स्वामी विवेकानंद की भविष्यवाणी व प्रज्ञा देवनाथ प्रकरण

अप्रैल, 1899 में प्रबुद्ध भारत पत्रिका को दिये साक्षातकार में स्वामी विवेकानंद ने कहा था ” यदि कोई हिन्दू से किसी अन्य रिलिजयन में कनवर्ट होता है तो केवल एक हिन्दू ही नहीं घटता बल्कि एक शत्रु भी बढ जाता है। ”

Update:2020-07-26 11:44 IST

डा समन्वय नंद

पूरे विश्व में हिन्दुत्व का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद भविष्यद्रष्टा थे । भविष्य को देखने की क्षमता उनमें थी । 1899 में मतांतरण (कनवर्जन) व इससे जुडे अन्य मुद्दो को लेकर प्रबुद्ध भारत पत्रिका को एक साक्षातकार दिया था । अप्रैल, 1899 में प्रबुद्ध भारत पत्रिका को दिये साक्षातकार में स्वामी विवेकानंद ने कहा था ” यदि कोई हिन्दू से किसी अन्य रिलिजयन में कनवर्ट होता है तो केवल एक हिन्दू ही नहीं घटता बल्कि एक शत्रु भी बढ जाता है। ” स्वामी विवेकानंद द्वारा लगभग 120 साल पहले कही गयी यह बात बाद के समय में एक बार नहीं बल्कि बार बार सत्य प्रमाणित हुई है ।

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प्रज्ञा देवनाथ का प्रसंग पर्याप्त

इस आलेख के शीर्षक में प्रज्ञा देववाथ के नाम का उल्लेख है । पर यह प्रज्ञा देवनाथ कौन हैं तथा उनके स्वामी विवेकानंद के भविष्यवाणी के साथ क्या संबंध है इसको लेकर मन में प्रश्न आना स्वाभविक है । स्वामी विवेकानंद ने 120 साल पहले जो बात कही थी उसे प्रज्ञा देवनाथ ने अभी अभी सत्य प्रमाणित किया है । सरल भाषा में कहें तो स्वामी विवेकानंद के कथन के सत्यता की जांच करने के लिए हाल ही में घटित हुआ प्रज्ञा देवनाथ का प्रसंग पर्याप्त है ।

प्रज्ञा देवनाथ के संबंध में जानकारी

आईए प्रज्ञा देवनाथ के संबंध में जानकारी लेते हैं । उसके संबंध में बांग्लादेश के ढाका से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘ढाका ट्रिब्युन’ समाचार पत्र में कुछ दिन पहले एक खबर प्रकाशित हुई है । प्रज्ञा देवनाथ पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के पश्चिम केशवपुर गांव की लडकी है । वह जिले की दक्षिणकाली महाविद्यालय में संस्कृत की छात्रा थी ।

कुछ साल पहले वह किसी प्रेमी के साथ प्रेम जाल में फंसने के बाद उसके अपना धर्म छोड कर इसलाम अपना लिया था और आयशा जन्नत बन गई । इसके बाद अपने घर वालों को न बता कर वह अपने प्रेमी के साथ बांग्लादेश भाग गई थी । उसके जिसके साथ विवाह किया था उसने उसको बांग्लादेश में एक आतंकवादी संगठन के साथ संपर्क करवा दिया ।

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संगठन के महिला इकाई में बडी जिम्मेदारी संभाली

इसके बाद प्रज्ञा उर्फ आयशा बांग्लादेश के एक ब़डे आतंकवादी संगठन जमात-उल- मुजाहिदीन में शामिल हो गई । उसने उस संगठन के महिला इकाई में बडी जिम्मेदारी संभाली । वहां से वह आनलाइन के जरिये छोटे छोटे बच्चों के मन में जहर भरने काम शुरु कर दिया । केवल इतना ही नहीं वह बाद मे पश्चिम बंगाल आकर यहां के बच्चों को उस आतंकवादी संगठन के साथ जोडने का काम किया । उस आतंकवादी संगठन के निशाने पर भारत था । लेकिन गत 16 जुलाई को वह ढाका मे सुरक्षा बलों द्वारा गिरफ्तार हुई ।

उसके बाद उसके बारे में यह जानकारियां मिली । बांग्लादेश के समाचार पत्रों में उसके बारे में विस्तार से छपा है लेकिन भारत के समाचार पत्रों ने इस खबर को लेकर खास रुचि नहीं दिखाई । प्रज्ञा हिन्दू धर्म छोडने के बाद न केवल एक हिन्दू कम हुआ है बल्कि एक शत्रु भी बढा है । प्रज्ञा देवनाथ की कहानी 120 साल पहले स्वामी विवेकानंद के कथन को पुनः एक बार सत्य प्रमाणित कर रही है ।

भारत माता का विभाजन हो गया

स्वामी विवेकानंद का यह कथन पहली बार सत्य प्रमाणित नहीं हो रही है । भारत के जिन इलाकों में मतांतरण अधिक हुआ और मुसलमानों की संख्या बढ गई तथा हिन्दूओं की संख्या कम हो गई अखंड भारत का वह इलाका भारत से कट गया । मतांतरित हुए लोगों ने अलग देश की मांग की । हिंसा व रक्तपात किया गया और भारत माता का विभाजन हो गया । इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हम देख सकेंगे ।

यही समान बात स्वातंत्रवीर सावरकर कहते थे । वह मतांतरण को राष्ट्रांतरण कहते थे । उनका कहना था कि मतांतरण से व्यक्ति की राष्ट्रीयता बदल जाती है ।

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कोई किसी मार्ग पर क्यों न जाए अंत में ईश्वर की प्राप्ति होगी

पर एक प्रश्न यहां खडा होता है मतांतरण से क्या नुकसान होता है ? कौन किसकी उपासना करे यह तो व्यक्तिगत मामला है । इस कारण कौन किसे स्वीकार करे या न करे इसे लेकर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए ? यह प्रश्न स्वतः सामने आता है । लेकिन यह प्रश्न इतना सरल नहीं है जितना ऊपर से प्रतीत होता है । भारत में सैकडों मत – पंथ- संप्रदायों का जन्म हुआ है । लेकिन भारत में जन्में इन सभी मत –पंथ- संप्रदाय संवाद में विश्वास करते हैं । वे सभी इस बात को स्वीकार करते हैं कि एकं सद् विप्राः बहुधा बदंति । अर्थात सत्य एक है , विद्वान लोग उसकी अलग अलग व्याख्या करते हैं ।

यही कारण है कि ईश्वर को लेकर भारत में किसी प्रकार का विवाद नहीं हुआ है । सभी का मानना है कि कोई किसी मार्ग पर क्यों न जाए अंत में ईश्वर की प्राप्ति होगी । इस कारण विवाद की आवश्यकता नहीं है । यहां बल, छल व प्रलोभन से मतांतरण का उदाहरण नहीं मिलता है। ये तो थी भारत में जन्में मत , पंथ संप्रदायों की बात ।

विदेशों में जन्में सेमेटिक या सामी संप्रदायों में ऐसा नहीं है । उनका मानना है कि उनके द्वारा निर्धारित किये गये मार्ग ही अंतिम है । अन्य सभी को उनके बताये गये मार्ग पर आना ही होगा । वे लोगों को किस ढंग से अपने मार्ग पर लाते हैं, वह सर्वविदित है । इसलिए उसका उल्लेख करना यहां आवश्यक नहीं है ।

इसलिए उपासना पद्धति का बदलना केवल व्यक्तिगत मामला नहीं

कोई भी भारतीय जब किसी प्रकार का सेमेटिक रिलिजन को अपनाता है तो केवल उसकी उपासना की पद्धति ही नहीं बदलती । उसका सब कुछ बदल जाता है । वह हजारों वर्षों से लगातार चले आ रहे उनके पूर्वजों की परंपरा व संस्कृति से कट जाता है । वह अपना नाम अब भारतीय नाम नहीं रखता । वह अपने भारतीय नाम को बदल कर अरब या युरोप का नाम रखता है, जिसका मतलब ही उसे मालूम नहीं होता है । अपने माता- पिता द्वारा दिये गये नाम को बदल कर वह ऐसा नाम रखता है जिसका उच्चारण भी वह ठीक से नहीं कर पाता । मतांतरण के बाद उसके घर के आंगन में तुलसी नही रहती ।

महादेव, विष्णु, माँ दूर्गा, माँ काली जिनके पास हजारों सालो से उनके पूर्वजों की आस्था व विश्वास रहता आ रहा था, वह आस्था व विश्वास झटके में समाप्त हो जाता है । कनवर्जन के बाद उसके आस्था का केन्द्र बदल जाता है । काशी विश्वनाथ, पुरी श्रीजगन्नाथ, सोमनाथ में जो उसकी आस्था थी वह बदल कर उसका आस्था का केन्द्र अरब के मक्का- मदीना या फिर रोम के वैटिकन हो जाता है । इसलिए उपासना पद्धति का बदलना केवल व्यक्तिगत मामला नहीं है । इसके आस्था का केन्द्र देश के बाहर चला जाता है । ऐसी स्थिति में भविष्यद्रष्टा स्वामी विवेकानंद के कथन से शिक्षा लेने की आवश्यकता है ।

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