Bihar Bridge Collapse: बिहार के ढहते हुए सेतु

Bihar Bridge Collapse: जिस बिहार राज्य पर उसकी विशिष्टताओं के कारण बिहार की जनता गर्व का अनुभव करती थी, आज वही बिहार उन्हें शर्मसार कर रहा है

Report :  Yogesh Mohan
Update:2024-07-06 12:26 IST

Bihar Bridge Collapse ( Social- Media- Photo)

Bihar Bridge Collapse: अतीतकाल से ही बिहार राज्य सम्पूर्ण विश्व में आकर्षण का केन्द्र रहा है। इस राज्य में नालन्दा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख केन्द्र रहे हैं, यह राज्य महात्मा बुद्ध की कर्मस्थली रहा है एवं भगवान श्रीराम का भी बिहार से अटूट संबंध रहा है। ऐसा ऐतिहासिक महत्व वाला बिहार राज्य वर्तमान में असामाजिक तत्वों तथा भ्रष्टाचार का केन्द्र बना हुआ है, जहाँ कोई भी उद्योगपति अपना व्यवसायिक कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहता और ना ही शिक्षा के क्षेत्र में कोई निवेश करना चाहता है। जिस बिहार राज्य पर उसकी विशिष्टताओं के कारण बिहार की जनता गर्व का अनुभव करती थी, आज वही बिहार उन्हें शर्मसार कर रहा है। राजनीति के क्षेत्र में पलटूराम की राजनीति भी बिहार से ही प्रारम्भ हुई हैं।


विगत एक माह के अन्तराल में बिहार राज्य में नदियों एवं अन्य स्थानों पर बने हुए अनेकों नवनिर्मित, निर्माणाधीन एवं कुछ प्राचीन पुल ताश के पत्तों के सदृश धाराशायी हो गए और सतत रूप से इस श्रृंखला में वृद्धि हो रही है। यह ईश्वर की अनुकम्पा है कि इतनी वृहद दुर्घटनाओं के पश्चात भी जान-माल की अधिक क्षति नहीं हुई, परन्तु पुल का गिरना एक अत्यन्त ही अशोभनीय घटना है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य होना चाहिए कि स्वतंत्रता से पूर्व भारत में अंग्रेजों के द्वारा प्रमुख नदियों पर बड़े-बड़े पुलों का निर्माण किया गया, जोकि अभी तक भी सुदृढ़ अवस्था में हैं, उनपर आज भी भारी वाहनों का आवागमन होता है। आशा है कि वे सुदृढ़ पुल आगामी 250-300 वर्ष तक बिना किसी मरम्मत के चलते रहेंगे।


चिंतन का विषय यह है कि भारत के इंजीनियरों व ठेकेदारों के द्वारा बनाए हुए पुलों का निर्माण कार्य कितनी उपेक्षा से किया जाता है कि जोकि निर्माणधीन अवस्था अथवा संचालन से पूर्व ही खंडित हो जाते हैं। इन समस्त पुलों का निर्माण परिवहन मंत्रालय द्वारा कराया जाता है, इनका तकनीकी नक्शा भी मंत्रालय के इंजीनियरों के द्वारा तैयार किया जाता है एवं उसमें प्रयोग की जाने वाली निर्माण सामाग्री, यथा - लोहा, सीमंेट, डस्ट आदि भी इंजीनियरों के ज्ञान के अनुरूप ही प्रयोग करके, अन्त में अनेकों उच्च अधिकारियों के द्वारा अपने स्तर पर निरीक्षण कर प्रमाणित किया जाता है।


इतना सब होने के पश्चात भी यदि पुल की गुणवत्ता अत्यन्त निम्न स्तर की हो तो उससे दो बाते स्पष्ट होती हैं कि या तो इन पुलों के निर्माण में संलग्न इंजीनियर व अधिकारियों का ज्ञान पूर्ण नहीं है या वे पुल निर्माण कार्य में ही सक्षम नहीं हैं। इसके इतर इन पुलों के निर्माण का ठेका लेने वाले ठेकेदार ने पुल निर्माण सामग्री में कुछ हेरा-फेरी की है। दोनों ही स्थितियाँ अत्यधिक शर्मनाक है, क्योंकि पुल के ऊपर दिन-रात असंख्य मनुष्यों का आवागमन होता है और जब ये पुल ही सुदृढ़ नहीं होंगे तो इस प्रकार की दुर्घटनाओं का भविष्य में भी होने पर कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।


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