अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन पर मोदी पड़े भारी
राष्ट्रपति बाइडेन ने याद दिलाया कि ''आज मेरे शासनतंत्र में अमेरिकी भारतीय छाये हुये हैं।'' नाम गिनाया।
भारतीयों का विस्मित होना लाजिमी है। बहत्तर घंटों में महाबली उलट गये। बल्कि पलटा दिये गये। वे सोमवार को ही बोले थे कि भारत को कोविड की दवाई बनाने वाली सामग्री नहीं भेज पायेंगे। हालांकि नरेन्द्र मोदी फोन पर आग्रह कर चुके थे। दूसरे दिन इस गुजराती वाणिकसुत ने रुस के प्रधानमंत्री व्लादीमी पुतीन को धन्यवाद दे डाला कि यह कहा कर कि पुराने दोस्त रुस ने औषधियों की खेप भेज दी है। बाइडेन का खिसियाना सहज था। आसक्त द्वय क्या तर्क खोजते? भारत स्वयं महाशक्ति की राह पर है।
लेकिन बाइडेन ने हीला हवाला कर ही दिया। बोले ,''विश्व का पुरातन लोकतंत्र (अमेरिका) कैसे विशालतम प्रजातंत्र (भारत) को दृष्टि से ओझल कर सकता है?'' व्हाइट हाउस के उत्तरी उद्यान में कल संवाददाताओं से बात करने के अंत में बाइडेन वापस जाने के लिये मुड़े। अचानक रुके। फिर बोले, ''अमेरिका को नरेन्द्र मोदी ने हमारी जनता के लिये सर्वप्रथम औषधि भेजी थी। अब हमारा दायित्व बनता है।'' फिर राष्ट्रपति ने याद दिलाया कि ''आज मेरे शासनतंत्र में अमेरिकी भारतीय छाये हुये हैं।'' नाम गिनाया। ''उपराष्ट्रपति कमलादेवीजी तमिलनाडु की हैं। मेरा स्पीच राइटर विनय रेड्डि तेलंगाना का है।'' इत्यादि। अमेरिकी राष्ट्रपति की अदा से आभास हुआ कि मोदी के समक्ष वे नत हो गये।
हालांकि यह मेरी निश्चित मान्यता है कि 78—वर्षीय बाइडेन कांग्रेस के 53—वर्षीय नेता राहुल गांधी से सहम गये होंगे। राहुल ने अमेरिका द्वारा कोवैक्सीन भेजने से मना करने पर भारत के किसी सुदूर अंचल से गत सप्ताह अमेरिका को गंभीर परिणाम के लिये सचेत किया था। कोविड से स्वयं राहुल भी ग्रसित हो गये थे। अत: यह तय है कि बाइडेन ने राहुल को अतीव गंभीरता से लिया होगा। क्यों न हो ? राहुल प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री तो हैं ही। अगर पुलवामा न रचा गया होता तो उनके परिवार के अनुमान में शपथ ले चुके होते।
राहुल गांधी के व्यक्तित्व पर ओबामा ने की थी टिप्पणी
यूं अमेरिका के एकमात्र अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राहुल गांधी के व्यक्तित्व का बड़ा सटीक आंकलन अपनी पुस्तक ''दि प्रामिस्ड लैण्ड'' में किया। उन्होंने टिप्पणी की थी कि : '' राहुल गांधी नर्वस, जनजीवन में अक्षम और कठिन स्थिति संभालने से परे हैं।'' गनीमत रही कि भारत के अन्य प्रधानमंत्री अमेरिका यात्रा पर कभी नहीं गये। वर्ना कूटनीतिक विश्लेषकों की पैनी दृष्टि से उनका भी ऐसा ही आंकलन होता। उनमें थे जाटराजा चौधरी चरण सिंह, बलिया के ठाकुर चन्द्रशेखर सिंह, स्थायी कार्यवाहक प्रधानमंत्री साधु—समाज के नेता गुलजारीलाल नंदा, कन्नड किसान देवेगौड़ा इत्यादि।
अमेरिकी राष्ट्रपतियों की खास पसंद गुजराती
फिलहाल मेरे अनुमान में अमेरिकी राष्ट्रपतियों की खास पसंद गुजराती रहें हैं। वहां गुजराती ही बहुतायत में हैं। राजमार्ग पर निर्मित रेस्त्रां मोटेल को पोटेल कहा जाता हैं। उनके मालिक अमूमन चरोत्तर के पटेल लोग होते हैं। मेरारजी देसाई भी बड़े प्रिय थे अमेरीकियों के। मोदी का नंबर उन्हीं के बाद फिर आता है।
यदि भारतीय प्रधानमंत्रियों के अमेरिकी राष्ट्रपति से संबंधों पर गौर करें तो कुछ विलक्षण बातें दिखती है। मसलन वामनाकार प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को राष्ट्रपति लिण्डन जांसन ने आमंत्रित किया था, पर अपने मित्र मार्शल अयूब खान को सितंबर 1965 में शास्त्रीजी द्वारा हराने के फलस्वरुप जांसन रुष्ट हो गये थे। आमंत्रण रद्द कर दिया। पर भारतीय प्रधानमंत्री जिद करके पड़ोसी केनाडा गये। मशहूर जलप्रपात नियागरा देखा, मगर केनाडा के तट से। जांसन को माकूल जवाब दे दिया।
इंदिरा गांधी से अत्यधिक प्रभावित हुए थे जांसन
फिर आई इन्दिरा गांधी की बारी। वे वाशिंगटन गयीं थीं तो राष्ट्रपति जांसन ही थे। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ राजदूत ब्रजकुमार नेहरु के आवास पर शाम की चाय पीने का कार्यक्रम रखा। वे जवाहरलाल नेहरु के चचाजाद भाई थे। इन्दिरा गांधी ने बुफां (सिर पर घोंसलानुमा) स्टाइल में केश संवारें, रेशमी साड़ी धारण किये मेजबानी कर रहीं थीं। बातचीत का लंबा दौर चला तो साठ वर्षीय जांसन रात के भोजन तक रुक गये। हालांकि नाश्ते की बेला आ रही थी। इसी दौरान जांसन व्हिस्की से भरे जाम खाली करते रहे। यह अमेरिकी राष्ट्रपति इंदिरा गांधी से अत्यधिक प्रभावित हो गया था। उसने युगल—नृत्य करने की याचना की तो प्रधानमंत्री ने जवाब दिया कि ''आम भारतीय को यह रास नहीं आयेगा।''
लेकिन अगले राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन इंदिरा गांधी पर खार खाये बैठे थे। तब तक बांग्लादेश को भारत ने मुक्त करा लिया था। निक्सन के प्राणपण से प्रयास करने के बावजूद मार्शल आगा मोहम्मद याह्या खान शिकस्त खा ही गये। याहया खान और निक्सन इंदिरा गांधी को क्रोध से ''वह औरत'' कहा करते थे।
इसी सिलसिलें में अमेरिकी राष्ट्रपति का भारत के प्रधानमंत्री के प्रति रुख तथा रिश्तों पर विस्तृत रुचिकर व्याख्या लिखी जानी चाहिये। मसलन निर्गुट राष्ट्रों के महान पुरोधा जवाहरलाल नेहरु ने जान कैनेडी से शस्त्र सहायता के लिये जो याचनायें कीं थीं वह यादगार रहेंगी। तब चीन की सेना गुवाहाटी की और अग्रसर थी। शून्य डिग्री के हिमालयी श्रृंखलाओं पर सूती मोजे तथा मात्र स्वेटर पहने भारतीय सैनिक शहीद हो रहे थे। जान कैनेडी ने विश्वयुद्ध का डर दिखाया तो माओ की लाल सेना लौट गयी। पर अरुणाचल, सिक्किम, भूटान, लद्दाख का काफी भूभाग कब्जिया ही लिया। आज भी वहॉ चीन के आधिपत्य हैं।
अत: इसी परिवेश में राजग प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी का राष्ट्रपति जो बाईडेन के रुख को कड़ाई से नरम बनाना गौरतलब है। कोरोना को रोकना है। हराना है। बाईडेन के भारतमूल के साथी इसमें कारगर हो रहे हैं।
नोट- ये लेखक के निजी विचार हैें।