राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020: गांधी व अंबेडकर के सपनों को करेगी पूरा
इस शिक्षा नीति -2020 को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि यह कोई साधारण दस्ताबेज नहीं है बल्कि आगामी दिनों में भारत को अपनी संस्कृति- सभ्यता के आधार पर आगे ले जाने वाला एक दस्ताबेज है ।
डा समन्वय नंद
राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 को केन्द्रीय कैविनेट ने मंजूरी दे दी है । इसके बाद इस नयी शिक्षा नीति पर बहस शुरु हो गई है। इस शिक्षा नीति -2020 को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि यह कोई साधारण दस्ताबेज नहीं है बल्कि आगामी दिनों में भारत को अपनी संस्कृति- सभ्यता के आधार पर आगे ले जाने वाला एक दस्ताबेज है ।
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भारत में ‘काले अंग्रेज’ तैयार करना
भारत को अधिक दिनों तक गुलाम रखने के लिए अंग्रेजों ने मेकाले द्वारा बनाये गये एक विशेष प्रकार की शिक्षानीति तैयार कर लागू की थी, जिसका उद्देश्य भारत में ‘काले अंग्रेज’ तैयार करना था । इस शिक्षा नीति से भारत में एक ऐसा वर्ग का निर्माण होता था जो चेहरे से तो काला था लेकिन मानसिक रुप से गोरा था।
इस शिक्षा नीति से निकलने वाला छात्र व युवा अपनी भारतीय सभ्यता, संस्कृति व परंपरा को अत्यंत हिकारत भरी दृष्टि से देखता थातथा विदेशी गोरों की पंरपंरा- व्यवस्था को महान मानता था । फिर वह गोरे प्रभुओं के लिए काम करता था । भारत स्वतंत्र होने के बाद शिक्षा व्यवस्था वामपंथी शिक्षाविदों के हाथ मे चली गई। स्वतंत्रता के बाद यह आशा की जा रही थी कि शिक्षा नीति में परिवर्तन होगा तथा शिक्षा का भारतीयकरण किया जाएगा । लेकिन दुर्भाग्य से इस मामले में बहुत कुछ नहीं हुआ और उसी ढर्रे पर चलता रहा ।
परिवर्तन होने की आशा की जा रही
इस नयी शिक्षा नीति द्वारा काफी कुछ परिवर्तन होने की आशा की जा रही है । भारत को ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी देश बनाने के लिए इसमें व्यवस्था है । भारत को ज्ञान का पावर हाउस बनाने के साथ साथ भारतीय छात्र- युवाओं को मानसिक दासता से मुक्त करने के लिए यह नयी शिक्षानीति कारगर सिद्ध होगी । भारत के छात्र व युवाओं को मानसिक गुलामी से मुक्त किये बिना भारत का पुनर्जागरण संभव नहीं है। नयी शिक्षा नीति मानसित दासता से मुक्त कर भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मार्ग प्रशस्त करेगी।
इसी तरह नयी शिक्षा नीति मौलिक चिंतन को भी प्रोत्साहित करेगी । मानसिक दासता से मुक्त हो कर मौलिक चिंतन को प्रोत्साहित करने के लिए इको सिस्टम तैयार करेगा ।इस शिक्षा नीति की एक विशेष बात यह है कि इसमें पांचवीं कक्षा तक बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रस्ताव है । अभी तक किये गये शोध व अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि बच्चा यदि मातृभाषा में शिक्षा लेता है तो उसे सर्वाधिक लाभ होता है व उसकी मौलिक चिंतन करने की क्षमता मे बढोत्तरी होती है। वहीं दूसरी ओर किसी विदेशी भाषा में शिक्षा देने पर बच्चा रट्टु बन जाता है तथा मौलिक रुप से चिंतन की उसकी क्षमता कम हो जाती है ।
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महात्मा गांधी भारत व भारतीयता के प्रबल समर्थक
महात्मा गांधी भारत व भारतीयता के प्रबल समर्थक थे । वह भी इस बात को स्वीकार करते थे। महात्मा गांधी कहते थे “ मेरा सुविचारित मत है कि अंग्रेजी की शिक्षा जिस रुप से हमारे यहां दी गई है, उसने अंग्रेजी पढे लिखे भारतीयों को दुर्वलीकरण किया है, भारतीय विद्यार्थियों की स्नायविक ऊर्जा पर जबरदस्त दबाव डाला है , और हमें नकलची बना दिया है। अनुवादकों की जमात पैदा कर कोई देश राष्ट्र नहीं बन सकता । ” (यंग इंडिया 27.04.2014)
आज अंग्रेजी निर्विवादित रुप से विश्व भाषा
अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा प्रदान द्वारा काफी नुकसान होने की बात गांधी जी स्पष्ट रुप से कहते थे । गांधी जी ने कहा “ शिक्षा के माध्य़म को तत्काल बदल देना चाहिए और प्रांतीय भाषाओं को हर कीमत पर उनका उचित स्थान दिया जाना चाहिए । हो सकता है इससे उच्चतर शिक्षा में कुछ समय के लिए अव्यवस्था आ जाए, पर आज जो भयंकर बर्बादी हो रही है उसकी अपेक्षा वह अव्यवस्था कम हानिकर होगी । ”
गांधी जी ने और कहा कि “ आज अंग्रेजी निर्विवादित रुप से विश्व भाषा है । इसलिए मैं इसे विद्यालय के स्तर पर तो नहीं विश्वविद्यालय पाठ्य़क्रम में वैकल्पिक भाषा के रुप में द्वितीय स्थान पर रखुंगा । वह कुछ चुने हुए लोगों के लिए तो हो सकती है , लाखों के लिए नहीं ….. यह हमारी मानसिक दासता है जो हम समझते हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम नहीं चल सकता । मैं इस पराजयवाद का समर्थन कभी नहीं कर सकता । ” ( हरिजन 25.08.1946)
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अंग्रेजी जाने बगैर कोई ‘बोस ’ नहीं बन सकता
महात्मा गांधी ने और कहा कि “हम यह समझने लगे हैं कि अंग्रेजी जाने बगैर कोई ‘बोस ’ नहीं बन सकता । इससे बडे अंधविश्वास की बात और क्या हो सकती है । जैसी लाचारगी का शीकार हम हो गये लगते हैं वैसी किसी जपानी को तो महसूस नहीं होती ।” (हरिजन 9.7.1938)
गांधीजी का स्पष्ट मानना था कि हम अंग्रेजी अपने छोटे बच्चों पर लाद कर उनका मानसिक विकास सही रुप से होने नहीं दे रहे हैं । बच्चा यदि मातृभाषा में अध्ययन करता है तो उसका मानसिक विकास होगा ।अंग्रेजी बच्चे पर लाद देना मानसिक दासता का परिचायक है ।
2020 की शिक्षा नीति मे महात्मा गांधी के इस विचार पर ध्यान दिया गया है ।केवल इतना ही नहीं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं को कैसे अधिक वरियता मिल पायेगा इसे लेकर भी प्रावधान किया या है । शिक्षानीति में इंडियन इंस्टिट्यूट आफ ट्रान्सलैंशन एंड इंटरप्रिटेशन की स्थापना की भी प्रावधान है ।
महात्मा गांधी व अंबेडकर के सपनों को पूरा करने में यह नीति सहायक
शिक्षा नीति -2020 की एक और विशेष बात यह है कि इसमें संस्कृत पर ध्यान दिये जाने की बात कही गई है । देश के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने संस्कृत को उचित स्थान प्रदान करने के लिए काफी प्रयास किया था । लेकिन तब कुछ लोगों के विरोध के कारण यह हो नहीं हो सका था । उनका मानना था कि संस्कृत पर ध्यान दिये जाने से भारतीय भाषाओं के बीच जो कटुता कुछ लोगों द्वारा बनाये गये हैं उसे दूर किया जा सकेगा । इस शिक्षा नीति में संस्कृत को वरियता दिये जाने की बात कही गई है ।
अंग्रेजों के समय से लेकर स्वतंत्रता के बाद से ही जो शिक्षा नीति देश मे चल रही थी वह भारत के छात्रों व युवाओं को स्व संस्कृति, स्व सभ्यता, स्व भाषा से काट रहा है । 2020 की शिक्षा नीति न केवल उनमें ‘स्व’ की भावना को बढायेगी बल्कि उन्हें पश्मिच केन्द्रित करने के बजाय भारत केन्द्रित करेगी । महात्मा गांधी व अंबेडकर के सपनों को पूरा करने में यह नीति सहायक सिद्ध होगी ।
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