राग - ए- दरबारी: उप्र इन्वेस्टर समिट : हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन...
उत्तर प्रदेश में एक बार फिर ‘इन्वेस्टर समिट’ का पर्व आने वाला है। वे कह रहे हैं कि प्रदेश में लाखों करोड़ का निवेश आ जायेगा। हर बार की तरह इस बार भी यह पर्व अलग तरीके से मनाये जाने का दावा किया गया। पहले की समिट में क्या हुआ था उसका कोई फॉलोअप नहीं है। अबकी बार भाजपा सरकार है तो हर काम ‘ओवर दी टॉप’ हो रहा है 21 -22 फरवरी की समिट के लिए जब देश के बड़े बड़े बिजनेसमेन यहाँ जमा होंगे।
सुना है राजधानी लखनऊ में खराब सडक़ें ठीक हो रही हैं, सजावट भी होगी, कानून व्यवस्था भी ठीक करने पर जोर है, शहर की रंगाई पुताई होगी, एयरपोर्ट के आसपास का वातावरण ‘इन्वेस्टर फ्रेंडली’ (राम जाने इसका क्या मतलब है) बनाया जायेगा, रेड कारपेट शायद पिछली सरकार के कारपेट से ज़्यादा चटक लाल होगा। आखिर लाखों करोड़ का निवेश यूँ तो हो नहीं जाता है।
इस खबर को भी देखें: राग – ए- दरबारी: उत्तर प्रदेश में इतना कन्फ्यूजन क्यों है भाई…
मुश्किल यह है कि आम आदमी अब समझदार हो गया है उन निवेशकों की तरह जो पांच सितारा मेहमाननवाजी का लुफ्त उठा कर चले गए लेकिन उत्तर प्रदेश में पैसा लगाने को तैयार नहीं हुए। वह जानता है कि सडक़ें वही ठीक होंगी जो एयरपोर्ट से पांच सितारा होटल तक जाती हैं, धुलेंगी भी वही सडक़ें, सजेंगी भी वही, बाकी तो जो है सो है।
बात रंगाई पुताई की नहीं, मूलभूत मानसिकता की है। बात निवेश के लिए उत्तम माहौल की है, बात सरकारी अमले की नम्रता की है, बात नीतियों की है, बात सरकार में विश्वास की है। इन बातों के बगैर उत्तर प्रदेश में निवेश की बात सोचना भी गलत है। अब सवाल यह है कि एक साल में ऐसा क्या हो गया जो अचानक अब हो जायेगा। क्या अधिकारियों का मानस बदल गया या बदल जायेगा? क्या विभिन्न विभागों का आपसी तालमेल बढ़ जायेगा? क्या भ्रष्टाचार पर हमेशा के लिये अंकुश लग जायेगा? क्या बिजली की उपलब्धता एक दम से 24 घंटे हो जाएगी?
इस खबर को भी देखें: राग-ए-दरबारी: बात स्वेटर की थी …आप तो संवेदनशीलता की बात करने लगे
माइक्रो लेवल पर पता कर लिया जाये कि क्या संभावित निवेशकों की ईमेल का जवाब भी दिया जा रहा है, पॉजिटिव या नेगेटिव कुछ भी। जरा पता कर लें जवाब नकारात्मक ही मिलेगा। हो सकता है अंबानी या अडानी कुछ निवेश कर भी दें तो क्या ऐसे बड़े नामों के सामने अपेक्षाकृत छोटे निवेशकों का कोई वजूद ही नहीं। ऐसे नहीं बनता है निवेश का माहौल।
प्रदेश में एक औद्योगिक विकास विभाग है, औद्योगिक विकास निगम भी है। जऱा कामकाज पर नजऱ डाल ली जाये, यह तो नोडल एजेंसीज हैं, इन्होंने क्या किया? प्रदेश में जो पहले से औद्योगिक आस्थान हैं, उनका क्या हाल है? बहुत हुआ बैठकों का दौर। अब तो वाकई काम का समय है। सवाल बस इतना सा ही है क्या योगी सरकार जनता को चमत्कृत करने का माद्दा रखती है इस बार के इन्वेस्टर समिट से। काश ऐसा हो जाये तो प्रदेश के अच्छे दिन आने में समय नहीं लगेगा लेकिन बहुत बड़ा लेकिन लगा है साथ में क्योंकि सरकारी मशीनरी तो वही है न लगभग।
जनता का क्या है, वह तो अपने पैसे का अपव्यय होते देख रही है सालों साल, एक बार और सही। सब अच्छा होता है तो ठीक है वरना जनता की तो आदत है चुप रहने की। मशहूर शायर मिर्जा ग़ालिब तो लिख ही चुके हैं, ‘हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन दिल को बहलाने को ये ख्याल अच्छा है।’ अब यह बात दीगर है कि इस बार हम उम्मीदों के रथ पर सवार हैं। आमीन।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)