राग - ए- दरबारी: सिविल सेवा में सीधी भर्ती: बहुत परतें हैं इस निर्णय में
सवाल अनेक हैं और सरकार ही उत्तरदायी है। आईएएस में भर्ती लिए छात्रों को जी तोड़ मेहनत करके देश का मुश्किल इम्तहान क्वालीफाई करना होता है। और उसमें भी केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव स्तर तक पहुँचने के लिए कम से कम 20 वर्ष लगते हैं। सबसे पहले तो सरकार संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाने वाली परीक्षा सिस्टम पर अपनी बेबाक राय दे कि क्या उसे सिस्टम पर आपत्ति है अथवा चुने हुए परीक्षार्थियों की ट्रेनिंग पर जो उसे ये कदम उठाना पड़ा।
माना जा रहा है कि इन सीधी भर्ती वाले पात्रों को विभाग विशेष की विशेषज्ञ नॉलेज होगी लेकिन वे प्रशासनिक अनुभव कहाँ से लाएंगे जो किसी भी आईएएस अफसर को जिले की कलेक्टरी और सचिवालय की पोस्टिंग से मिलता है। क्या प्राइवेट सेक्टर और केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली में इतना साम्य है कि कोई भी व्यक्ति सीधा सरकार में पहुँच कर परफॉरमेंस दे सके। इसका जवाब पेंडुलम की तरह इधर उधर ही दिखेगा।
अब आते हैं इस सिस्टम के प्रति सबसे बड़ी आशंका से कि क्या प्राइवेट सेक्टर से भी उसी कंपनी के लोग सरकार में लिए जा सकते हैं जो सरकार की सबसे करीबी होगी? सरकार का दायित्व है कि वह इस आशंका को निर्मूल साबित करे। फिर प्रारंभिक तौर पर यह सामने आया है कि नियुक्ति तीन वर्षों के लिए होगी। क्या नियुक्ति के बाद ये लोग वापस प्राइवेट सेक्टर पहुँच कर सरकार में ली गयी अपनी जानकारी को इस्तेमाल नहीं करेंगे? क्या यह सरकार की गोपनीयता पर खतरा नहीं माना जायेगा? इस बात की भी क्या गारंटी है कि इन भर्तियों में सिर्फ और सिर्फ योग्यता ही मापदंड होगा , अपना कैडर भर्ती करने की कोई चेष्टा नहीं होगी? बहुत मुश्किल है इन सब सवालों का जवाब देना लेकिन जब सरकार ने तय कर ही लिया है तो इसे लागू तो होना ही है।
अंत में - ऐसा क्या मोहभंग हुआ मोदी सरकार का मौजूदा ब्यूरोक्रेसी से जो उसको यह नयी व्यवस्था लानी पड़ी। इसमें अनेक परते हैं जिसका खुलासा करने के बाद ही सरकार को इस व्यवस्था को लागू करना चाहिए।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)