Odisha News: गुलज़ार हुआ ओडिशा का समुद्र तट, ओलिव रिडले कछुओं ने दिए 5 लाख से ज्यादा अंडे

Odisha News: अभयारण्य के वन रेंज अधिकारी बिचित्रानंद बेहरा ने बताया कि मादा कछुओं को यौन रूप से परिपक्व होने और अंडे देने में लगभग 20 साल लगते हैं।

Update:2023-03-19 17:59 IST
सांकेतिक तस्वीर (फोटो: सोशल मीडिया)

Odisha News: ओडिशा के गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य में इस बार ओलिव रिडले समुद्री कछुओं ने 5 लाख 12 हजार से ज्यादा अंडे दिए हैं। इन कछुओं का सालाना चार दिवसीय अरीबाडा (बड़े पैमाने पर अंडे देना) ईस अभयारण्य के भीतर नसी -1 और नसी -2 द्वीपों पर 18 मार्च को समाप्त हुआ। इस बार 9 से 13 मार्च के बीच कछुओं द्वारा कम से कम 5,12,175 अंडे दिए गए जबकि पिछले साल 25 से 28 मार्च के बीच 5,01,157 अंडे दिए गए थे।

परिपक्व हो गई मादा कछुए

रिपोर्ट्स के अनुसार, अभयारण्य के वन रेंज अधिकारी बिचित्रानंद बेहरा ने बताया कि मादा कछुओं को यौन रूप से परिपक्व होने और अंडे देने में लगभग 20 साल लगते हैं। दो दशक पहले समुद्र तट पर जन्मे कछुए के बच्चे अब अंडे देने लायक हो गए हैं। यह इस वर्ष कछुओं द्वारा दिए जा रहे अंडों की संख्या में वृद्धि का ये कारण हो सकता है।

बंगाल की खाड़ी से गहिरमाथा तक

हर साल वयस्क मादा कछुए अपने टेबल टेनिस गेंद के आकार के अंडों के लिए घोंसले खोदने के लिए बंगाल की खाड़ी से गहिरमाथा तक रेंगती हैं। गहिरमाथा में कछुओं ने 2019 में कम से कम 4,51,648, जबकि 2018 में 6,65,185, 2017 में 6,68,055, 2016 में 51,995 और 2015 में 4,13,334 अंडे दिए थे। कछुओं ने 2014 में गहिरमाथा छोड़ दिया था। 2000 में रिकॉर्ड 7,11,500 अंडे दिए थे। इसी तरह, 2021 में लगभग 3,49,694 कछुओं ने 9 मार्च से 23 मार्च तक अंडे दिए।

लुप्तप्राय हैं ओलिव रिडिले

इस वर्ष गहिरमाथा में पांच लाख से अधिक कछुओं का आगमन दशकों से किए गए संरक्षण कार्यों को दर्शाता है क्योंकि इन जीवों को लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में रखा गया था। उन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार बाघ और हाथी के बराबर संरक्षित जीव घोषित किया गया था। रेंजर के अनुसार, घोंसले के शिकार स्थलों पर शिकारियों के प्रवेश को रोकने के लिए वन रक्षकों को तैनात किया गया है। 45 दिनों के बाद अंडों से बच्चे निकलेंगे और समुद्र में जाने का अपना रास्ता खोज लेंगे। अंडों से निकलने वाले एक हज़ार छोटे कछुओं में से कुछ ही ज़िंदा बच पाते हैं।

ओलिव रिडले की खासियत

ओलिव रिडले दुनिया का दूसरा सबसे छोटा समुद्री कछुआ है। दुनिया का सर्वाधिक संकटग्रस्त जीवित समुद्री कछुआ ओलिव रिडले हर साल जाड़ों में ओडिशा के समुद्री तट पर अंडे देने आता है और गर्मियों में लौट जाता है। ओलिव रिडले समुद्री कछुओं की उन पांच प्रजातियों में से एक है जो प्रजनन के लिए भारतीय तटों का रुख करते हैं।

ऑलिव रिडले प्रजाति की मादा कछुआ सिर्फ अपने अंडे देने के लिए समुद्र तट पर आती है। इसी प्रजाति के नर कछुए के बारे में कहा जाता है कि वह अपने पूरे जीवनकाल में कभी समुद्र किनारे रेत पर नहीं आता। मादा कछुआ भी समुद्र तट पर एक बार में सैकड़ों अंडे देने के बाद अपने अंडों को देखने के लिए दोबारा नहीं लौटती है।

ओडिशा के तट

ओडिशा के गंजाम ज़िले में मछुआरों के तीन गांवों- पोडमपेट्टा, गोखरगुड़ा और पुरुनाबंधा से सटे 4.1 किलोमीटर में फैले समुद्र तट पर ये कछुए प्रजनन के लिए आते हैं। ये जगह ऋषिकुल्या नदी के मुहाने पर है, जहां नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है। ओलिव रिडले के प्रजनन की जगहों को पहली बार 1990 के दशक में चिन्हित किया गया था। उसके बाद उनकी सुरक्षा के लिए सरकार और गैर सरकारी संगठन आगे आए।

ओडिशा ही क्यों

वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती के चुंबकीय क्षेत्र और समुद्र की लहरें इन कछुओं को यहां आने में मदद करते हैं। चुंबकीय क्षेत्र उन्हें उस जगह आने को प्रेरित करता हैं, जहां की रेत को उन्होंने पहली बार देखा था।
अंडों से बाहर निकलने के बाद चूंकि नन्हें ओलिव रिडले कछुओं को पानी में जाने तक काफी दूरी तय करनी पड़ती है इसलिए स्थानीय लोग बाल्टी में उन्हें रख कर पानी में छोड़ते हैं।समुद्र के इस हिस्से के 10 किलोमीटर के दायरे में मशीन से चलने वाली मछली पकड़ने की नावें प्रतिबंधित हैं। स्थानीय लोग, ओलिव रि़डले कछुओं के सैकड़ों साल से चलते आ रहे इस मौसमी अप्रवासन में उनकी मदद करते हैं।
जब नन्हें कछुए अंडों से निकल कर समुद्र की ओर जाते हैं तब वह नज़र अद्भुत और अलौकिक होता है। आप भी कभी जरूर जाइये और यह नज़ारा देखने के साथ साथ नन्हें कछुओं को समुद्र तक पहुंचने में मदद करिए।

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