नहीं मिल रहीं भक्तों को खिलाने के लिए देवी स्वरूपा कन्याएं
पहले कन्याओं का समूह सुबह से ही तैयार हो जाता था क्योंकि यह उनकी अपनी कमाई का दिन होता था हर घर में उनकी पूजा होती थी उन्हें खाने के लिए पकवान मिलते थे और भेंट उपहार में वस्त्र और रुपए भी दिये जाते थे।
पंडित रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में आंकड़ों में लिंगानुपात की स्थिति पर सरकारी मशीनरी भले अपनी पीठ थपथपा रही हो लेकिन वास्तविक स्थिति बहुत भयावह है। नवरात्र पर हम देवी पूजा भले बड़ी धूमधाम से करते हैं लेकिन अपने घरों में कन्या के जन्म से परहेज करते हैं। नतीजा यह हो रहा है कि देवी पूजा के बाद कन्या को देवी स्वरूप मानकर पूजन कर उन्हें खिलाने और उपहार देकर पुण्य लाभ प्राप्त करने से हम वंचित हो जा रहे हैं। ढूंढने पर भी कन्याएं नहीं मिल रही हैं। जिस घर में बात करो लड़के मिल जाएंगे लेकिन लड़कियां नहीं।
पहले कन्याओं का समूह सुबह से ही तैयार हो जाता था
इसके पीछे तमाम कारण बताए जा रहे हैं एक कारण यह कहा जाता है कि लोग कन्या को भोजन के यहां भेजने में कई पहलुओं पर गौर करने लगे हैं। जिसमें पहला कारण यह है कि यदि आप के यहां कन्या नहीं है तो दूसरा व्यक्ति क्यों आपके यहां कन्या भेजेगा। ऐसा पहले नहीं होता था पहले कन्याओं का समूह सुबह से ही तैयार हो जाता था क्योंकि यह उनकी अपनी कमाई का दिन होता था हर घर में उनकी पूजा होती थी उन्हें खाने के लिए पकवान मिलते थे और भेंट उपहार में वस्त्र और रुपए भी दिये जाते थे।
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दूसरा यह कि अब बढ़ते अपराधों और अपराधी प्रवृत्ति के चलते अभिभावक सतर्क होते जा रहे हैं। वह आपके यहां कन्या भेजने से पहले आपके परिवार के चरित्र का भी विश्लेषण करने लगे हैं। इस आधार पर वह तय करते हैं कि आप कन्या को देवी स्वरूप मानकर भोजन कराने के अधिकारी हैं या नहीं।
बढ़ती जातीयता ने सामाजिक स्तर पर खाई चौड़ी कर दी है
तीसरा कारण यह है कि लोगों में संकीर्णता का दायरा बढ़ गया है पहले कन्या की कोई जाति नहीं होती थी वह सभी घरों मे समान रूप से चली जाया करती थीं अब बढ़ती जातीयता ने सामाजिक स्तर पर खाई चौड़ी कर दी है जिसके चलते ऊंचनीच देखकर अभिभावक कन्या को भोजन करने के लिए दूसरे के घर भेजने लगे हैं।
चौथा कारण सामूहिक परिवारों का विघटन या टूटना। पहले हमारे समाज में सामूहिक परिवार हुआ करते थे तो हर घर में बच्चों की एक सेना हुआ करती थी जिसमें लड़के लड़कियां सब होते थे। और नवरात्र में दुर्गा पूजा के अवसर पर कोई भी अपने घरों की लड़कियों को खिलाकर व्रत नहीं खोलना चाहता था इसलिए एक घर की लड़कियां दूसरे घर जाती थीं जो दूसरे घर की लड़कियां उस घर में आती थीं। किसी को कुछ अजीब नहीं लगता था। सारे बच्चे एक दूसरे के घरों में सामान्यतः बने रहते थे जहां खाना बन गया खा लिया जहां सोने को जगह मिली सो गए।
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कामकाजी युग में एकल बच्चों परंपरा तो सबने अपना ली
वक्त बदलने के साथ एकल अभिभावक घरों का समाज बनने लगा जिसमें हर घर में एक बच्चा होना भी अनिवार्य नहीं। हर घर में लड़की होना तो कत्तई अनिवार्य नहीं क्योंकि एकल अभिभावक वाले घरों में अमूमन एक ही बच्चा होता है। न तो उसका कोई भाई होता है न बहन। इन रिश्तों से अंजान बच्चा बड़ा होता है। अगली पीढ़ी में उसके भी एक ही बच्चा होता है।
इस कामकाजी युग में एकल बच्चों के बढ़ते परिवारों में एक बच्चे की परंपरा तो सबने अपना ली लेकिन लड़के लड़की का भेद नहीं मिटा पाए सबकी यह इच्छा बनी रही कि एक ही बच्चा होना है तो लड़का ही हो। अब लड़का हो गया तो वह अकेला ही रहेगा। लेकिन आप चाहते हैं कि देवी पूजा करके आप कन्याओं को मानते हैं आपका यह स्वरूप भी बना रहे। तो ऐसे में संकट है। क्योंकि दूसरा जिसने सिर्फ कन्या को जन्म दिया है वह आपको साल में दो बार कन्या को भोजन कराने का सुख लेने दे या न दे यह उसकी मर्जी पर है।
मानसिकता के समान धर्मी समाज में लड़के तो खूब होंगे लेकिन लड़कियां नहीं मिलेंगी
यही वजह है कि आज आप को साल में दो बार पड़ने वाले नवरात्र में खिलाने के कन्या नहीं मिल रही है। आने वाले बीस साल बाद जब आप लड़के की शादी के लिए जाएंगे तो शादी के लिए लड़की ही नहीं मिलेगी। क्योंकि तब भी आप अपने कुल खानदान गोत्र के हिसाब से लड़की चाहेंगे। लेकिन आपकी मानसिकता के समान धर्मी समाज में लड़के तो खूब होंगे लेकिन लड़कियां नहीं मिलेंगी।
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इस संबंध में ये है एक कहानी
इस संबंध में एक कहानी है कि एक ऋषि बालक गुरुकुल में शहर कर शिक्षा प्राप्त कर रहा था वहां उसने कभी स्त्री नहीं देखी थी शिक्षा जब समाप्त होने को थी तब गुरु ने उससे कहा कि अब तुम कर्म पथ की शिक्षा लो और जाओ भिक्षा मांगकर लाओ।
गुरुकुल के कामों में सहयोग करो। लेकिन एक घर से एक ही बार भिक्षा मांगना जो मिले लेकर लौट आना। यह बात उस समय समाज में भी प्रसिद्ध थी इसलिए गुरुकुल के बटुक को लोग दिल खोलकर दान सामग्री देते थे क्योंकि समाज में तकरीबन हर घर का बच्चा किसी न किसी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहा होता था। उस समय पांच साल के बच्चे को गुरुकुल भेज दिया जाता था। इसलिए हर बच्चे में लोगों को अपने बच्चे का चेहरा दिखता था।
ऋषि बालक ने कभी स्त्री को देखा नहीं था
तो हम बात कर रहे थे ऋषि बालक की। ऋषि बालक पहली बार जंगल से निकल कर भीख मांगने नगर में गया। वह एक घर के सामने रुका और गुहार लगाई माता भिक्षां देहि। थोड़ी देर में एक 15-16 साल की तरुणी भिक्षा लेकर आई। ऋषि बालक ने कभी स्त्री को देखा नहीं था। वह अचंभे में पड़ गया। उस कन्या ने उसे भिक्षा दी। भिक्षा लेकर वह वापस गया।
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अगले दिन फिर वह उसी घर में पहुंचा और फिर दोहराया माता भिक्षां देहि। फिर कन्या आयी भिक्षा दी और चली गई। तीसरे दिन फिर वह वहां पहुंचा और गुहार लगाता उससे पहले वह कन्या आई और पूछा अरे बटुक तुम रोज इस घर में क्यों आ रहे हो। क्या तुम्हें नियम नहीं पता। ऋषि बालक ने कहा नियम पता है लेकिन मै जानना चाहता हूं कि तुम्हारी छाती आगे को इतना उभरी हुई क्यों है। उस कन्या ने कहा कि यह मेरे स्तन है। जो कि मेरे विवाह के उपरांत मेरी होने वाली संतान को दूध पिलाने के लिए हैं। ऋषि बालक ने कहा ओह मै समझ गया ईश्वर ने जो बीस साल बाद जन्म लेगा उसके लिए इतना पहले यह व्यवस्था कर दी है।
स्त्री रहित पुरुष फिर स्त्री क्लोन बनाकर शादी करेगा
बात इतनी सी ही है कि हमें हमारे कर्मों का फल आज नहीं मिलता। आज हम आनंद में मग्न रहते हैं लेकिन बीस साल बाद जब उसके नतीजे आते हैं तो हम आहत होते हैं। अभी भी चेत सकते हैं। यदि आज चेत गए तो आने वाला समय खुशहाल हो गा। वरना स्त्री रहित पुरुष फिर स्त्री क्लोन बनाकर शादी करेगा। इस तरह सृष्टि के निर्माण को तो आप रोकने में समर्थ हो ही जाएंगे। आपका वंश कितना चलेगा यह वक्त बताएगा।