हकीकत या सिर्फ कल्पना: कैसे हुआ था पृथ्वी का अंत, जानिए महाविनाश की गाथा
अमेरिका के इलिनोइस यूनिवर्सिटी और अर्बाना कैपेन के एस्ट्रोनॉमी और फिजिक्स के प्रोफेसर ब्रायन फील्ड्स के अध्ययन में खगोलीय घटनाओं का अन्वेषण किया गया जो 35.9 करोड़ साल पहले हुए विनाश और उन्मूलन के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। यह डेवोनियन और कार्बोनिफेरस काल के बीच का समय था।
लखनऊ: विशालकाय डायनासोर और कई दूसरे जीव एक झटके में खत्म नहीं हुए। नई तकनीक और खोजों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है। अब तक यह माना जाता था कि 6.6 करोड़ साल पहले एक विशाल पिंड धरती से टकराया। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि पृथ्वी पर जीवन धराशायी हो गया यह टक्कर जिस जगह हुई, वो इलाका आज मेक्सिको में आता है।
कैसे खत्म हुआ था जीवन
डायनासोर के पृथ्वी से साफ हो जाने के कारणों पर आज भी शोध चल रहा है। हाल ही में एक शोध से पता चला है कि पृथ्वी पर कम से कम एक बार ऐसा हुआ है कि अंतरिक्ष से आई कॉस्मिक किरणों के कारण यहां जीवन नष्ट हुआ हो। इस शोध में कहा गया है कि पास के सुपरनोवा से आईं मारक कॉस्मिक किरणें पृथ्वी पर कम से कम एक बार बड़ी मात्रा विनाश कर कई प्रजातियों को विलुप्त करने की जिम्मेदार रही होंगी। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं ने इसकी पुष्टि करने का भी तरीका बताया है के अनुसार शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर पृथ्वी की चट्टानों के रिकॉर्ड को देखा जाए तो वहां से पाए गए कुछ रेडियोएक्टिव आइसटोप के होने से इस स्थिति क पुष्टि की जा सकती है।
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35.9 करोड़ साल पहले हुए विनाश
प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकैडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित एक शोध में अमेरिका के इलिनोइस यूनिवर्सिटी और अर्बाना कैपेन के एस्ट्रोनॉमी और फिजिक्स के प्रोफेसर ब्रायन फील्ड्स के अध्ययन में खगोलीय घटनाओं का अन्वेषण किया गया जो 35.9 करोड़ साल पहले हुए विनाश और उन्मूलन के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं। यह डेवोनियन और कार्बोनिफेरस काल के बीच का समय था।
टीम ने इस काल पर अपना काम केंद्रित किया कयोंकि उस समय की चट्टानों में लाखों पीढ़ियों के पौधों के पराग मौजूद हैं जिनके बारे में लगता है कि वे सूर्य की पराबैंगनी किरणों से जल गए होंगे। यह लंबे समय तक ओजोन परत के गायब होने का भी प्रमाण है। फील्ड का कहना है, “पृथ्वी पर हुई विनाशकारी गतिविधियों जैसे बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोट और ग्लोबल वार्मिंग ओजोन परत को खत्म तो कर सकते हैं. लेकिन इन घटनाओं ने ऐसा कब तक कायम रखा होगा यह बड़ा सवाल है. इसके बजाय हमें प्रस्ताव दिया कि पृथ्वी से 65 प्रकाशवर्ष दूर हुए सुपरनोवा विस्फोट लंबे समय के लिए ओजोन को खत्म रखने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं.”
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सुपरनोवा खतरा
इस अध्ययन के सहलेखिका एड्रीन एर्टल का कहना है, “इसे ऐसे समझें कि आज हमारे सबसे पास का सुपरनोवा खतरा बीटलगूज तारे से है जो हमसे 600 प्रकाशवर्ष दूर है। यह हमें बुरी तरह से नुकसान पहुंचाने वाले 25 प्रकाशवर्ष से काफी दूर है। इस टीम ने ओजोन परत के मिटने के कई और भी खगोलीय कारण खोजे जैसे की उल्कापिंड का गिरना, सूर्य से आने वाली पवने या तूफान, गामा विकिरण प्रस्फोट आदि। इस अध्ययन के एक और सहलेखक जेसी मिलर ने बताया, “ये सभी घटनाएं जल्दी ही खत्म हो जाती हैं और लंबे समय तक ओजोन परत को खत्म नहीं रख सकती हैं, जैसा कि डेवोनियन काल के अंत में हुआ था।
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इस तरह आया महाविनाश
दूसरी ओर सुपरनोवा पूरी पृथ्वी को फौरन ही पराबैगनी किरणों, एक्स रे और गामा किरणों से नहला सकता है। इसके बाद सुपरनोवा के अवशेष पूरे सौरमंडल में छा सकते हैं ।ऐसे में पृथ्वी और उसकी ओजोन परत को हुआ नुकसान करीब एक लाख साल तक कायम रह सकता है। वहीं जीवाश्मों के प्रमाण बताते हैं कि इस महाविनाश के समय जैवविविधता तीन लाख साल तक कम होती रही थी जिसके बाद यह महाविनाश आया। इससे यह अनुमान भी लगाया जा रहा है कि इस समय एक से अधिक सुपरनोवा विस्फोट हुए होंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि अंतरिक्ष में एक के बाद एक सुपरनोवा विस्फोट कोई असामान्य घटना नहीं है।