आज सर्व पितृ विसर्जन अमावस्या है। पितर पक्ष पूरी तरह पितरों को समर्पित होता है। कहा जाता है साल में यह 15 दिन इसलिए खास होते हैं क्योंकि पितृलोक के द्वार इन दिनों खुल जाते हैं और पितृ अपने परिवार को देखने व मिलने के लिए पितृलोक आते हैं। इसीलिए इन दिनों पितरों को तिलांजलि दी जाती है। और उनसे खुशहाली और समृद्धि का आशीर्वाद देने की प्रार्थना की जाती है। इन दिनों पितृ सूक्त का पाठ पितरों को प्रसन्नता देता है और उनकी नाराजगी को दूर करता है। यदि आपको संस्कृत आती है तो संस्कृत में इसे पढ़ सकते हैं या फिर हिन्दी में इसका पाठ करके पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन में समृद्धि और खुशहाली पा सकते हैं।
आज के पितृविसर्जनी अमावस्या के दिन पीपल की पूजा करनी चाहिए। पीपल की पूजा से पितर प्रसन्न होते हैं। आज अमावस्या दोपहर बाद लग रही है इसलिए 11.32 के बाद साढ़े तीन बजे के बीच में एक लोटे में दूध, जल, तिल शहद और जौ डालकर पीपल की जड़ पर चढ़ाकर पितरों से आशीर्वाद की कामना करें। आपके तमाम संकट दूर हो जाएंगे। शाम को इस स्तोत्र का पाठ करें-
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उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
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तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥
॥ ओम शांति: शांति:शांति:॥
ऐसे करें पाठ
पितृदोष के निवारण के लिए श्राद्धकाल में पितृ सूक्त का पाठ विशेष फलदायक होता है। शाम के समय में तेल का दीपक जलाकर यह पाठ करें तो पितृदोष की शांति होती है। पाठ के पश्चात् पीपल में जल अवश्य चढ़ाएं।
हिन्दी में यह पाठ करें
* जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यंत तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य दृष्टि संपन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूं।
* जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्त ऋषियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूं।
* जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य चंद्र के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूं।
* जो नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक एवं पृथ्वीलोक के जो भी नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
* जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वंदित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
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* प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
* सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टि संपन्न स्वयंभू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं।
* चंद्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित और योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं, साथ ही संपूर्ण जगत के पिता सोम को नमस्कार करता हूं।
* अग्निस्वरूप अन्य पितरों को भी प्रणाम करता हूं, क्योंकि यह संपूर्ण जगत अग्नि और सोममय है।
* जो पितर तेज में स्थित है, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगतस्वरूप और ब्रह्मस्वरूप हैं।
* उन संपूर्ण योगी पितरों को मैं एकाग्रचित होकर प्रणाम करता हूं। उन्हें बारंबार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों।
पितरों की प्रसन्नता के लिए इस स्तोत्र का पाठ भी किया जा सकता है।
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अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज:।।.
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पितृ स्तोत्र के लाभ
जो व्यक्ति पितृ दोष से मुक्ति चाहता है उसे इस पितृ स्तोत्र का रोज पाठ करना चाइये.
पितृ स्तोत्र का पाठ कैसे करे
श्राद्ध पक्ष, अमावस्या या फिर पितरो की पुण्य तिथि पर ब्राह्मण भोजन के समय पितृ स्तोत्र का पाठ किया जाना चाहिए जिसे सुनकर पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।