Jagannath Puri Rath Yatra 2021: जगन्नाथ मंदिर में किसी भी राजनेता का नहीं चलता रसूख

Jagannath Puri Rath Yatra 2021: मंदिर का उपयोग आज तक कोई राजनेता कभी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं कर सका है।

Written By :  Shreedhar Agnihotri
Published By :  Dharmendra Singh
Update: 2021-07-06 19:02 GMT

भगवान जगन्नाथ मंदिर (फोटो: सोशल मीडिया) 

Jagannath Puri Rath Yatra 2021: उड़ीसा के विश्वप्रसिद्व जगन्नाथ मंदिर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शोभा यात्रा निकालने की तैयारियां चल रही हैं। वैष्णव सम्प्रदाय के इस मंदिर की गिनती हिन्दुओं के चार धाम यात्रा में की जाती है। यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर किसी का रसूख नहीं चलता है। यहां तक कि चाहे वह कितने भी बड़े पद पर हो, इतिहास में केवल एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जरूर यहां पहुंची थीं। इसके बाद नेहरू इंदिरा परिवार का कोई भी सदस्य यहां नहीं पहुंच सका।

खास बात यह है कि इस मंदिर का उपयोग आज तक कोई राजनेता कभी राजनीतिक लाभ के लिए नहीं कर सका है। एक बार तो थाईलैंड की रानी को भी इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी थी। स्विटजरलैंड के एक भक्त ने यहां एक करोड़ 78 लाख रुपए दान में दिए पर उसे मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी। क्योंकि वह ईसाई था। यहीं नही 1977 में इस्काॅन के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी पुरी आए पर उनके अनुयायियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर केवल सनातन धर्मावल्बियों को ही प्रवेश की अनुमति दी जाती है। इस मंदिर में विदेशियों ने कई बार हमले किए जिसके बाद सनातन धर्मावलम्बियों को छोड़कर किसी को भी इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती है।


भगवान जगन्नाथ को विष्णु भगवान का दसवां अवतार मानने के कारण ही पुराणों में इस बैकुंठ धाम कहा जाता है। हिन्दू धर्म के प्रसिद्व चार तीर्थों बद्रीनाथ द्वारका रामेश्वररम के बाद इसे चौथाधाम कहा जाता है। यह मंदिर चक्ररेखीय आकार का है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह लगे हैं। मंदिर में दर्शन के लिए चारों तरफ द्वार हैं। जहां से श्रद्वालु प्रवेश करके दर्शन करते हैं।
हर वर्ष निकलने वाली रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ को रथ पर आसन देकर उनके बडे़ भाई बलराम और सुभद्रा के साथ मंदिर से निकलकर गुंण्डिच्चा मंदिर तक पहुंचाया जाता है। रथयात्रा की वर्षों पुरानी परम्परा है। साथ ही इसके पीछे एक कहानी भी जुड़ी है। उसी के बाद यह परम्परा चली आ रही है। हांलाकि पिछले साल कोरोना के कारण रथयात्रा पर बाधा आई थी, लेकिन फिर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस यात्रा को कोरोना प्रोटोकाल के तहत निकाला गया था।

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