तहजीब की विजय!!
Hijab Controversy: इस पूरे हिंसक माहौल को ज्यादा विषाक्त बनाने में कतिपय ढाकोसलेबाज सेक्युलर बिचौलियों की भी किरदारी रही।
Hijab Controversy: यह नजारा है दक्षिण कर्नाटक के सागरतटीय शहर उडुपी (Udupi) के महात्मा गांधी मेमोरियल कॉलेज (Mahatma Gandhi Memorial College) का। यहां गत माह हिजाब पर रोक (Ban On Hijab) लगाने के विरोध में आन्दोलन चला। कन्नड में ''उडु'' के मायने है सितारे (नक्षत्र) और ''पी'' माने ईश्वर। इस कालेज के एमए कक्षा के प्रथम वर्ष के क्लास रुम में कई दिनों बाद 21-वर्षीया साना अहमद लौटी थी। पड़ोस की सीट पर बैठी छात्रा बोली: ''कई दिनों से तुम्हारी कमी अखर रही थी। आज टीस खत्म हो गयी।'' फिर आगे बोली, '' साना, अब तुम्हारा खुला चेहरा मेरे जैसा दिखता है। कोई ओट नहीं।'' साना भी समझ गयी होगी कि स्वयं की अज्ञानता से अज्ञान रहना ही सबसे बड़ी अज्ञानता होती है।
छात्राओं को पड़ोसी केरल की मुस्लिम लीग वालों ने बहका दिया। भुला दिया गया कि कॉलेज यूनिफार्म से अमीरी-गरीबी का भान नहीं होने दिया जाता हे। सामाजिक सामंजस्य पनपता है। समानता का परिचायक हैं। अभिव्यक्ति की आजादी से हिजाब का क्या नाता? और फिर सार्वजनिक स्थलों पर हिजाब-बुर्का पर पाबंदी तो लगी नहीं। बस चूंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा (UP Election 2022) का चुनाव आ रहा था। मुस्लिम वोट बैंक (Muslim Vote Bank) को बढ़ाना था। सरिया-सिमेन्ट के रूप में छात्राएं मिल गयीं। बस तनिक लाभ हुआ तो समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) को। सीटें कुछ बढ़ गयीं। पर सत्ता की ढइया से फिर भी दूर रहे।
साना को याद कराया जाना था कि पैगम्बरे इस्लाम ने मजहब और इल्म की बाबत क्या राय दी थी। हदीथ में है कि इल्म पाने के लिये सुदूर चीन भी जाना हो, तो जाओ। हालांकि आज पश्चिमोत्तर चीन के शिनजियांग प्रदेश में उइगर मुसलमानों की मस्जिदें ढा दी गयी हैं। नमाज की मनाही है। कुरान अरबी में नहीं मंडारिन चीनी लिपि में है। रमजान पर दिन में होटल खुले रहते हैं। वाराह का गोश्त अब जबरन खिलाया जाता है। पड़ोसी तालिबानी भी कम्युनिस्टों की इन सब हरकतों को इस्लामी पाकिस्तान के साथ गवारा कर रहे है। चूं भी नहीं बोलते।
अपने सेक्युलर ढांचे को कमजोर कर रहा भारत- इमरान खान
इस्लामी पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान (Pak PM Imran Khan) ने कल कहा कि हिजाब पर पाबंदी थोप कर भारत अपने सेक्युलर ढांचे को कमजोर कर रहा है। इस्लामी राष्ट्रों के संगठन (OIC) ने तो आरोप लगा दिया कि भारत अल्पसंख्यकों के हक छीन रहा है। प्रियंका वाड्रा ने तो कहा डाला कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं का हक है। उनके पिता राजीव गांधी ने तलाकशुदा महिला (शाहबानों) को मुआवजा देने के उच्चतम न्यायालय के निर्णय को ही निरस्त कर दिया था। फ्रांस में हिजाब पर पाबंदी एक कानून है। इसका निवारण करने की आम लोग लगातार मांग कर रहे है। मगर प्रगतिशील इस्लामी तुर्की, अरब, सीरिया और अफ्रीकी ट्यूनेशिया में तो बुर्का की ही मनाही रही है।
कुछ चर्चा हो उन दलित नेताओं की जो वोट के खातिर इस हिजाब प्रकरण में मुसलमानों से गठबंधन बना बैठे। ऐसे इन हिन्दुजनों को उनके मसीहा डा. भीमराव अम्बेडकर की उनकी पुस्तक ''पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन'' का वह अंश बांचना चाहिये जिसमें लिखा है : ''पर्दा प्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाएं अन्य जातियों की महिलाओं से पिछड़ जाती हैं, वो किसी भी तरह की बाहरी गतिविधियों में भाग नहीं ले पाती हैं। जिसके चलते उनमें एक प्रकार की दासता और हीनता की मनोवृत्ति बनी रहती है। हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में पर्दा-प्रथा की जड़े काफी गहरी हैं। मुसलमानों में पर्दा प्रथा एक वास्तविक समस्या है, जबकि हिन्दुओं में ऐसा नहीं है। मुसलमानों ने इसे समाप्त करने का प्रयास किया हो, इसका भी कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। मुसलमानों ने समाज में मौजूद बुराईयों के खिलाफ कभी कोई आंदोलन नहीं किया।''
सेक्युलर बिचौलियों की भी किरदारी
इस पूरे हिंसक माहौल को ज्यादा विषाक्त बनाने में कतिपय ढाकोसलेबाज सेक्युलर बिचौलियों की भी किरदारी रही। उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के तीन जजों वाली खण्ड पीठ की न्यायमूर्ति जेबुन्नीसा मोहिउद्दीन काजी का निर्णय पढ़ा नहीं। अपने दो साथी जजों के साथ न्यायमूर्ति जेबुन्नीसा ने कहा कि ''हिजाब इस्लाम में कोई अनिवार्य पोशाक नहीं है।'' कर्नाटक राज्य उच्च न्यायिक सेवा से आई यह महिला जज राज्य वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल में भी जज रहीं। उनके वालिद जनाब मोहिउद्दीन काजी सरकारी वकील थे। अपने 129-पृष्ठ के फैसले में खण्डपीठ ने कहा कि हिजाब से सृजित उपद्रव के पीछे कोई अदृश्य हाथ है।
दो अन्य जज थे न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित तथा मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी जो लखनऊ काल्विन कालेज तथा विश्वविद्यालय के पढ़े हैं। लखनऊ खण्डपीठ में भी जज थे। इन तीनों ने निर्णय में कहा कि ''मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं। स्कूल-कॉलेजों में ड्रेस कोड (Dress Code) लागू करना गलत नहीं है, छात्राएं आपत्ति नहीं कर सकतीं। सरकार को ऐसे आदेश पारित करने का अधिकार है, यह आदेश किसी के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।''
अन्त में कुछ उन मोमिन हाजरात के बारे में जो हिजाब के पक्ष में तेवर दिखा रहे थे। ये सब तीन तलाक और हलाला सरीखी बर्बर प्रथाओं के झण्डाबरदार रहे। मगर बाप और शौहर की जायदाद में महिला भागीदारी के कड़े विरोधी रहते हैं। हिन्द के ये तालिबानी लोग हिजाब के ढोंगी मसले पर अराजकता फैला सकते हैं। किन्तु उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों के दमन का प्रतिकार करने दिल्ली के शान्तिपथ पर स्थित कम्युनिस्ट चीन के दूतावास पर कोई प्रदर्शन तक नहीं कर सकते। क्या अकीदा है?
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