सीएम कुर्सी, शिवसेना और साठ साल, दो पीढ़ियों का सफर

मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए शिवसेना को बहुत पापड़ बेलने पड़े। कांग्रेस, एनसीपी, भाजपा, मुस्लिम लीग सबके साथ जुड़ने और टूटने का रिश्ता बनाना पड़ा। बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनेंगे।

Update: 2019-11-27 17:17 GMT

लखनऊ: शिवसेना पहला ऐसा क्षेत्रीय राजनीतिक दल है, जिसके सुप्रीमो को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए दो पीढ़ियों का लंबा सफर तय करना पड़ा। शिवसेना की स्थापना 19 जून 1960 को बालासाहब ठाकरे ने की थी। आज 59 साल का राजनीतिक सफर तय करने के बाद शिवसेना प्रमुख को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

उद्धव ठाकरे, कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से बनेंगे मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए शिवसेना को बहुत पापड़ बेलने पड़े। कांग्रेस, एनसीपी, भाजपा, मुस्लिम लीग सबके साथ जुड़ने और टूटने का रिश्ता बनाना पड़ा। बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनेंगे। शिवसेना को छोड़ बाकी जितने भी क्षेत्रीय दल हैं सभी के सुप्रीमो को अपनी ही जिंदगी में मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला, कुछ तो ऐसे क्षेत्रीय दल हैं जिनकी दो पीढ़ियां मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुईं।

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किसी राजनीतिक दल के तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का सबसे लंबा समय का रिकार्ड भी शिवसेना के खाते ही जाता है। महाराष्ट्र के क्षेत्रीय दल के तौर पर जानी जाने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन तो 1999 में हुआ लेकिन इसके प्रमुख शरद पवार वर्ष 1978 में प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट बनाकर पहली बार महाराष्‍ट्र के मुख्‍यमंत्री बन चुके हैं। तब उनकी उम्र महज 38 साल की थी।

26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी बनाकर दिल्ली में सियासत करने वाले अरविंद केजरीवाल भी पार्टी के गठन का एक वर्ष होते ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रहे। शरद पवार की तरह कांग्रेस से अलग होकर 1 जनवरी 1998 को तृणमूल कांग्रेस पार्टी बनाने वाली ममता बनर्जी भी पार्टी गठन के 13 साल के भीतर 2011 में प.बंगाल से वामपंथ का सफाया कर पहली बार मुख्यमंत्री बनीं।

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जम्मू कश्मीर में राजनीति करने वाली नेशनल कांफ्रेंस की स्थापना 1932 में शेख अब्दुल्ला ने देश की आजादी से पहले की थी। पार्टी की स्थापना के तकरीबन 16 साल बाद इसके नेता शेख अब्दुल्ला 1948 में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने जिसे उस समय प्रधानमंत्री कहा जाता था। बाद में उनके बेटे फारुख अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री बने यही नहीं फारुख अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला को भी मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

मुलायम सिंह यादव भी अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनवाने में हुए कामयाब

उत्तर प्रदेश में सियासत करने वाली समाजवादी पार्टी का गठन 4 अक्टूबर 1992 को हुआ। हालांकि इसके नेता मुलायम सिंह यादव पार्टी गठन के पहले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे। पार्टी गठन एक वर्ष के भीतर वह 1993 में मुख्यमंत्री बने फिर 2003 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और इसके बाद मुलायम सिंह यादव 2012 में अपने बेटे को भी मुख्यमंत्री बनवाने में कामयाब हुए।

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लालू प्रसाद यादव भी 1997 में अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनतादल बनाने के पहले ही 1990-97 तक मुख्यमंत्री रह चुके थे। अपनी पार्टी बनाने के पांच साल के भीतर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में कामयाब रहे।

तमिलनाडु की राजनीति में करुणानिधि ने पार्टी डीएमके की स्थापना 17 सितंबर 1949 में की और 1969 से 2011 तक छह बार मुख्यमंत्री रहे। हालांकि पार्टी बनाने दो दशक के भीतर ही उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली थी।

आंध्र प्रदेश की सियासत में एनटी रामाराव का नाम भी इसी कोटि में आता है उन्होंने भी 1982 में अपनी तेलुगुदेशम पार्टी बनाई और एक साल के भीतर ही मुख्यमंत्री की कुर्सी कब्जाने का करिश्मा कर दिखाया वह लगातार तीन बार मुख्यमंत्री हुए बाद में उनका उत्तराधिकार उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने ले लिया।

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हरियाणा की राजनीति में देवीलाल का नाम भी उन राजनेताओं में शुमार होता है जिन्होंने कई पार्टी बनाई और अपनी सरकार भी। उत्तराधिकार अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को हस्तांतरित करने में भी कामयाब रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन 4 फरवरी 1974 को हुआ, शिबू सोरेन भी ऐसे भी भाग्यशाली नेताओं में हैं जिन्होंने पार्टी और सरकार दोनो को अपनी जिंदगी में बनाकर दिखा दिया। के. चंद्रशेखर राव ने भी 2001 में अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति बनाई और 18 वर्ष के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जा बैठे।

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