नौ दिन चले अढ़ाई कोस यानी भारत- म्यांमार - थाईलैंड हाईवे
भारत- म्यांमार- थाईलैंड के बीच 3200 किलोमीटर की त्रिपक्षीय हाईवे पर काम 2020 तक ही पूरा हो पाने की उम्मीद नजर आ रही है...
गुवाहाटी: भारत- म्यांमार- थाईलैंड के बीच 3200 किलोमीटर की त्रिपक्षीय हाईवे पर काम 2020 तक ही पूरा हो पाने की उम्मीद नजर आ रही है। ये हाईवे भारत से शुरू हो कर म्यांमार होते हुये थाईलैंड तक जाएगा। यह प्रोजेक्ट 2005 में शुरू हुआ था और नियत समय सीमा से काम काफी पिछड़ा हुआ है।
प्रोजेक्ट के तहत भारत ने म्यांमार के भीतर 120 किलोमीटर लंबी सड़क का काम अब जा कर शुरू हुआ। हाईवे का काम पूरा हो जाने पर दक्षिण पूर्वी एशिया और खासकर भारत के पूर्वी हिस्से में व्यापारिक गतिविधियों को अच्छा खासा बढ़ावा मिलेगा।
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तीन देशों से होकर गुजरने वाला यह हाईवे मणिपुर के मोरेह से शुरू होगा और म्यांमार से होते हुए थाईलैंड में में सोट तक जाएगा। भारत में मोरेह से म्यांमार के टामू होते हुए कालेवा तक की 130 किमी लंबी सड़क का काम पूरा हो चुका है। ये सड़क भारत के सीमा सड़क संगठन ने बनाई है।
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व्यापारिक गतिविधियों को जबर्दस्त बढ़ावा
अब यार्गी - मोयेवा - मंडाले - मो सेट सड़क का काम बाकी है, जिसे म्यांमार और थाई सरकारों को पूरा करना है। हाईवे के बन जाने से कोई भी भारत से सड़क मार्ग द्वारा म्यांमार - बैंकाक और सिंगापुर तक जा सकेगा। सडक़ मार्ग चालू हो जाने से भारत, म्यांमार और थाईलैंड में व्यापारिक गतिविधियों को जबर्दस्त बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा पर्यटन के क्षेत्र में प्रगति होगी।
कालेवा- यार्गी सड़क बहुत बुरी स्थिति में
म्यांमार के सगैंग क्षेत्र में कालेवा- यार्गी सड़क बहुत बुरी स्थिति में है। इसे अपग्रेड करने का काम एनएचएआई को मिला है। इस काम पर 1177 करोड़ रुपए खर्च होने हैं। एनएचएआई ने ठेका देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है और काम बरसात के बाद शुरू हो कर तीन साल में पूरा हो जाने की उम्मीद है।
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काम तेज करने पर सहमति हुई थी
पिछले साल जुलाई में थाई प्रधानमंत्री के भारत दौरे में तीन देशों वाले हाईवे का काम तेज करने पर सहमति हुई थी। यह भी तय हुआ था कि तीनों देशों के बीच मोटर वेहिकल समझौते पर बातचीत तेज की जाए। भारत चाहता है कि पहले हाईवे का काम जल्दी निपटे।
मार्ग पर बस सेवा बंद
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने 2012 में भारत सीमा से म्यांमार में कालेवा तक की सड़क को काफी धूम धड़ाके के साथ शुरू किया था, जबकि सडक़ पर काम बहुत कुछ बाकी था। 130 किमी के इस खंड पर 69 बेहद खस्ताहाल पुल हैं, जिन पर बड़ी मुश्किल से बसें वगैरह गुजर पाती हैं। यही वजह रही कि उद्घाटन के तुरंत बाद ही इस मार्ग पर बस सेवा बंद कर दी गई।
पिछले साल सरकार ने घोषणा की कि यह प्रोजेक्ट 2019 में पूरा हो जाएगा लेकिन अभी कागजी कार्रवाई से आगे कुछ बढ़ा ही नहीं है। वैसे, भारत का इरादा इस हाईवे को कंबोडिया, लाओस और वियेतनाम तक ले जाने का है।
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कलादन प्रोजेक्ट भी अधूरा
2008 में यूपीए सरकार के दौरान कलादन मल्टी मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य मिजोरम के लिए एक वैकल्पिक मार्ग तैयार करना था जो समुद्र, नदी और सड़क के रास्तों का मिश्रण होता। ये म्यांमार के राखिन प्रांत में कलादन नदी के मुहाने से शुरू होना था।
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पिछले साल भारत ने बंदरगाह का काम पूरा करके इसे म्यांमार के सुपुर्द कर दिया। अब ऐजल - साइहा हाईवे को जोरिनपुरी तक 90 किमी बढ़ाने का काम पूरा होने को है, लेकिन इसके आगे पालेटवा तक 109 किमी सड़क का काम अभी होना बाकी है। उधर म्यांमार साइड में कुछ भी काम नहीं हुआ है। पूरे प्रोजेक्ट को 2014 तक पूरा हो जाना था, लेकिन यह कब पूरा होगा कोई बता नहीं सकता। प्रोजेक्ट की राह में दुर्गम इलाके, उग्रवादी हिंसा, स्थानीय प्रतिरोध सब कुछ आड़े आ रहा है।