ब्रजलाल की बगिया में बुलबुल का घोंसला और तमिलनाडु का लाल केला
मैंने पिछले वर्ष तमिलनाडु का लाल केला लगाया था , जो मुझे पद्मश्री राम शरण वर्मा बाराबंकी से प्राप्त हुवा था। इस वर्ष इतना पाला पड़ा कि इस केले के पत्ते झुलस गये थे, फिर भी फल आया जिसे मैंने अख़बार में लपेटकर बोरी में डाल दिया। आज बोरी खोली गयी तो कुछ केलों को छोड़कर बाक़ी घार पक गयी।
ब्रजलाल, पूर्व डीजीपी
मेरे गार्डेन में बुलबुल ने कमरख के पेड़ के नीचे कामिनी की छोटी झाडी में घोंसला बनाया। घोंसले का चुनाव बड़ी सावधानी से किया, बुलबुल दम्पत्ति ने, जिससे कौवा और महोखा इनके अंडे- बच्चों को नुक़सान न पहुँचा पाये।घोंसला ऊपर से कमरख के घने पत्तों से ढका है और गार्डरूप के बिल्कुल पास।
बुलबुल को हम लोगों पर पूरा विश्वास कि उन्हें और बच्चों को कोई ख़तरा नहीं है और हम लोगों की नज़दीकी उपस्थिति से कौवा और महोखा फटक नही सकते । अब अंडों से नन्हे बुलबुल निकल आये है। जब मैंने कुछ इंच से विडीयो बना रहा था, तो नन्हे बच्चों को अहसास हुवा कि उनके मम्मी- पापा खाना लेकर आये है और अपने मुँह खोल दिये।
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भारत में बहुतायत में पायी जाने वाली बुलबुल को प्रतीक के रूप में प्रयोग करते हुए अनेकों गज़लें लिखी गई हैं। एक गज़ल वतन के वास्ते का यह मक्ता (मुखडा) बहुत लोकप्रिय हुआ था-
क्या हुआ गर मिट गये अपने वतन के वास्ते।
बुलबुलें कुर्बान होती हैं चमन के वास्ते॥
यहां यह बात उल्लेखनीय है कि केवल नर बुलबुल ही गाता है, मादा बुलबुल नहीं गा पाती है। बुलबुल कलछौंह भूरे मटमैले या गंदे पीले और हरे रंग के होते हैं और अपने पतले शरीर, लंबी दुम और उठी हुई चोटी के कारण बड़ी सरलता से पहचान लिए जाते हैं।
एक बात और
मैंने पिछले वर्ष तमिलनाडु का लाल केला लगाया था , जो मुझे पद्मश्री राम शरण वर्मा बाराबंकी से प्राप्त हुवा था। इस वर्ष इतना पाला पड़ा कि इस केले के पत्ते झुलस गये थे, फिर भी फल आया जिसे मैंने अख़बार में लपेटकर बोरी में डाल दिया। आज बोरी खोली गयी तो कुछ केलों को छोड़कर बाक़ी घार पक गयी।
यह उतना लाल तो नही है,जितना तमिलनाडु में होता है, लेकिन उम्मीद है कि बाक़ी पौधे यहाँ के वातावरण में ढलकर आगे जो फल देंगे , वे तमिलनाडु में पैदा होने वाले केलों की तरह पूरा लाल होंगे। मेरे गार्डेन में हाजीपुर बिहार का छोटा चिनिया केला और कर्नाटक का इलायची केले भी लगे है जो फल दे रहे है।