एक सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली हमें किस तरह से अगली महामारी से बचाएगी
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को अब आधिकारिक रूप से महामारी घोषित कर दिया है। भारत में कोरोना से संक्रमण के लगभग 110 मामलों की पुष्टि हो चुकी है।
नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस (कोविड-19) को अब आधिकारिक रूप से महामारी घोषित कर दिया है। भारत में मौजूदा समय में कोरोना वायरस से संक्रमण के लगभग 110 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। जिनमें से 17 विदेशी नागरिक हैं। सरकार ने इस दिशा में त्वरित कदम उठाते हुए एक बहु-आयामी रणनीति अपनाई है।
आपसी समन्वय से ठोस कदम उठाने के लिए विभिन्न मंत्रालयों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करना, यात्रा संबंधी पाबंदियां लगाना, बड़ी संख्या में वीजा निलंबित करना, बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग (जांच) करना एवं कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के संपर्क में आये लोगों का पता लगाना और आम जनता को नियमित रूप से आवश्यक जानकारियां देना इस रणनीति में शामिल हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने सार्क देशों से की अपील
भारत जैसे विशाल एवं व्यापक विविधता वाले देश में सभी हितधारकों को शामिल करते हुए बड़ी तेजी से विभिन्न आवश्यक कदम उठाना निश्चित रूप से अत्यंत सराहनीय है। इन समस्तव उपायों पर अमल की बदौलत हमें पूरा विश्वास है कि भारत इस बीमारी को फैलने से रोकने में निश्चित तौर पर समर्थ साबित होगा।
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इसके अलावा, किसी भी महामारी को नियंत्रण में रखने के लिए क्षेत्रीय एवं वैश्विक सहयोग की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कोविड-19 से निपटने हेतु एक सुदृढ़ साझा रणनीति तैयार करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्वयं पहल करते हुए सार्क देशों को एकजुट करना निश्चित तौर पर प्रशंसनीय है।
एक ठोस स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्कता
उल्लेखनीय है कि कोविड-19 न तो पहली महामारी है और न ही यह निश्चित रूप से अंतिम महामारी होगी। दरअसल, तेजी से वैश्वीकृत होने के साथ-साथ त्वरित शहरीकरण के मार्ग पर अग्रसर होती दुनिया में इस तरह की महामारी के पूरे विश्व में तेजी से फैलने का खतरा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।
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इसे ध्यान में रखते हुए एक ऐसी सुदृढ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली सुनिश्चित करना समय की मांग है। जो बीमारियों की रोकथाम करने एवं अच्छे स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इतने बड़े पैमाने पर किसी रोग का प्रकोप बढ़ने की स्थिति में लोगों की मौतों को अत्यंत सीमित रखने के लिए बड़ी तेजी से ठोस कदम उठाने में सक्षम साबित हो सके।
सरकार ने उठाए प्रभावकारी कदम
पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत सरकार ने विभिन्न कार्यक्रमों जैसे कि मिशन इंद्रधनुष और राष्ट्रीय आयुष मिशन के कार्यान्वयन के जरिये सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए अनेक प्रभावकारी कदम उठाए हैं। इसी तरह अनेक प्रमुख योजनाओं जैसे कि पोषण अभियान और स्वच्छ भारत मिशन का भी लोगों के स्वास्थ्य पर अनुकूल असर पड़ा है।
क्योंकि इनसे बीमारियों की रोकथाम करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी मदद मिलती है।
अत: ऐसे में यह सवाल उठता है कि देशभर में एक सुदृढ़ एवं अनुकूल सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए हमें अब और क्या करना चाहिए?
सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बढ़ाया जाए सरकारी खर्च
पहला, हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाने की जरूरत है। केन्द्रि सरकार स्वास्थ्य पर खर्च को बढ़ाकर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का कम से कम 2.5 प्रतिशत करने के लिए प्रतिबद्ध है। जैसा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी), 2017 में उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही राज्यों को भी स्वास्थ्य पर खर्च को बढ़ाकर वर्ष 2020 तक अपने बजट का 8 प्रतिशत से भी अधिक करने संबंधी एनएचपी लक्ष्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
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जैसा कि वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा-जोखा डेटा से पता चला है, भारत में स्वास्थ्य पर कुल सरकारी खर्च में केन्द्र सरकार की हिस्सेरदारी 35.6 प्रतिशत है। जबकि राज्य् सरकारों की हिस्सेदारी 64.4 प्रतिशत है। स्वास्थ्य पर कुल सरकारी खर्च बढ़ाने के अलावा हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इस धनराशि का एक बड़ा हिस्सा निवारक संबंधी स्वास्थ्य देखभाल में लगाया जाए।
केंद्रीय स्तर पर विशिष्ट एजेंसी की आवश्यकता
दूसरा, जैसा कि नीति आयोग की ‘न्यू इंडिया @75 के लिए रणनीति’में रेखांकित किया गया है, राज्य स्तरीय समकक्षों के साथ केन्द्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक विशिष्ट एजेंसी बनाने की आवश्यकता है। इस एजेंसी पर ही बीमारी की निगरानी एवं आवश्यक कदम उठाने, स्वास्थ्य की स्थिति पर पैनी नजर रखने, लोगों को सूचित करने एवं आवश्यक जानकारियां देने और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े कदमों को उठाने के साक्ष्य प्रस्तु्त करने की जिम्मेददारी होगी।
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अपने कामकाज में प्रभावकारी साबित होने के लिए इस एजेंसी को कानूनी दृष्टि से सशक्त बनाने की भी आवश्यकता है। ताकि अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों एवं लोगों द्वारा नियम-कायदों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। यह अत्यंत आवश्यक है क्योंकि अनेक कार्यकलापों के लिए विभिन्नि सेक्टरों के बीच आपसी समन्वय की जरूरत पड़ती है। ताकि लोगों के स्वास्थ्य पर पड़े असर से अवगत हुआ जा सके।
नए कानून की आवश्यकता
संभवत: 'सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम' नामक इस कानून के तहत इस एजेंसी को विशेषकर ‘सार्वजनिक स्वास्थ्य को व्यापक खतरा’ पहुंचने की स्थिति में सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट अधिकार प्रदान किये जायेंगे। उदाहरण के लिए, ऐसे चिकित्सा केन्द्र जो अत्यंत हानिकारक कचरे को इधर-उधर फैला देते हैं उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराने की जरूरत है।
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इसी तरह ऐसी आवासीय कॉलोनियों को भी जिम्मेदार ठहराने की जरूरत है जो सही ढंग से पानी बहने का इंतजाम नहीं करती हैं। इस वजह से इन स्थानों पर मच्छरों को पनपने का मौका मिलता है। इस तरह की बदइंतजामी से केवल एक-दो नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में लोगों का स्वास्थ्य एवं जीवन खतरे में पड़ जाता है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर बनाना आवश्यक
तीसरा, राज्यों में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर बनाना भी आवश्यक है। जिसमें विभिन्नी विषयों जैसे कि महामारी विज्ञान, जैव सांख्यिकी, जन सांख्यिकी और सामाजिक एवं व्यवहार विज्ञान में प्रशिक्षित पदाधिकारियों को रखा जाना चाहिए। यही नहीं, आवश्यक कौशल रखने वाले मौजूदा कर्मचारियों को ही प्रशिक्षित कर इस तरह का कैडर बनाया जा सकता है। अत: ऐसे में कम-से-कम संख्या में अतिरिक्त स्टाफ की आवश्यकता होगी।
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नीति आयोग ने एक आदर्श सार्वजनिक स्वास्थ्य कैडर विकसित करने के लिए बड़ी संख्या में विभिन्न हितधारकों से परामर्श किया है। जो सर्वोत्तम प्रथाओं या तौर-तरीकों को अपनाते रहे हैं। अच्छी खबर यह है कि केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण परिषद (CCHFW) के 13वें सम्मेलन में वर्ष 2022 तक राज्यों में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं प्रबंधन कैडर बनाने का संकल्पक व्यक्त किया गया है। सीसीएचएफडब्यू एक शीर्ष सलाहकार निकाय है जो स्वास्थ्य संबंधी मामलों में नीतिगत कदमों की व्यापक रूपरेखा के बारे में अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत करती है।
अच्छे प्रशिक्षण की ज़रूरत
चौथा, हमें लोगों के बीच स्वास्थ्य संबंधी अच्छे आचरण को बढ़ावा देने और समुदायों में किसी बीमारी का प्रकोप बढ़ने के आरंभिक लक्षणों की पहचान करने के लिए मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा), सहायक नर्स मिडवाइफ (एएनएम) और बहुपयोगी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की जरूरत है। क्योंकि इन्हीं कार्यकर्ताओं का जुड़ाव आम लोगों से रहता है।
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लोगों को स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां एक समान न होने के साथ-साथ अफवाहों के तेजी से फैलने की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे उपयुक्त चैनल बनाने की जरूरत है। जिससे कि लोग बीमारियों, उनके लक्षणों और उनकी रोकथाम तथा उपचार से अवगत हो सकें। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 में मध्यतम-स्तरीय सेवा प्रदाताओं का एक ऐसा कैडर बनाने की आवश्यकता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में किसी बीमारी के फैलने के आरंभिक लक्षणों से अवगत होने के लिए लोगों की स्क्रीनिंग में भी महत्वापूर्ण भूमिका निभा सकता है।
स्वास्थ्य केंद्रों को एकीक्रत करने की आवस्यकता
आखिर में, किसी भी बीमारी पर पैनी नजर रखने एवं त्वतरित कदम उठाने की व्यरवस्था को मजबूत बनाने के लिए निश्चित रूप से अथक प्रयास किये जाने चाहिए। इसके लिए अधिसूचित बीमारियों की सूची का विस्तार करने के साथ-साथ नियमित निगरानी प्रणालियों के एक हिस्से के रूप में बीमारियों के बारे में आवश्याक सूचनाएं देने हेतु निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य केन्द्रों को एकीकृत करने के लिए ठोस कदम उठाने की भी आवश्यकता है।
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इसके अलावा बीमारियों पर पैनी नजर रखने वाली बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को भी मजबूत करने की जरूरत है। जिनमें रोगों का पता लगाने हेतु सैम्पभल-परीक्षण के लिए आवश्यक सुविधाओं से लैस प्रयोगशालाओं का पर्याप्त संख्या में रहना भी आवश्यक है।
डॉ. राजीव कुमार, उर्वशी प्रसाद
(डॉ. राजीव कुमार नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं। उर्वशी प्रसाद नीति आयोग में सार्वजनिक नीति की विशेषज्ञ हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)