बीच जबर्दस्त खींचतान हो गई थी। तबसे हालात वैसे ही हैं।
बहरहाल, मणिपुर कांग्रेस के उपाध्यक्ष और पार्टी प्रवक्ता, के देवव्रत सिंह ने स्वीकार किया है कि सत्तारूढ़ दल की ओर अपने विधायकों के पलायन के कारण पार्टी को नुकसान हुआ है। उनका कहना है कि तमाम संकट के बावजूद अब हम सुरक्षित हैं और अपनी पार्टी को फिर से संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं।