हंगामा है फिर बरपा: मैं शराब नहीं, इस उत्तम प्रदेश की चुनावी जरूरत हूं

Update:2016-04-05 18:22 IST

डॉ. अजय कुमार मिश्रा

लखनऊः समस्याएं और उत्तर प्रदेश एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जहां समस्याएं अधिक दिखें तो यकीनन आप मान लीजिए कि आप उत्तर प्रदेश में हैं| जहां बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अव्यवस्था, गरीबी और अशिक्षा से आपका सामना होगा| आए दिन आंगनबाड़ी, शिक्षामित्र, पीएचडी धारक, बीएड धारक, बीटीसी धारक, विभिन्न विभागों के संविदाकर्मी अपनी नियुक्ति / स्थायी नियुक्ति के लिए धरना देते रहते हैं| इन सबके लिए कोई एक सरकार नहीं बल्कि प्रदेश में शासन करने वाली समस्त राजनैतिक पार्टियां जिम्मेदार हैं| दरअसल प्रदेश में सारा खेल चुनावी समीकरण को ही लेकर चलता रहता है आम आदमी की उन्नति की बात सिर्फ कागजों तक सीमित रहती है|

कागजों में ढेरों नियम-कानून और लाभार्थी दिखेंगे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और होती है| उत्तर प्रदेश में समस्त प्रकार के चुनावों में शराब एक अहम रोल अदा करती चली आ रही है| चुनावी मुद्दे एक तरफ शराब एक तरफ। प्रदेश सरकार ने साल 2016-17 एवं साल 2017-18 के लिए आबकारी नीति का निर्धारण 17 फरवरी 2016 को किया है जिसके माध्यम से शराब में उत्पादन शुल्क में कटौती की गई है| परिणामतः एक अप्रैल 2016 से उत्तर प्रदेश में शराब अब सस्ते मूल्य पर मिल रही है|

भारत में बनी विदेशी शराब की कीमत में 25 प्रतिशत तक की मूल्य में कमी उत्तर प्रदेश में आई है| इसके अतिरिक्त, देशी शराब की कीमतों में भी लागू शुल्क में कमी के कारण मूल्य में कमी आई हैं | इसके पीछे का उद्देश्य सरकार यह बता रही है की शराब की तस्करी (पडोसी राज्यों से) को रोकने के लिए एवं आबकारी राजस्व के लक्ष्य प्राप्ति के लिए यह करना जरुरी था| यहां सोचने वाली बात यह है कि - क्या यह आम जनता के हितों को सुरक्षित रखने के लिए अत्यंत आवश्यक था ?

उत्तर प्रदेश है उत्तम प्रदेश

भारत की साल 2011 की जनगणना के अनुसार देखा जाय तो उत्तर प्रदेश जनसंख्या की दृष्टि से देश में अपना पहला स्थान रखता है| जिसकी 77.72 प्रतिशत आबादी गावों में रहती है और 22.28 प्रतिशत शहरों में रहती है | सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार के वर्ष 2009-10 के बेरोजगारी दर के आकड़ों के आधार पर उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी दर 1000 पर 29 है |

उत्तर प्रदेश के लोगों का साक्षरता प्रतिशत 2011 की जनगणना के आधार पर 69.72 प्रतिशत है जो की देश के साक्षरता प्रतिशत से 4.32 प्रतिशत कम है| भारतीय रिजर्व बैंक की 2013 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर देखा जाय तो निर्धनता 29.43 प्रतिशत है जो की देश की निर्धनता से 7.51 प्रतिशत अधिक है| यह समस्त आकड़े स्वयं प्रदर्शित कर रहे हैं कि जनसंख्या की दृष्टी से प्रथम होते हुए भी हम कितने पीछे हैं।

मैं शराब हूँ

विश्व स्वास्थ्य संगठन की शराब पर वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2014 के अनुसार विश्व की कुल आबादी का 38.3 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं और भारत देश की कुल आबादी का 30 प्रतिशत लोग प्रतिदिन शराब का सेवन करते हैं। इनमें से 11 प्रतिशत लोग मध्यम से अधिक सेवन करने वालों की श्रेणी में हैं| आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन (OECD) की मई 2015 की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार शराब के सेवन में 1992 से 2012 में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है| देश के युवाओं में बढ़ती यह लत अत्यंत ही चिंता का विषय है|

भारत में 3.3 लाख लोगों की मृत्यु शराब पीने की वजह से हुई है| अधिकांश डाक्टर आम लोगो को शराब पीने से मना करते है| लिवर संबंधी अधिकांश बीमारियां शराब के सेवन से होती हैं| अधिकांश युवा अपने जीवन का अंत शराब पीने की वजह से प्रारम्भिक उम्र में ही कर लेते हैं| स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा शराब का सेवन देश में गरीबी की मुख्य वजह है | उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र , गुजरात समेत कई राज्यों में काफी संख्या में लोगों की जान शराब पीने की वजह से गई है|

शराब पर प्रतिबंध ही विकास का आधार

कुछ विशेष दिनों पर शराब पर प्रतिबंध देश के सभी राज्यों में है जैसे धार्मिक उत्सवों, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती| भारत देश में गुजरात, नागालैंड, मणिपुर, लक्ष्यदीप और बिहार में वर्तमान में शराब पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध है| केरल में शराब पर प्रतिबंध चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा रहा है| इसके अलावा पाकिस्तान समेत दुनिया के 14 देशों में शराब पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है| निसंदेह विकास में मजबूत योगदान शराब में प्रतिबंध के बाद ही प्राप्त होता है |

शराब के मूल्य में कमी से लाभ

हानि किसे ? कोई भी नियम कानून व्यवस्था में सुधार लाने और आम जनता को लाभ पहुचाने के लिए होता है सरकार का एक मात्र उद्देश्य राजस्व बढ़ाना नहीं हो सकता| राजस्व बढ़ाने से अत्यधिक महत्वपूर्ण है कि आम जनता के हितों को प्राथमिकता दी जाय और उन्हें काबिल बनाया जाय | पिछले दो दशकों में एक मूलभूत परिवर्तन हर तबके में दिखा है वो है दूध की जगह शराब के सेवन में वृद्धि और ऐसा इसलिए हो पाया है की लोगों में अब सामाजिक भय और संस्कार लुप्त हो रहा है और उनके खुद की जरुरत ही सर्वोपरि है और उसकी पूर्ति के लिए वो हर संभव कार्य करने को तैयार रहते हैं चाहें वह सही कार्य हो या फिर गलत | सरकार भी इसको अपने पक्ष में करने के लिए हर रणनीति लागू करती है |

ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है की शराब के सेवन से न केवल गरीबी आती है बल्कि अगली पीढ़ी की नस्ल भी बर्बाद हो जाती है और संस्कार और शिक्षा का पलायन भी हो जाता है | शराब की कीमतों में कमी लाकर सरकार ने 2017 के चुनाव में एक सशक्त आवश्यक बिंदु की पूर्ति कर दी है पर यदि हम आप यह सोच रहे है की सिर्फ सरकार ही इसका लाभ उठा पाएगी तो गलत है क्योकि प्रत्येक पार्टी चुनाव में इसका लाभ उठाने को अग्रसर है | नुकसान किसका हो रहा है वो हर क्षण हर पल की खबर समाचार पत्रों में पढ़कर हम सब स्वयं में आंकलन निसंदेह प्रतिदिन कर रहें है | शराब के मूल्य में कमी से निसंदेह लाभ के रूप में राजनीतिक पार्टियों को उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावी खर्चो में अप्रत्यक्ष रूप से कमी जरुर दिखाई पड़ रही है|

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