कांग्रेस की हार : बड़ा होता सवाल और मुंह छुपाते कांग्रेसी दिग्गज
कांग्रेस की हार के बाद वस्तुतः राहुल गांधी के इस कदम से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह कांग्रेस के वर्तमान ढांचे से संतुष्ट नहीं हैं। पार्टी पुनर्जीवित करने के लिए वह आमूल चूल बदलाव चाहते हैं। जिसमें मुख्यतः कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में राजस्थान के अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के कमलनाथ का भी इस्तीफा वह चाहते थे। ताकि नये सिरे से जनता में पार्टी का विश्वास जीतने के कदम उठाए जा सकें।
रामकृष्ण वाजपेयी
आम चुनाव 2019 में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेने का सवाल धीरे धीरे विकराल होता जा रहा है इसका मुख्य कारण राहुल गांधी का हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने पर अड़ जाना है। हालांकि राहुल गांधी ने 25 मई को ही अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था तथा उसके बाद से अब तक का समय कांग्रेस के भीतर राहुल को मनाने के लिए चलता रहा। जिसके आखिरी चरण में कुछ इस्तीफे भी आए। लेकिन ये इस्तीफे राहुल गांधी को संतुष्ट नहीं कर सके। क्योंकि उनकी इच्छा थी कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के इस्तीफे भी आने चाहिए।
राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा
कांग्रेस की हार के बाद वस्तुतः राहुल गांधी के इस कदम से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह कांग्रेस के वर्तमान ढांचे से संतुष्ट नहीं हैं। पार्टी पुनर्जीवित करने के लिए वह आमूल चूल बदलाव चाहते हैं। जिसमें मुख्यतः कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों में राजस्थान के अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के कमलनाथ का भी इस्तीफा वह चाहते थे। ताकि नये सिरे से जनता में पार्टी का विश्वास जीतने के कदम उठाए जा सकें।
राहुल गांधी के इस्तीफे पर बोलीं स्मृति ईरानी, जय श्रीराम
दरअसल राहुल गांधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। न ही वह अपनी मां की तरह संगठन से बाहर रहकर संगठन पर हावी हो पाए।
कांटों भरा ताज
वास्तव में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का कांटों भरा ताज पहनने से पहले पार्टी का कचरा साफ कर देना चाहिए था लेकिन 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले वह ऐसा कुछ नहीं कर पाए।
लो कांग्रेस का तो कोई अध्यक्ष ही नहीं, खुद ‘राहुल गांधी’ ने कहा
राहुल गांधी की छवि जितनी मजबूत विपक्ष ने खराब की उससे कहीं ज्यादा खुद उनकी ही पार्टी के अलंबरदारों ने उनको पार्टी अध्यक्ष न मानकर खराब कर दी। राजस्थान और मध्यप्रदेश के चुनाव के बाद नेता चयन में राहुल गांधी की एक न चली। हुआ वही जो कांग्रेस में मौजूद मजबूत काकस ने चाहा।
काकस को तोड़ना आसान नहीं
राहुल आज इस काकस को तोड़ना चाहते हैं लेकिन इसे तोड़ पाना अब इसलिए भी असंभव सा हो गया है क्योंकि यह जख्म अब नासूर बन गया है।
सोनिया गांधी भी स्वास्थ्य के चलते अब कांग्रेस की सुपर वैन नहीं रह गई हैं और प्रियंका गांधी वाडरा भी इस स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेस का ढांचा अब तेजी से विखंडन की ओर बढ़ रहा है।
राहुल यदि यह सोच रहे हैं कि वह अध्यक्ष पद छोड़कर कांग्रेस के ढहते किले के कंगूरों को दुरुस्त कर लेंगे तो यह बहुत दूर की कौड़ी है।
कांग्रेस वर्तमान में राजनीतिक रुप से चुक चुके लोगों के कचरे का ढेर बन चुकी है। जिसमें अच्छे लोग भी खोकर दफन हो जा रहे हैं। इन मौका परस्त और खुदगर्ज कांग्रेसियों की अध्यक्ष को लालीपाप थमाने की आदत रही है।
राहुल की उपलब्धि
2009 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 80 में से 21 सीटें जीतीं, इसका श्रेय राहुल गांधी को ही दे दिया था। पंजाब की जीत का श्रेय भी राहुल को दिया गया। तब राहुल गांधी ने इस जीत का श्रेय लेने से इनकार नहीं किया। जबकि इसमें अन्य कारक थे जिनके चलते कांग्रेस की वापसी हुई थी।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मात्र एक सीट जीत सकी है। यूपी में वह अपनी जमीन गंवा चुकी है। राहुल लगातार तीसरी बार अमेठी से सांसद चुने जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्मृति ईरानी से चुनाव हारे हैं। हालांकि वह केरल की वायनाड सीट से जीत कर संसद में पहुंचने में सफल रहे लेकिन कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय ने उन्हें झकझोर कर ऱख दिया।
एक नजर में राहुल
राहुल गांधी ने कैंब्रिज के ट्रिनीटी कॉलेज से एम ए और एमफिल किया है। ग्रेजुएशन करने के बाद राहुल गांधी ने लंदन में मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मॉनीटर ग्रुप के साथ काम किया। सन 2002 में राहुल गांधी मुंबई आधारित कंपनी बैकोप्स सर्विसेज प्राइवेट के डायरेक्टर्स में से एक थे। 16 दिसंबर 2017 को राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को हुआ था। 21 मई 1991 में राहुल गांधी के निधन के समय पहली बार पिता के न रहने के सदमे से भरा राहुल गांधी का चेहरा पहली बार भारतीय मीडिया के सामने आया था। राहुल ने 2004 में राजनीति में कदम रखा। अपने पिता की सीट अमेठी से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और संसद पहुंचे।