राहुल ने कभी राम-कृष्ण को बताया था 'काल्पनिक पात्र', आज उसी दर पर टेक रहे मत्था

Update:2017-11-24 14:22 IST
क्या मंदिर में माथा टेकना राहुल को गुजरात में सत्ता दिला पाएगा?

विनोद कपूर

लखनऊ: गुजरात विधानसभा चुनाव में एक दिलचस्प चीज देखने को मिल रही है और वो है मंदिर। ये अयोध्या का राम मंदिर नहीं, बल्कि नेताओं में एकाएक भगवान के प्रति आस्था जग गई है। ऐसे नेता जो अपने घर के पास के मंदिरों की ओर देखते भी नहीं, वो मतदाताओं से मिलने के पहले मंदिरों में भगवान से मिल रहे हैं।

चुनाव से जुड़ी खबरों के साथ ही एक खबर बड़ी प्रमुखता से सामने आ रही है कि प्रचार के लिए आए नेता ने मंदिर में दर्शन कर आशीर्वाद लिया। इनमें उन नेताओं के नाम भी होते हैं, जो आमतौर पर मंदिर जाने या धार्मिक होने के लिए नहीं जाने जाते। अब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को ही देख लीजिए जिस इलाके में प्रचार के लिए जाते हैं, वहां के प्रसिद्ध मंदिर में माथा जरुर टेकते हैं।

कभी राम-कृष्ण को बताया था 'काल्पनिक पात्र'

कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे राहुल गांधी इस बार गुजरात चुनाव में पूरा जोर लगा रहे हैं। अब तक राम और कृष्ण को 'काल्पनिक पात्र' बताने वाले राहुल में मंदिरों के प्रति आस्था जग गई है। राम सेतु को तोड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करने वाली कांग्रेस ने राम, कृष्ण को काल्पनिक पात्र बताने में ऐतिहासिक और पैाराणिक साक्ष्यों को भी नजरअंदाज कर दिया गया था।

राहुल नहीं कर रहे मुसलमानों की बात

आमतौर पर विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों की बात करने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष मुसलमानों या उनकी समस्याओं का नाम भी नहीं ले रहे हैं। मानो, इस देश में अब तक अल्पसंख्यक कहे जाने वाले मुसलमानों की सभी समस्या खत्म हो गई हो। हालांकि, मुसलमान इस देश में अब अल्पसंख्यक नहीं हैं। उनकी आबादी देश की कुल आबादी का 18 प्रतिशत है। मतलब, लगभग 25 करोड़। अल्पसंख्यक का दर्जा तभी तक रहता जब आबादी 10 प्रतिशत के आसपास हो।

खूब घूमे मंदिर-मंदिर

राहुल ने सूरत के मेघमाया मंदिर में मत्था टेका। उन्होंने, पिछले दौरे की शुरुआत अक्षरधाम मंदिर से की थी। स्वामी नारायण पंथ अक्षरधाम मंदिर का संरक्षक है। राज्य का पाटीदार इस मंदिर में विशेष आस्था रखता है। कुछ ऐसा ही हाल मेघमाया मंदिर का भी है।

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'वोटबैंक' के अलावा ये भी है मंदिर जाने की वजह

अब तक ये बात तो आपको समझ आ ही गई होगी, कि राहुल का मंदिर भ्रमण आस्था से नहीं बल्कि 'वोटबैंक' से जुड़ा है। इसके बाद की कहानी हम बता देते हैं।

देश के किसी भी राज्य की जनता की अपेक्षा गुजराती कहीं अधिक धार्मिक होते हैं। सामान्य जीवन में भी वो अपने दिन का आरंभ और समापन भगवत नाम से ही करते हैं। आलम ये है, कि जब वो अपनी बहन, बेटी या बेटे की शादी के लिए रिश्ता देखते हैं, तो भी इस बात का ध्यान देते हैं कि परिवार संपन्न और धार्मिक हो। कुछ ऐसा ही उनका राजनीतिक मिजाज भी है। उनकी नजर हर उस नेता पर होती है जो उनके पास वोट की गुहार लगाने आता है कि उसने उनके आराध्य को नमन किया या नहीं।

गुजरातियों का मिजाज ही धार्मिक है

संभवत: राहुल ने गुजराती मतदाताओं की ये नब्ज पकड़ ली है। गुजरात में कोई भी चुनाव हो, इस दंगल में उतरने वाली पार्टियां अपने कद्दावर नेताओं का प्रचार कार्यकर्म ऐसा तय करती हैं कि वो मंदिरों में माथा अवश्य टेकें। पार्टियां इससे जुड़ी खबरों को वायरल भी करती हैं कि हमारे नेता फलां मंदिर गए, वहां आशीर्वाद लिया। ये पार्टियां इस बात का भी ख्याल रखती हैं की विरोधी दल का बड़ा नेता मंदिर गया या नहीं। लिहाजा गुजरात में नेतागिरी करनी है तो भले ही आप पढ़े लिखे न हों, शासन प्रशासन की समझ हो या ना हो। लेकिन आपका धार्मिक होना बहुत जरुरी है। वर्ना आपकी राजनीति शुरू होने से पहले ही समाप्त समझिए।

अब कीर्ति मंदिर पहुंचे राहुल

गुजरात चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी शुक्रवार (24 नवंबर) को महात्मा गांधी के गृह क्षेत्र पोरबंदर पहुंचे। राहुल ने अपने इस दौरे की शुरुआत कीर्ति मंदिर पहुंचकर की। इस दौरान माछीमार अधिकार सभा के लोगों ने उनका स्वागत किया। राहुल ने मछुआरों की समस्या को सुना। माछीमार अधिकार सभा के लोगों ने राहुल गांधी को अपनी समस्याओं के बारे में बताया। उन्होंने फिसिंग के लिए अलग मंत्रालय और नीति बनाने की मांग की। खास बात यह रही, कि एक बार फिर राहुल ने मंदिर में मत्था तक दौरे की शुरुआत की।

भगवान के बाद हार्दिक-अल्पेश का भी सहारा

राहुल, अहमदाबाद के दलित शक्ति केंद्र भी गए और दलितों के स्वाभिमान माने जाने वाले दलित शक्ति केंद्र में जाकर छुआ-छूत को खत्म करने लिए शपथ भी ली। गुजरात के मुसलमान इस बार पाटीदार नेता हार्दिक पटेल में अपना भविष्य देख रहे हैं। हार्दिक को कुछ युवा पटेलों का समर्थन है लेकिन पटेल ही उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उनमें गंभीरता है भी नहीं। बचकानी बातें और हरकतें उनके आंदोलन के समय उपर उठे ग्राफ को लगातार नीचा करती जा रही है। गुजरात में कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है इसलिए पार्टी जिसका भी समर्थन मिले ले रही है। हार्दिक, अल्पेश जैसे नेता कांग्रेस को कितना फायदा देंगे या कितना नुकसान करेंगे ये आगे देखने की बात होगी। लेकिन राहुल ने अपनी ओर से पूरा जोर लगाया हुआ है ।

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