वैक्सीनेशन की राह में रोड़ा बने "प्रोपेगेंडा वेरिएंट" !

जो लोग भी वैक्सीन को लेकर आशंका पैदा कर रहे हैं, अफवाहें फैलाने का कुचक्र चला रहे हैं वो निश्चय ही भोले-भाले भाई-बहनों के जीवन के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसी झूठी और मनगढंत अफवाहों से सतर्क रहने की जरूरत है।

Written By :  Anand Upadhyay
Published By :  Ashiki
Update:2021-06-09 14:56 IST

टीकाकरण (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल ​मीडिया)

सवा साल के कोविड-19 काल में नौवीं बार राष्ट्र के नाम संबोधन के माध्यम से प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रवासियों को 21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन से देश के प्रत्येक राज्य में 18 साल से ऊपर की आयु के सभी नागरिकों के लिए मुफ्त वैक्सीन उपलब्धता की घोषणा कर शत प्रतिशत वैक्सीनेशन की पुरज़ोर अपील करते हुए यह भी इन्गित किया कि, जो लोग भी वैक्सीन को लेकर पूरे देश में आशंका पैदा कर रहे हैं, अफवाहें फैलाने का कुचक्र चला रहे हैं वो निश्चय ही भोले - भाले भाई- बहनों के जीवन के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसी झूठी और मनगढंत अफवाहों से सतर्क रहने की जरूरत है।।

निश्चय ही देश में टीकाकरण की रफ्तार को अपेक्षित गति न मिलने के कतिपय प्रशासनिक व प्रबन्धकीय कारण भी रहे हैं किन्तु दूसरी ओर अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले विपक्षी पार्टी के नेताओं, तथाकथित धर्म गुरुओं और साम्प्रदायिक ताकतों के अलमबरदारो , प्रगति वादी बुद्धि जीवी वर्ग के समूहों से जुड़े लोगों, पत्रकारिता के पेशेवर जमात के एक समूह द्वारा सुनियोजित अभियान के तहत दोनों भारतीय वैक्सीन के खिलाफ लगातार दुष्प्रचार करने का निन्दनीय षड़यंत्र रच कर आम जनता को दिग्भ्रमित करने का प्रयास किया है।

डब्लूएचओ ने फिर कहा है कि, कोरोना के मौजूदा स्वरूप के साथ ही नये वैरिएन्ट के खतरों को करीब 80 फीसद टीकाकरण करके कम किया जा सकता है। डब्लू एच ओ के आपातकाल प्रमुख माइकल रेयान ने बयान जारी करते हुवे बताया है कि,केवल वैक्सीन लगाने का अभियान तेज करके ही इस महामारी से मुक्ति पाई जा सकती है।


उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष भारतीय चिकित्सा विज्ञानियों व शोधकर्ताओं के समयबद्ध अथक प्रयासों के जरिए भारत ने कोविड 19से त्वरित लड़ाई में सफ़लता पाने की दिशा में आगे बढ़ कर स्वदेश निर्मित दो विविध वैक्सीन क्रमशः कोवैक्सीन और कोविशील्ड का निर्माण कर पूरे विश्व में भारत की कीर्ति पताका फहराने का सराहनीय काम कर दिखाया। परन्तु दुर्भाग्य पूर्ण है कि इस पहल की सराहना करने की वजाय सिर्फ निगेटिव किरदार निभाने की अपनी मौजूदा परम्परा के तहत भारतीय जनता पार्टी विरोधी व विशेषकर मोदी से एलर्जी रखने वाली देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी और उनकी टीम के सारे सिपहसलारो ने भारतीय टीकों और उनमें भी नितान्त स्वदेशी कम्पनी भारत बायोटेक, हैदराबाद द्वारा निर्मित कोवैक्सीन के खिलाफ मनगढंत, आधारहीन, अवैग्यानिक व बचकाने आरोप लगाने का निहित एजेन्डे के तहत ही अभियान चलाकर जहाँ भारतीय मेधा का तिरस्कार करने का निन्दनीय कार्य किया ,वही दूसरी तरफ सुनियोजित तरीके से फैलाए गये इस प्रोपेगन्डा के जरिए भारत की जनता को व्यापक तौर पर दिग्भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

हद तो तब हो गयी जब भारत को वैश्विक स्तर पर नीचा दिखाने के राष्ट्र विरोधी अभियान का किरदार निभाने के लिए कोविड की अप्रत्याशित दूसरी लहर की विभीषिका को कान्ग्रेसी नेताओं के द्वारा इसे इन्डियन वैरियेन्ट संबोधित करने के दुष्प्रचार को हवा देने में राहुल गांधी भी अगवा भूमिका निभाते नज़र आए। ज्ञातव्य है कि यह दुष्कृत्य तब किया जा रहा था, जबकि डब्लू एच ओ ने इस बात को निषिद्ध घोषित कर दिया है कि कोविड महामारी के किसी नये म्यूटेन्ट अथवा वैरिएन्ट को किसी भी देश विशेष से नाम से न तो जोड़ा जाए और न ही किसी देश का नामांकन कर संबोधित ही किया जाए।


एक तरफ डब्लू एच ओ ,यूनिसेफ, अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रास जैसे संगठनों ने भारतीय वैक्सीन की पहल को हाथो हाँथ लेकर स्वागत ही नहीं किया अपितु कोविड की भीषण विभीषिका से रूबरू अनेक देशों ने भारतीय वैक्सीन की मांग भी कर दी। भारत में कोरोना की पहली वेब को समाप्त होने के परिदृश्य के दृष्टिगत भारत सरकार ने अपनी सर्वथा मानवीयता और उदारता पर आधारित सर्वे जनः सुखिनो भवन्तु व वसुधैव कुटुंबकम् अवधारणा के तहत90से ज़्यादा देशों में विशेष कर गरीब और अल्पविकसित राष्ट्रो को वैक्सीन निर्यात करने का सराहनीय काम कर दिखाया।

विपक्ष ने भारत सरकार के इस कदम की घोर आलोचना करने का अभियान शुरू कर दिया। किन्तु अकस्मात् जब भारत ने कोविड की अप्रत्याशित दूसरी लहर की विभीषिका का सामना किया तो भारत सरकार की यही वैक्सीन निर्यात करने की दूरगामी पहल भारत के लिए रामबाण बन कर सामने आयी। पूरा विश्व भारतवासियों के साथ खड़ा हो गया, आक्सीजन, ज़रूरी इंजेक्शन, मेडिकल उपकरणों, वेंटिलेटर का ज़खीरा लेकर यूरोप, खाड़ी देशों, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान , सिन्गापुर,और तो और गरीब अफ्रीकी देशों के जहाजों का कारवां दिल्ली,मुम्बई, हैदराबाद के हवाई अड्डे पर उतर आया। अपने नागरिकों की तात्कालिक अपरिहार्य आवश्यकता के दृष्टिगत जब भारत सरकार ने विदेशों में वैक्सीन की दूसरी डोज भेजने की प्रक्रिया को स्थगित किया तो यही विपक्षी छाती पीटने लगे कि भारत को गरीब देशों के प्रति अमानवीय व्यवहार नहीं करना चाहिए। यानि चित भी मेरी पट भी मेरी। सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना ही संकुचित राजनीति का पर्याय बन कर रह गया है। भारत सरकार ने चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों और वैज्ञानिक बिरादरी की सलाह के अनुरूप वैक्सीन की तात्कालिक उपलब्धता व निर्माण की उत्तरोत्तर बढ़ती कैपेसिटी के सापेक्ष ही तत्काल वैक्सी नेशन पालिसी बनाकर गाईड लाइन के जरिए 16जनवरी से सर्व प्रथम फ्रन्ट लाइन्स वर्कर्स के लिए शुरू किया। इसका मूल उद्देश्य यही था कि अति संक्रामक इस बीमारी के इलाज़ से संबंधित सभी डाक्टर्स, नर्स, ब्वाय वार्ड, पैरामेडिकल स्टाफ, एम्बुलेंस से जुडे कर्मचारियो के साथ ही सफाई कर्मी, पुलिस और जूझ रहे प्रत्यक्ष कार्मिक को सुरक्षित रखना सुनिश्चित हो सके। कालांतर में 60साल सेऊपर आयु वाले और गम्भीर बीमारियों के लोगों को शामिल किया गया। फिर 45 साल आयु वर्ग और अब तो 18साल से ऊपर की आयु के सभी नागरिकों के लिए मुफ्त वैक्सीन उपलब्धता 21जून से प्रस्तावित है।


खेदजनक स्थिति है कि आज भारत में टीकाकरण की रफ्तार को अवरुद्ध करने का संगठित दुष्प्रयास किया जा रहाहै।राजनेताओं में इस संवेदनशील मुद्दे पर भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार कर अफवाहों को फैलाने की होड़ लगी है। भारत में कस्बों, गाँवों में अभी भी अशिक्षा के कारण झूठे किस्सों, मनगढ़ंत अफवाहों व अंध विश्वासों के जरिए इस टीकाकरण की रफ्तार को अवरुद्ध करने का सुनियोजित षड़यंत्र रचा गया है। सरकारी प्रयासों को पलीता लगाने का काम राजनीतिक लोगों के साथ-साथ अब सम्प्रदाय विशेष के बाहुल्य वाले इलाकों के धर्म गुरुओं, मौलवियो, मौलानाओ के द्वारा भी खुलेआम किया जाना दृष्टिगत है।

हद तो तब हो गयी है, जब इन धार्मिक उलेमाओं को काउंसिलिंग के जरिए सच्चाई बताने का सामाजिक दायित्व निर्वाहन करने के लिए इलाकाई जनप्रतिनिधियों ने आगे आकर जागरूकता फैलाने की जगह बाकायदा टी वी न्यूज चैनलों की डिवेट में आकर अफवाहों को फैलाने में आग में घी डालने का कुत्सित प्रयास ही किया है। ताज्जुब होता है कि प्रमुख समाचार पत्र पत्रिकाओं के संवाददाताओ के समक्ष ही नहीं बल्कि बड़े न्यूज चैनलों पर विगत दिनों मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी के लोकसभा के एम पी डाक्टर एस टी हसन और सम्भल से इसी पार्टी के बुजुर्ग सान्सद शफीकुर्रमान बर्क ने वैक्सीन के बारेमें ऊलजलूल बातें ही नहीं की,अपितु कोविड महामारी को बीमारी मानने से इनकार कर दिया। और तुर्रा यह जड़ दिया कि यह आसमानी मुसीबत और शरीयत की उपेक्षा के चलते ख़ुदा का दंडात्मक चाबुक है।इसकेलिए भारतीय जनता पार्टी की नीति और नरेन्द्र मोदी उत्तरदायी हैं।

मुरादाबाद से बने समाजवादी पार्टी के लोकसभा सदस्य अपने को जवाहरलाल नेहरु मेडिकल कॉलेज, अलीगढ़ से एम बी बी एस और एम एस होने की बात भी बताते हैं। अभी तक इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी एक एलोपैथी की प्रैक्टिस करनेवाले डाक्टर के इस अजूबा बयान का कोई संग्यान तक नहीं लिया है,यह भी खेदजनक ही कहा जाएगा। अचरज व विस्मयकारी तो यह भी है कि ऐसे साम्प्रदायिक, गैरजिम्मेदारानाऔर मौजूदा आपदा निरोधक कानून विरोधी बयानबाज़ी के लिए इन दोनों एम पी से इनकी पार्टी के युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव ने आज तक कोई स्पष्टीकरण लेने की कोई औपचारिकता भी नहीं निभाई है। कदाचित युवा अध्यक्ष जी ने ऐसा इसलिए भी जरूरी नहीं समझा होगा,क्योंकि वो तो खुद सार्व जनिक रूप से बयान दे चुके हैं कि, यह तो बी जे पी का टीका है,हम तो नहीं लगाएंगे। जब अपनी सरकार बनेगी तब मुफ्त में लगवाया जाएगा। अपने पार्टी अध्यक्ष की मानसिकता को और धार देते हुवे समाजवादी पार्टी के हाल में वाराणसी स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एम एल सी बने युवा आसुतोष ने तो भारतीय वैक्सीन के खिलाफ आगे बढ कर इससे नपुन्सकता होने का आरोप मढ़ दिया था। अफवाहों के समाजवादी वैरिएन्ट से बचाव के लिए आखिरकार कौन सा उपचार कारगर होगा,यह तो शोध का विषय हो सकता है। बात यहाँ तक ही सीमित नहीं है।

सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का दम्भ भरने वाली पार्टी ने तो भारतीय टीकाकरण के दुष्प्रचार का परचम उठा रखा है। राहुल गांधी, शशि थरूर, कमल नाथ, चिदंबरम, सुरजेवाला, प्रियंका गांधी वाड्रा, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, मनीष तिवारी, अधीर रंजन चौधरी सहित कान्ग्रेस पार्टी की मुखिया सोनिया गाँधी और उनके पार्टी के सभी मुखर प्रवक्ताओं ने बढ़ चढ़ कर भारतीय स्वदेशी वैक्सीन की गुणवत्ता, मेडिकल ट्रायल, साइड इफेक्ट के मुद्दे पर ऐसे विषवमन की श्रृंखला चलाई कि कयी बार तो यह आभास हुवा कि मोदी विरोधके भाव में संविधानिक मर्यादा को भी तिलांजली देकर भारतीय वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ, मेधा,परिश्रम की अवहेलना और तिरस्कार का यह अधिकार इन्हें किसने दे दिया है?अपने राजनीतिक आकाओ की मानसिकता पर कदमताल करते हुवे अनेक गैर भाजपा शासित राज्यों में वैक्सीन की लाखों डोज बर्बाद होने का प्रकरण सामने आना खेदजनक स्थिति है।अब केन्द्र सरकार ने नवीन गाइड लाइन में यह स्पष्ट कर दिया है कि,न्यूनतम अनुमन्य वेस्टेज से ज्यादा वैक्सीन बर्बाद होने पर तदनुसार राज्य को आवंटित होने वाली वैक्सीन के कोटे में कमी कर समायोजित कर दिया जाएगा।आशा है ऐसे कड़े नियम लागू होने के चलते राज्यों में वैक्सीन की वेस्टेज पर अंकुश लग सकेगा।

चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों ने समय-समय पर प्रकाशित शोध पत्रों में इस तथ्य को उजागर किया है कि, टीकाकरण के माध्यम से पूरे विश्व में विभिन्न तत्संबंधित बीमारियों से करोड़ों लोगों की प्राण रक्षा की जा सकी है। ज्ञातव्य है कि भारत में 2014 से मौजूदा केन्द्रीय सरकार ने मिशन इन्द्रधनुष कार्यक्रम के जरिए बाल व किशोरवय के लिए मुफ्त वैक्सीन उपलब्धता के जरिए पहले 2013 तक 60% की दर को त्वरित गति से अग्रसर कर 90%पर पहुंचाने में सफलता हासिल कीहै, इस तथ्य को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रवासियो को दिए अपने संबोधन में कहा भी है।


भारत वासियों को इस बात पर गर्व महसूस होता है कि सीमित समयान्तराल पर गहनतम शोध और समुचित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों द्वारा पूर्व निर्धारित मापदण्डों पर विकसित की गयी भारतीय वैक्सीन विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्तर पर वैश्विक पटल पर जहाँ प्रशंसित हो रही है, वहीं दूसरी ओर संकीर्ण मानसिकता और घटिया राजनीतिक डाह का शिकार होकर अपने ही राजनीतिक दलों के नेताओं और तथाकथित साम्प्रदायिक ताकतों के अलमबरदारो व स्वयम्भू पत्रकारों की टुकड़ी, छद्म सेकुलरवादी बुद्धि जीवी वर्ग की कथित जमात और वामपंथी मानसिकता के एक समूह विशेष के मिथ्या प्रोपेगन्डा का शिकार होकर अपने ही स्वदेशी चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों के स्तुत्य प्रयास का माखौल उड़ाने का घृणित कार्य करती दृष्टिगोचर होती है।

इससे ज्यादा निन्दनीय कृत्य क्या हो सकता है । स्वाभाविक रूप से अपने अपने चहेते नेताओं के मिथ्या प्रोपेगन्डा का सीधा असर आम समर्थक जनता पर पड़ा। बची खुची कसर धर्म गुरुओं विशेषकर मुस्लिम समुदाय के रहनुमा कहलाने वाले किरदारों ने पूरी कर दी। इसका घातक दुष्प्रभाव यह हुआ है कि देश के विभिन्न राज्यों खासकर उत्तर और मध्य भारत के ग्रामीण इलाकों और छोटे कस्बों में यहाँ के निवासी टीकाकरण अभियान के सरकारी मुलाजिम की कहीं पिटाई कर भागते दीख रहे हैं, तो कहीं इन्हें बन्धक बनाकर दुर्भाग्यपूर्ण दुर्व्यवहार पर उतारू हो जा रहे हैं। यू पी और बिहार जैसे सूबों में तो ग्रामीण वैक्सीन की टीम देख कभी नदी में उतरते दिखाई दे रहे हैं तो कहीं पूरा गाँव घरों को भीतर से बंद कर ले रहा है। मुस्लिम समुदाय के इलाके में तो हिन्सा और खौफ के डर से स्वास्थ्य कर्मचारी जाने में भी गुरेज कर रहे हैं, आखिर जानमाल का डर जो दीखता है।अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है,भारत के135 करोड़ नागरिकों को सुरक्षा कवच बन कर इस वैश्विक महामारी से जीवन रक्षा के लिए सभी को सामूहिक जनचेतना को जगाने के लिए आगे आना चाहिये। संकीर्ण एवं स्वार्थपरक राजनीति से ऊपर उठ कर,भारतीय नागरिक के हितार्थ हर विरोधी पार्टियों के नेताओ, स्वयं सेवी संगठनों, धार्मिक संगठनों, शिक्षा जगत के लोगों, पत्रकारों, मौलवियो, पुजारियों, ग्रन्थियों, पादरियों को वैचारिक मतभेद भुला कर कोविड वैक्सीन के इस राष्ट्रीय अभियान में अपनी-अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए पहल किया जाना अपेक्षित है। भारतीय स्काउट्स, एन सी सी कैडेट्स, राष्ट्रीय सेवा योजना के देश में मौजूद लाखों छात्र छात्राओं की इस अभियान में सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए भी पहल किया जाना व्यवहारिक कदम सिद्ध होगा। भड़काने, मिथ्या प्रोपेगन्डा करने और भारतीय मेधा का तिरस्कार करने वाले राजनेताओं को अपनी-अपनी गलती सुधारने के लिए प्रायश्चित करना ही चाहिए ताकि आम जनता को दिग्भ्रमित करने के पाप दोष से विमुक्त हो सकें। आए दिन टी वी न्यूज चैनलों पर परिचर्चा के दौरान देश के सभी प्रख्यात चिकित्सा विशेषज्ञ भी यही पुरजोर अपीलें सतत् करते आ रहे हैं । वर्तमान में जब भारत सरकार ने पूरे देश के लिए केन्द्रीकृत टीकाकरण की निशुल्क प्रभावी व्यवस्था शुरू करने का निर्णय लिया है, तो ऐसे में दीर्घ राष्ट्रीय हित में यह कठोर कदम उठाये जाने की जरूरत है ताकि भारतीय वैक्सीन और टीकाकरण अभियान के विरुद्ध किसी प्रकार का दुष्प्रचार ,अफवाहों को फैलाने, धार्मिक आस्था की आड़ लेकर टीकाकरण के प्रति संदेह फैलाकर आम जनता को हतोत्साहित करने के कृत्य को गंभीर आपराधिक श्रेणी में लाने का वैधानिक प्रावधान लागू किया जाना सर्वथा अपरिहार्य है। सोशियल मीडिया के विविध प्लेटफार्म पर किए जा रहे दुष्प्रचार को भी कठोरतम अपराध मान कर त्वरित हस्तक्षेप किया जाना आज सामयिक कदम होंगा।

इस लेख को पूरा करने के दौरान एक सुखद और धनात्मक खबर मिली है कि समाजवादी पार्टी के सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने कोविड महामारी के वैक्सीन को लगवा कर अफवाह गैंग के मुँह पर करारा तमाचा तो जड़ ही दिया है।आशा है अखिलेश यादव अब अपने पिता का अनुकरण कर तुरन्त टीका लगवा कर अपने करोड़ो प्रशंसकों को भी वैक्सीन लगवाने की सार्व जनिक रूप से अपील कर प्रायश्चित करने का साहस कर स्वस्थ मिसाल प्रस्तुत करेंगे।

आनन्द उपाध्याय "सरस"

(लेखक पूर्व अधिकारी व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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