नेतृत्व के हठधर्मिता एवं अहंकार से हजारों जिंदगियां तबाह
देश में कोरोना की दूसरी लहर ने चारों तरफ तबाही मचाई है। भारत वर्ष को इसने पूरी तरह अपनी आगोश में ले लिया है।
देश में कोरोना की दूसरी लहर ने चारों तरफ तबाही मचाई है । भारत वर्ष को इसने पूरी तरह अपनी आगोश में ले लिया है। देश में कोरोना से बचाव के लिए दवाइयां, ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड,वेंटीलेटर सहित तमाम जरूरी चीजों की भारी कमी है।देश में संसाधनों की भारी कमी से प्रतिदिन अनेकों लोगो की जान पर आ बनी है ।हजारों जिंदगिया तबाह हो रही है।देश का माननीय न्यायालय, समाजसेवी, प्रबुद्ध वर्ग, मीडिया जगत बार बार राष्ट्रीय लाकडाउन की मांग कर रहा है।पिछली बार भारत देश ने नेशनल स्तर का लाकडाउन लगा कर कोरोना के व्यापक प्रसार को रोकने में सफलता प्राप्त की थी।सच तो यह है कि पहला राष्ट्रीय लॉकडाउन अनिवार्य था क्योंकि तब हम वायरस के विषय में कुछ जानते नहीं थे और इस 75 दिन की अवधि का उपयोग हमने तैयारी के लिए किया और हमनें कोरोना को कमजोर करने में सफलता भी पायी।लेकिन देश के शीर्ष नेतृत्व द्वारा राष्ट्रीय लाकडाउन नही लगाया जाना आज सबसे भारी चूक साबित हो रहा है ,हालांकि सरकार ने इस बार लाकडाउन लगाने का अधिकार राज्यों को दे रखा है और राज्यों ने मनमाने ढंग से अर्थव्यवस्था का हवाला देकर कभी रात्रि कोरोना कर्फ्यू तो कभी आंशिक लाकडाउन लगाकर कोरोना को मात देने का प्रयास किया पर यह सब नाकाफी साबित हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी का यह ख्वाब है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था की सेहत भी सुधारेंगे और देशवासियों की सेहत का भी ध्यान रखेंगे।
नेशनल लॉकडाउन कोविड दूसरी लहर पर काबू पाने का जरिया
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पुन: कहा है कि नेशनल लॉकडाउन ही कोविड-19 की दूसरी लहर पर काबू पाने का एकमात्र जरिया है। आईएमए का कहना है कि वह पिछले 20 दिनों से पूर्ण और योजनाबद्ध लॉकडाउन की वकालत कर रही है जिसकी घोषणा पर्याप्त समय पूर्व की जानी चाहिए ताकि अफरातफरी न मचे। लॉकडाउन ही कोविड-19 के विनाशक संक्रमण की चैन तोड़ पाएगा। अमेरिका के जाने-माने महामारी विशेषज्ञ एंथोनी फाउची भी भारत में संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए कुछ हफ़्तों के नेशनल लॉकडाउन का सुझाव दे चुके हैं।
मिशिगन विश्वविद्यालय के महामारी विशेषज्ञ भ्रमर मुखर्जी का भी यही सुझाव रहा है। सीआईआई के अध्यक्ष तथा कोटक महिंद्रा बैंक के सीईओ उदय कोटक ने सीआईआई की तरफ से जारी एक बयान में कहा- इस नाजुक मौके पर जब मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है, सीआईआई राष्ट्रीय स्तर पर कठोरतम आर्थिक कदमों की वकालत करती है जिसमें आर्थिक गतिविधियों को सीमित करना भी सम्मिलित है जिससे मानव जीवन की रक्षा हो सके।यहाँ तक की प्रमुख विपक्षी कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री जी को संबोधित अपने पत्र में लिखा-'भारत सरकार की विफलता ने आज राष्ट्रीय स्तर पर एक और विनाशकारी लॉकडाउन को अपरिहार्य बना दिया है।
इन तथ्यों के आलोक में, यह महत्वपूर्ण है कि हमारे लोग ऐसी संभावित परिस्थितियों के लिए तैयार रहें। वही पिछले साल के लॉकडाउन के कारण जनजीवन को प्रभावित करने वाली हर पहलुओं पर सरकार को सहृदयतापूर्वक कार्य करते हुए हमारे सबसे कमजोर वर्ग के लोगों को जरूरी वित्तीय और खाद्य सहायता प्रदान करने के साथ आवश्यक कदम उठाने होंगे। इसके अतिरिक्त, उन लोगों के लिए एक परिवहन रणनीति भी तैयार की जानी चाहिए, जिन्हें इसकी आवश्यकता हो सकती है। अर्थव्यवस्था की मजबूती के चक्कर मे जनजीवन की हानि सबसे बड़ी त्रासदी मानी जाती है सरकारका परम कर्तव्य है कि सबसे पहले जीवन बचना अति आवश्यक है, जो सरकार अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करने हेतु कड़े कदम नही उठा पाती उसको सत्ता में रहने का अधिकार नही है हमें ध्यान रखना होगा कि कोरोना वायरस को भारत के अंदर और बाहर अपना विनाश जारी रखने की अनुमति देने के त्रासदीपूर्ण परिणाम होंगे और उसकी मानवीय लागत आपके सलाहकारों द्वारा सुझाई गई किसी भी आर्थिक गणना से अधिक होगी।'इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट की एक त्रिसदस्यीय बेंच भी यही सुझाव दे चुकी है।
लॉकडाउन लगाकर जनजीवन को बचाने की कार्यवाही
बेंच ने केंद्र सरकार से कहा- लोगों की भलाई को मद्देनजर रखते हुए कोविड की इस दूसरी लहर में वायरस पर नियंत्रण करने के लिए लॉकडाउन लगाने पर विचार करें। हम लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से अवगत हैं- विशेष रूप से हाशिए पर जीवनयापन करने वाले समुदायों पर पड़ने वाले असर से। परन्तु जीवन बचाने के लिए सरकार को जल्द से जल्द राष्ट्रीयस्तर से लॉकडाउन लगाकर जनजीवन को बचाने की कार्यवाही करनी होगी। दूसरी ओर यदि लॉकडाउन लगाया जाता है तो इन समुदायों की जरूरतों को पूरा करने हेतु उपाय पहले से ही किए जाने चाहिए।
प्रधानमंत्री जी ने 20 अप्रैल, 2021 को कहा- 'आज की स्थिति में हमें देश को लॉकडाउन से बचाना है। मैं राज्यों से भी अनुरोध करूंगा कि वो लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल करें। ।'25 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री जी द्वारा जब पहले नेशनल लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तब देश में कोरोना के कुल 606 मामले थे और 10 लोगों की मृत्यु इसके कारण हुई थी। लॉक डाउन चरणबद्ध रूप से पुन: आगे बढ़ाया गया।
75 दिन की पूर्ण तालाबंदी के बाद जब 8 जून, 2020 से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई तब देश में कुल मिलाकर संक्रमण के 2 लाख 50 हजार मामले थे और 7200 लोगों की मृत्यु हो चुकी थी। यदि इसकी तुलना वर्तमान स्थिति से करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैंस्थिति बद से बदत्तर है कोरोना संक्रमण की सँख्या 4 लाख के इर्दगिर्द घूम रही है।
सच तो यह है कि सरकार को लाकडाउन लगाने से पहले गरीबों के लिए आर्थिक राहत पैकेज के ऐलान के साथ उन जरूरी पहलुओं पर उचित कार्यवाही करके ही देश की जनता को कोई विशेष दिक्कत न हो देना देना होगा।हम यहां कहने से तनिक भी नही हिचकिचाएंगे की देश के आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि हाशिए पर जीवनयापन कर रहे लोगों को कोई राहत देने की स्थिति में सरकार अब नहीं है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या प्रधानमंत्री इतने असमझदार है कि वे वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, महामारी विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों एवं विपक्षी राजनेताओं के सकारात्मक सुझावों को स्वीकार करें, उन्हें अमल में लाएं? अथवा क्या देश को प्रधानमंत्री जी के एक और चौंकाने वाले निर्णय के आघात को झेलने के लिए स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए? आदरणीय प्रधानमंत्री जी की अब तक की कार्य प्रणाली से तो कुछ ऐसा ही लगता है।कुल मिलाकर देखा जाय तो देश में संपूर्ण लाकडाउन नही लगाया जाना सरकार की सबसे बड़ी चूक थी जिससे एवज में भारतीयों की जान पर आ बनी ।कोरोना ने हजारों जिंदगिया लील ली तो लाखों ने कोविड से प्रभावित अपने परिजनों को लेकर दर दर ठोकरें खाई, अपने परिजनों के स्वास्थ्य की चिंता में खून के आंसू रोये।इसलिए जनहित में भारत सरकार को कठिन निर्णय लेते हुए व्यापक स्तर पर ताना बाना बनाकर जल्द से जल्द राष्ट्रीय स्तर का सम्पूर्ण लाकडाउन लगाया जाए एवं उसको कड़ाई से पालन कराने हेतु राज्य सरकारों को निर्देश देते हुए उसका पालन कराया जाय एवं प्रतिदिन उसकी समीक्षा किया जाय क्योंकि की जिन राज्यो ने लाकडाउन का कड़ाई से पालन किया वहाँ पर कोविड केस में कमी आई है।