किसान आंदोलन, जिन्हें लाभ है वह तो चलवाएंगे ही इसे
Kisan Andolan : दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को आज सात माह पूरे हो गए। इस बीच कभी खाली, कभी भरा आंदोलन स्थल एक बार फिर से आबाद नजर आने लगा है।
दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को आज सात माह पूरे हो गए। इस बीच कभी खाली, कभी भरा आंदोलन स्थल एक बार फिर से आबाद नजर आने लगा है। बरसात के इस मौसम अंगड़ाई लेता किसान आंदोलन एक बार फिर किसी नदी की तरह अपने कगार तोड़ने को ठांठें भरता नजर आ रहा है। 22 जनवरी के बाद से किसानों और सरकार के बीच कोई बात नहीं हुई है। हालांकि सरकार ऐसा नहीं मानती है केंद्रीय कृषि मंत्री ने हाल ही में कहा है कि सरकार किसानों से बात करने को तैयार है। लेकिन भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि हमारी तो मांग ही ये है कि सरकार हमसे बात करे। उनका कहना है कि सरकार झूठ बोल रही है कि, किसानों से हमारी बात हो रही है।
इससे पहले 26 जून को यानी आज "खेती बचाओ, लोकतंत्र बचाओ दिवस" के आयोजन के मौके पर संयुक्त किसान मोर्चा ने देशभर में राजभवन मार्च का ऐलान किया है। तय कार्यक्रम के मुताबिक इस दौरान किसानों को राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन सभी राज्यपालों/ उप राज्यपालों को सौंपना था। जिसको लेकर राज्यों में कड़े सुरक्षा प्रबंध किये गए थे। लखनऊ में भी राजभवन से कुछ दूरी पर किसानों को रोका गया तो उन्होंने विरोध स्वरूप सड़क जाम कर सांकेतिक धरना दिया। इस विरोध मार्च का आयोजन देश में आपातकाल लागू होने की 46वीं बरसी के एक दिन बाद किया गया।
किसान नेता राकेश टिकैत के मुताबिक दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने किसान नेताओं को मिलने का समय दिया था इसीलिए किसान वहां ट्रैक्टर लेकर नहीं गए। लेकिन जब किसानों के प्रतिनिधि के रूप में किसान नेता युद्धवीर सिंह दिल्ली में उपराज्यपाल के आवास पर आठ- दस लोगों के साथ गए तो पुलिस ने उन्हें पहले ही रोक लिया और राजभवन नहीं जाने दिया, बल्कि उन्हें अपने साथ ले गई। दिल्ली के उपराज्यपाल के घर के बाहर दिल्ली पुलिस ने जबर्दस्त किलेबंदी की है, ताकि किसान वहां तक पहुँच ही न पाएं।
कृषि मंत्री तोमर ने शुक्रवार को फिर कहा है कि सरकार नए कृषि कानूनों से संबंधित प्रावधानों पर किसी भी किसान संगठन से और कभी भी बात करने को तैयार है। उन्होंने कहाकि हमारी इच्छा शक्ति में कोई कमी नहीं है, सरकार वार्ता करने को तैयार हैं। लेकिन उनकी एक शर्त है कि रिपील (निरस्त करने) को छोड़कर कोई भी किसान संगठन आधी रात को भी बात करने आता है तो वह उनका स्वागत करेंगे।
यानी बात जहां टूटी थी अभी भी वहीं है किसान निरस्त करने पर अड़े हैं और सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। गौरतलब है कि 22 जनवरी को किसानों और सरकार के बीच हुई आखिरी वार्ता में भी सरकार ने किसानों को कानूनों को 18 महीने तक लागू नहीं करने का भी प्रस्ताव दिया था, लेकिन किसानों पूरी तरह से निरस्त करने की मांग करते हुए उसे खारिज कर दिया था।
लेकिन दोनों पक्षों के अबतक अपना स्टैंड न बदलने से फिलहाल आंदोलन लंबा खिंचने के आसार दिखाई दे रहे हैं। हाल में पंचायत चुनाव में किसान आंदोलन प्रभावित जिलों में इसका असर दिखने से राजनीतिक दल भी आगामी विधानसभा चुनाव में लाभ उठाने के नजरिये से इस आंदोलन को हवा देने में लगे हैं।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के सात महीने पूरा होने पर शनिवार को कहा है कि उनकी पार्टी इन सत्याग्रही अन्नादाताओं के साथ खड़ी है। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, ''सीधी-सीधी बात है- हम सत्याग्रही अन्नदाता के साथ हैं।''
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव भी खुद को किसानों का रहनुमा साबित करते हुए कह चुके हैं कि जब तीनों कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन शुरू हुआ तो समाजवादी पार्टी ने किसानों का समर्थन किया। उनका कहना है कि उन्हें घर में कैद कर दिया गया। जब वे कन्नौज जाना चाहते थे तो उन्हें वहां भी नहीं जाने दिया गया। साथ ही बैरिकेंडिंग लगाकर उनकी गाड़ियों को रोक दिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया।
उधर मुजफ्फरनगर दंगे के बाद से अपनी जमीन तलाश रहे राष्ट्रीय लोकदल किसान आंदोलन ने संजीवनी दे दी है। किसान आंदोलन के बाद रालोद नेताओं की सक्रियता बढ़ी है। जयंत चौधरी की ताबड़तोड़ रैलियों से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हुआ है और जिला पंचायत चुनाव में मिले जनसमर्थन ने इस ऊर्जा को और बढ़ा दिया है।
बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती का किसान आंदोलन को लेकर बेहद सधा हुआ नपा तुला रवैया रहा है। गाजीपुर बार्डर के धरने के वह विरोध करती हैं तो आंदोलन के छह माह पूरे होने पर समर्थन में ट्वीट कर कहती हैं, तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर देश के किसान कोरोना महामारी के इस अति-विपदा काल में भी लगातार आंदोलित हैं। आन्दोलन के 6 महीने पूरे होने पर उनके देशव्यापी विरोध दिवस को बसपा का समर्थन। केंद्र को भी इनके प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है।
यानी किसानों के साथ खुलकर खड़ होने की जगह उनके आंदोलन से लाभ कमोवेश हर दल उठाना चाहता है। उधर भाजपा की रणनीति शुरू से ही आंदोलन को दलालों का विरोध साबित करने की रही है। उसका यह मानना है कि किसानों का आंदोलन से कोई मतलब ही नहीं है।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं।