समझिये अभी औरः तभी गांधी को मानेंगे, अपनाएंगे

सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रीय प्रतीकों, राष्ट्रीय सम्मान और राष्ट्रीय गौरव के विषयों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हवाले न करे। लोगों को इनके प्रति आदर रखने के लिए कठोर क़ानून बनाये। मजबूर करे। तैयार करे। इसके बिना एक गौरवशाली भारत का निर्माण नहीं हो सकता है। गौरवशाली भारत का निर्माण हर सरकार और व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिए ।

Update:2020-06-15 13:04 IST

 

 

 

योगेश मिश्र

रघुपति राघव राजा राम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम ,

भज प्यारे तू सीताराम

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सबको सम्मति दें भगवान।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्राय: यह भजन गाया करते थे। यह मूलत: भजन नहीं था। यह मंत्र था। यह मंत्र सिद्ध करके महात्मा गांधी जी को दिया गया था। जो मंत्र गांधी जी को दिया था। वह था-

रघुपति राघव रामाराम,

पतित पावन सीताराम

सुंदर विग्रह मेघश्याम,

गंगा तुलसी शालिग्राम

भद्रगिरिश्वर सीताराम,

भगत जनप्रिय सीताराम ।

मैंने अपने फ़ेसबुक पेज पर बस दोनों मंत्रों या भजनों जो भी कहें बिल्कुल ऐसे ही डाल दिया। साथ में जो सही है? उसके आगे सही। जो ग़लत है उसके आगे ग़लत लिख दिया। इसे 2.6 हज़ार लोगों ने लाइक किया। 4400 लोगों ने शेयर किया।

चार लाख 40 हज़ार से अधिक लोगों तक इस पोस्ट की रीच रही। कई सौ कमेंट आये। मेरी इस पोस्ट में कहीं भी राष्ट्रपिता का नाम नहीं था। लेकिन नब्बे फ़ीसदी पोस्ट में गांधी जी के ख़िलाफ़ विचार थे। मेरे एक मित्र निराला त्रिपाठी ने तो मुझे व्यक्तिगत संदेश भेज कर कहा कि मैं यह सस्ती लोकप्रियता के लिए कर रहा हूँ। हमने सफ़ाई दी। पर वह संतुष्ट नहीं हुए।

अंग्रेजों ने गांधी को मारने की तीन कोशिशें कीं

लोकतंत्र में पक्ष- विपक्ष दोनों ज़रूरी है। पर हमें इस बात की चिंता हुई कि हमने अपनी पीढ़ियों को अपने राष्ट्रपिता के बारे में कितनी कम जानकारी दी है कि उनके मन में राष्ट्रपिता को लेकर कितनी नकारात्मक धारणाएँ हैं। कितने विरोधी विचार हैं। वह भी महात्मा गाँधी केवल राष्ट्रपिता महज़ नहीं हैं, देश को आज़ाद कराने में उनके सत्य एवं अहिंसा जैसे अस्त्र रामबाण की तरह काम आये। पूरे जीवन वह केवल सत्य के साथ प्रयोग नहीं करते रहे। बल्कि वे सत्य के पर्याय व पूरक बन कर रहे। अंग्रेजों ने उन्हें मारने की तीन कोशिशें कीं।

कहा जाता है कि नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या पाकिस्तान को बँटवारे के बाद पैसा दिये जाने की उनकी माँग को लेकर की। उसका भी सच यह है कि जब भारत से पाकिस्तान अलग हुआ उस बँटवारे के दस्तावेज में पाकिस्तान को धनराशि देने की बात कही गयी है। उसकी एक किश्त दी भी जा चुकी थी। गांधी जी पाकिस्तान से किये गये कमिटमेंट को पूरा करने की बात कह रहे थे।

मेरी आपत्तियां

गांधी जी को लेकर मेरी भी तीन- चार बड़ी आपत्तियाँ थीं। उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों की फाँसी को रोकने के लिए अंग्रेजों से बात क्यों नहीं की? सुभाष चंद्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर जीत जाने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा क्यों देना पड़ा? पाकिस्तान को शेष पैसा देने को क्यों गांधी जी ने कहा? जब तेरह राज्य चाहते थे कि कांग्रेस अध्यक्ष सरदार पटेल बनें। उनके पक्ष में नामिनेशन किया था तो गांधी जी जवाहरलाल नेहरू के पक्ष में क्यों हो गये?

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इन सवालों का जवाब पाने के लिए मैंने प्रकाशन विभाग से गांधी जी पर छपे सौ वैल्यूम पढे। रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म गांधी देखी। गांधी पर बनी फ़िल्म गांधी माई फादर देखी। उनकी बायोग्राफ़ी पढ़ी। मेरे हर सवाल के जवाब मिल गये।

पर जो लोग सोशल मीडिया पर हैं उनका इतना पढ़ने लिखने से कोई रिश्ता नहीं है। यही नहीं, हमारी सरकारों ने देश और समाज के लिए जो सम्मान या पहचान के राष्ट्रीय प्रतीक चुने, उनके बारे में भी जनता को बताना उचित नहीं समझा। गांधी जी को लेकर जितना कुछ कुप्रचार है। उसका जवाब देना भी किसी सरकार ने ज़रूरी नहीं समझा।

चलताऊ नजरिया

आज़ादी के बाद से देखें तो हमारा नज़रिया बेहद चलताऊ रहा है। ख़ासतौर से हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों के प्रति। राष्ट्रीय झंडे को हमने कश्मीर में संविधान से अलग करके लावारिस छोड़ दिया। हिंदी को अंग्रेज़ी की लाचारी पर छोड़ दिया।

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विकास को इस तरह बेरहमी से किया कि 72 साल में देश का एक भी शहर और दस भी गाँव विकास के पैमाने पर खरे उतरने लायक़ नहीं बन सके। सामाजिक न्याय की कोशिश जातीय अन्याय में बदल गयी। दस साल में आरक्षण की समीक्षा का दायित्व पूरा करने के लिए किसी राजनीतिक दल के नेता के हाथ उठने को तैयार नहीं हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण है।

सौ से ज्यादा देशों ने जारी किये डाक टिकट

गांधी जी का कार्यक्षेत्र भारत और दक्षिण अफ़्रीका था। पर सौ से ज्यादा देशों के डाक टिकट पर गांधी छपे हैं। सबसे पहला टिकट 2 अक्तूबर 1947 को भारत में जारी किया जाना था। लेकिन गांधी जी की हत्या के कारण टिकट 30 जनवरी, 1948 को जारी हो सका। गांधी जी स्वदेशी के प्रखर समर्थक थे। लेकिन विडम्बना है कि उन पर जारी किया टिकट स्विट्ज़रलैंड में मुद्रित हुआ था।

अमेरिका दूसरा देश था जिसने गांधी जी पर डाक टिकट जारी किया। अमेरिका में 26 जनवरी, 1961 को डाक टिकट जारी हुआ था। इसके बाद 1967 में अफ्रीकी देश कांगो ने गांधी पर टिकट जारी किया। 1969 में गांधी जी की सौंवीं जयंती पर 40 से अधिक देशों ने डाक टिकट जारी किए। पोलैंड पहला देश था जिसने गांधी पर पोस्ट कार्ड जारी किया।

यूनाइटेड नेशंस ने 2 अक्तूबर, 2009 को गांधी पर डाक टिकट जारी किया था। गांधी जी की 150वीं जयंती पर 2019 में फ्रांस, उज्बेकिस्तान, टर्की, फिलिस्तीन और मोनाको समेत 69 देशों ने डाक टिकट जारी किए थे।

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महात्मा गांधी की प्रतिमाएँ भारत ही नहीं बल्कि 70 से ज्यादा देशों में स्थापित हैं। इनमें स्पेन, साउथ अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, साइप्रस, स्विट्ज़रलैंड, डेन्मार्क, तजाकिस्तान, चीन, मारीशस, सूरीनाम, साउथ कोरिया, पोलैंड आदि हैं।

गांधी की सार्वभौंमिक सत्ता

दुनिया के महानतम वैज्ञानिकों में से एक अल्बर्ट आइंस्टीन के घर में महान मानवतावादी अल्बर्ट श्वाइटज़र और महात्मा गांधी की ही फोटो टंगी थी। आइंस्टीन ने उस समय कहा था- ‘समय आ गया है कि हम सफलता की तस्वीर की जगह सेवा की तस्वीर लगा दें।

आइंस्टीन महात्मा गांधी से उम्र में केवल 10 साल छोटे थे। वे दोनों व्यक्तिगत रूप से कभी एक-दूसरे से मिले नहीं। लेकिन एक बार आत्मीयतापूर्ण पत्राचार अवश्य हुआ। यह चिट्ठी आइंस्टीन ने 27 सितंबर, 1931 को वेल्लालोर अन्नास्वामी सुंदरम् के हाथों गांधीजी को भेजी थी।

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आइंस्टीन ने लिखा - ‘अपने कारनामों से आपने बता दिया है कि हम अपने आदर्शों को हिंसा का सहारा लिए बिना भी हासिल कर सकते हैं। हम हिंसावाद के समर्थकों को भी अहिंसक उपायों से जीत सकते हैं। आपकी मिसाल से मानव समाज को प्रेरणा मिलेगी और अंतरराष्ट्रीय सहकार और सहायता से हिंसा पर आधारित झगड़ों का अंत करने और विश्वशांति को बनाए रखने में सहायता मिलेगी। भक्ति और आदर के इस उल्लेख के साथ मैं आशा करता हूं कि मैं एक दिन आपसे आमने-सामने मिल सकूंगा।’’

सिद्धांतों के साथ रहना कुबूल

गांधी की महानता सिर्फ उपदेशों में ही नहीं है। उनके आचरण में हैं। उनके द्वारा प्रचारित किये जाने वाले सिद्धांतों की सत्यवादिता में है। उन्होंने कभी किसी ऐसी चीज का प्रचार नहीं किया जिसका अभ्यास और आचरण उन्होंने अपने जीवन में न किया हो।

हालाँकि इसी वजह से उनके पूरे परिवार को काफी कुछ झेलना पड़ा। परेशानियों से दो-चार होना पड़ा। उनकी पत्नी कस्तूरबा ने सबसे ज्यादा भुगता, उन्होंने बहुत कुछ सहा।

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दक्षिण अफ्रीका में प्रवास के समय एक बार सत्याग्रह के दौरान वे गिरफ्तार हुए। इसी दौरान कस्तूरबा बीमार पड़ गयीं। उनकी हालत काफी बिगड़ भी गयी। गाँधी को पैरोल लेकर पत्नी के साथ रहने की सलाह दी गई । लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया, सिद्धांतों पर अड़े रहे।

उन्होंने एक ऐसा पत्र लिखा जो आज के दौर का कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को इस तरह से लिखने की सोच भी नहीं सकता- “उन्हें ऐसा नहीं सोचना चाहिये कि जुदाई में जान देना उनकी उपस्थिति मे जान देने से अलग होगा।’’

हर बड़े आदमी के आदर्श गांधी

दुनिया को कोई बड़ा आदमी ऐसा नहीं जिसके आदर्श गांधी न हों। गांधी के सिद्धांत की वह इज़्ज़त न करता हो। जो भारत आया हो और गांधी समाधि न गया हो। दुनिया के जिन भी देशों में गांधी की प्रतिमाएँ है, उन्हें देखने उस देश के लोग जाते हैं। गांधी जी ने विश्वविद्यालय के जिस कमरे में रह कर पढ़ाई की थी। वह आज स्मारक है। वहाँ लोग जाते हैं।

गांधी के बारे में भारत में सोशल मीडिया पर अनर्गल बयान करने वालों को नहीं भूलना चाहिए जिन जिन देशों में गांधी सम्मान के पात्र हैं। उनके न तो वे राष्ट्रपिता हैं। न उन देशों के लिए उन्होंने कुछ किया है। पर वे गांधी को गौरव मानते हैं। हमें भी मानना चाहिए।

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सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रीय प्रतीकों, राष्ट्रीय सम्मान और राष्ट्रीय गौरव के विषयों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हवाले न करे। लोगों को इनके प्रति आदर रखने के लिए कठोर क़ानून बनाये। मजबूर करे। तैयार करे। इसके बिना एक गौरवशाली भारत का निर्माण नहीं हो सकता है। गौरवशाली भारत का निर्माण हर सरकार और व्यक्ति का कर्तव्य होना चाहिए ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और न्यूजट्रैक / अपना भारत के संपादक हैं)

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