Indian Economy: बढ़ती महंगाई के बीच शून्य होती आर्थिक वृद्धि!

Indian Economy : भारतीय अर्थव्यवस्था अप्रैल महीने में तेज हुई दूसरी लहर ने अर्थव्यवस्था को पुनः एक गहरे सदमे की तरफ धकेल दिया।

Written By :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Shraddha
Update:2021-10-23 17:12 IST

भारतीय अर्थव्यवस्था कहां खड़ी है (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

Indian Economy : भारतीय अर्थव्यवस्था कहां खड़ी है? इस प्रश्न का ज़वाब इस तथ्य में है कि कोविड-19 (covid -19) के मौजूदा आकड़े क्या है? ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान समय में आर्थिक गतिविधियों को कोविड-19 के दायरे से बाहर नहीं समझा जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण वर्तमान में जारी कोविड-19 की दूसरी लहर के रूप में मौजूद है। वित्त वर्ष 2020-21 के आखिरी 3 महीनों में (जनवरी, फरवरी और मार्च) भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) पहली लहर के सदमे से उबरती नजर आ रही थी। लेकिन अप्रैल महीने में तेज हुई दूसरी लहर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनः एक गहरे सदमे की तरफ धकेल दिया। तब फरवरी और मार्च महीने में जीएसटी संग्रह (GST collection) एक लाख करोड़ से अधिक होने लगा था। जनवरी से लेकर अप्रैल तक परचेसिंग मैनेजर इंडेक्स (Purchasing Manager Index) 50 के ऊपर रहा था, जो कि अर्थव्यवस्था के विस्तार का एक अच्छा संकेत था।

कहने का तात्पर्य यह है कि पहली लहर के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः एक बार विस्तार की तरफ बढ़ रही थी। लेकिन अप्रैल महीने के बाद परिस्थितियां बदलीं। एक नई आर्थिक चुनौती (new economic challenge) पुनः देश के सामने खड़ी हो गई। कोविड-19 की दूसरी लहर ने विकास को पुनः वापस मोड़ दिया। पहले ही कोविड-19 की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था इस कदर प्रभावित हुई थी कि वर्ष 2020-21 में वास्तविक जीडीपी -7.3 की दर से घट गई थी। अभी चीजें बेहतर हो ही रही थी कि दूसरी लहर ने सुधारों को शून्य कर दिया।

इस भयावह वायरस की दो लहरों के बाद भारत के वृहद टीकाकरण अभियान ने वर्तमान परिदृश्य में कोविड-19 के मामलों में अप्रत्याशित गिरावट जरूर की है। वर्तमान में कुल सक्रिय मामलों की संख्या दो लाख के करीब है, जो कि एक समय के प्रति दिन सामान्य मरीजों की संख्या के बराबर है। मौजूदा हालात में हम अब यह कह सकते हैं कि भारत कोविड-19 की दूसरी लहर से उबर रहा है। इसके परिणामस्वरूप तमाम आर्थिक गतिविधियां भी पूर्व की भांति रफ्तार पकड़ रही हैं। इस बात के संकेत भारत के केंद्रीय बैंक की मौद्रिक समिति रिपोर्ट में भी दिखाई पड़ता है। हाल ही में जारी इस रिपोर्ट में विनिर्माण क्षेत्र में परिस्थितियों के सामान्य होने की बात कही गई है। आरबीआई के औद्योगिक दृष्टिकोण सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही में व्यापार मूल्यांकन इंडेक्स 116.7 हो चुकी है जो कि पिछली तिमाही में 89.7 थी। आरबीआई ने अपनी ही एक पूर्व की रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 10.5 लगाया था।

 भारत की अर्थव्यवस्था (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

कोविड-19 की वजह से सबसे ज्यादा प्रभाव रोजगार के क्षेत्र में दिखाई पड़ा था। आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने की वजह से एक बहुत बड़ी आबादी बेरोजगार हो चुकी थी। बेरोजगारी की वजह से आय में जारी गिरावट ने भारत के बड़े मध्यवर्ग को गरीबी की तरफ मोड़ दिया है। इस बेरोजगारी के तत्कालिक दुष्प्रभाव को अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार बेहतर समझा जा सकता है। इस संस्था के जरिए किए गए एक शोध के अनुसार पिछले 1 वर्ष में कुल 23 करोड़ आबादी गरीबी रेखा के नीचे जा चुकी है। आरबीआई की मौजूदा मौद्रिक समिति रिपोर्ट के अनुसार जून और जुलाई महीने में संगठित क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर उत्पन हुए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से आईटी इंडस्ट्री, बैंकिंग, शिक्षा, इंश्योरेंस,ऑटोमोबाइल आदि क्षेत्र रहे हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी के अनुसार सितंबर महीने में 85 लाख नई नौकरियों की बढ़ोतरी हुई है। इस संस्था के अनुसार निर्माण क्षेत्र नए रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत रहा है। अर्थव्यवस्था की बेहतरी के संकेत वर्ल्ड बैंक की नई रिपोर्ट के जरिए भी दिखाई पड़ता है। इस रिपोर्ट के अनुसार जारी वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 8.3 फ़ीसदी रह सकती है। हाल ही में 12 अक्टूबर , 2021 को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी अपनी रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के वर्ष 2021 और 2022 में 9.5 फ़ीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान जारी किया है। यह किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए सबसे तेज अनुमान है।

अमेरिका और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था भी भारत की वृद्धि दर से पीछे रहेंगी। वर्ष 2021 में अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर 6 फीसदी और 2022 में 5.2 फीसदी रह सकती है। वही चीन की आर्थिक वृद्धि दर 2021 में 8 फ़ीसदी और वर्ष 2022 में 5.6 फीसदी रह सकती है। इन तमाम वैश्विक आर्थिक संस्थाओं के अनुमान अगर वास्तविक आर्थिक आंकड़ों के साथ व्यवस्थित खड़े दिखाई पड़ते हैं, तो निश्चित ही रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था अपने एक गहरे सदमे से उबर जाएगी। लेकिन फिर भी भारत के लिए अभी आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। बेरोजगारी और महंगाई रूपी दो समस्याएं अभी भी विकराल रूप धारण किए हुए हैं।

कोरोना महामारी के मौजूदा हालात (कॉन्सेप्ट फोटो - सोशल मीडिया)

भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के दिख रहे तमाम संकेतों के बीच बढ़ती महंगाई एक जोरदार झटका दे सकती है। भारत की आर्थिक शक्ति सही मायने में इस देश के मध्यम और निर्धन परिवार के हाथों में है। यही आबादी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी उपभोक्ता है। लेकिन महंगाई की वजह से यह तबका अपने खर्चों में कटौती कर रहा है। आज पेट्रोल (petrol) देश के सभी शहरों में100 प्रति लीटर के ऊपर बिक रहा है। एक गैस सिलेंडर (gas cylinder) 1050 में मिल रहा है। खाद्य वस्तुओं की कीमतों में भी अप्रत्याशित वृद्धि आई है। घर की जरूरी खपत की वस्तुएं इतनी महंगी होती जा रही है कि यह सामान्य तबका इसको पूरा करने की जरूरत में अन्य वस्तुओं के खर्च में कटौती कर रहा है। उदाहरण के रूप में इन तमाम आकडों को देखिए। सीएमआइई के अनुसार पिछले एक वर्ष में महंगाई बढ़ने की वज़ह से देश की 97 फीसद आबादी पूर्व की तुलना में 'गरीब' हो गई है। सीएसओ के अनुसार वर्ष 2020-21 में भारत में प्रति व्यक्ति आय करीब 8,637 रुपए कम हुई है। एसबीआइ रिसर्च के अनुसार महंगे पेट्रोल-डीजल एवं कोविड-19 के दौरान इलाज खर्च में हुई वृद्धि के कारण जिंदगी आसान करने वाले उत्पाद और सेवाओं पर लोगों ने खर्च बीते छह माह में करीब 60 फीसद कम किया है। ऊपर से बेरोजगारी की समस्या किसी से छिपी नहीं है।इसलिए बेरोजगारी और महंगाई का बनता यह नया समीकरण भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी सुधारों को शून्य साबित कर सकता है। बढ़ती महंगाई के बीच आर्थिक वृद्धि दर हासिल करना शून्य होना ही है। यह वक़्त कुछ अल्पकालिक वृद्धि के जश्न का नहीं ब्लकि लोगों की जेब को महंगाई से बचाने का है।

(लेखक फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक अध्यक्ष हैं।)

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