युवा नेताओं का कांग्रेस से छिटकना आखिर क्या संदेश दे रहा है
राहुल गांधी के लिए सही हो सकता है कि वह संन्यास लेकर बैठ जाएं। लेकिन युवा नेता ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने बेहतर भविष्य के लिए मेहनत की, और तौर-तरीके सीखे।
राहुल गांधी के इस्तीफे और सोनिया गांधी के पार्टी कमान सम्हालने के बाद कांग्रेस में युवा नेताओं के इस्तीफे या इस तरह के बयान आ रहे हैं जो कांग्रेस नेतृत्व के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं इससे इस बात के संकेत के तौर पर भी लिया जा रहा है कि बूढ़ी कांग्रेस और जवान कांग्रेस का संघर्ष अब थमने के आसार नहीं हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राहुल गांधी को उनके पूरे कार्यकाल में फ्लाप करने का काम विपक्ष ने कम कांग्रेस के भीतर बैठे पुराने वफादार रहे दुश्मनों ने अधिक किया है।
दो राज्यों के विधानसभा चुनाव और 64 सीटों पर उपचुनाव के एलान के बाद भी कांग्रेस अभी तक यह तय नहीं कर पा रही है कि कांग्रेस का स्टार प्रचारक कौन होगा। इसकी मुख्य वजह सोनिया गांधी की अस्वस्थता। प्रियंका गांधी का उत्तर प्रदेश तक सीमित होना और राहुल गांधी का अपने घर से बाहर न निकलना समझा जा रहा है।
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लेकिन इस सब से मुख्य नुकसान कांग्रेस का हो रहा है जो लगातार अपनी जमीन खोती जा रही है। हालात से परेशान कांग्रेस की युवा लॉबी सोनिया के फिर से कमान संभालने के बाद हाशिये पर जा चुकी है और बूढ़े नेता 10 जनपथ में पैठ बढ़ा कर सक्रिय हो चुके हैं, उससे टीम राहुल और बेचैन है। उसे सुरक्षित भविष्य की तलाश है।
अनुच्छेद 370 का किया स्वागत
गौरतलब है कि दीपेंद्र हुड्डा अनुच्छेद 370 को हटा दिए जाने (जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर देना) का सार्वजनिक रूप से स्वागत कर चुके हैं। जितिन प्रसाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनसंख्या नियंत्रण के विचार का स्वागत कर चुके हैं।
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मिलिंद देवड़ा का टेक्सास में मोदी के भाषण की प्रशंसा को लेकर गरमाया है। ये तो एक बानगी मात्र है। मध्य प्रदेश ज्योतिरादित्य सिंधिया हारे हुए नेता दिग्विजय सिंह से त्रस्त हैं। सचिन पायलट गहलौत के नाते हाशिये पर हैं। अब विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं।
प्रमुख पदों से आ रहे इस्तीफे
प्रमुख पदों से इस्तीफे भी आ रहे हैं। तमाम युवा कांग्रेसी विरोधी पार्टियों में शामिल भी हो रहे हैं। विवादित बयान दे रहे हैं। इसके अलावा पार्टी के आलाकमान पर उनके हितों की रक्षा न कर पाने का आरोप लगाने वालों की संख्या भी कम नहीं है।
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कुछ वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद 10 अगस्त को जब से सोनिया गांधी ने पार्टी का नेतृत्व संभाला है। पार्टी के भीतर युवा खून और बूढ़े वफादारों के बीच संघर्ष बढ़ा है।
तीखी आलोचना के शिकार हुए मिलिंद देवड़ा
बीते मंगलवार को कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा उस समय तीखी आलोचना के शिकार हो गए थे जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे पर ट्विट कर याद दिलाया था कि किस तरह उन के पिता मुरली देवड़ा ने भारत अमेरिका संधि को आकार देने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने मोदी के टेक्सास भाषण की सराहना की। मोदी ने उनके ट्वीट का जवाब देते हुए मिलिंद देवड़ा की प्रतिबद्धता को स्वीकार किया था।
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उनके इस ट्वीट के बाद अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि देवड़ा अपने अगले राजनीतिक कदम के बारे में सोच रहे हैं। हालांकि बाद में उन्होने एक बयान जारी इन अटकलों को निराधार बताया था। हो सकता है कि देवड़ा के मोदी के साथ वार्तालाप को गलत समझा गया लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे अहम सवाल युवा नेता हैं जो कि बुजुर्ग नेताओं को तरजीह दिये जाने से खुश नहीं हैं।
इस्तीफे ने खतरे की घंटी बजा दी
वास्तव में त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष 41 वर्षीय प्रद्योत देवबर्मन के इस्तीफे ने खतरे की घंटी बजा दी है। उन्होंने पार्टी नेताओं पर गुटबाजी और भितरघात को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह बात कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपनी याचिका को वापस लेने के लिए कहने के बाद कही, उन्होंने राज्य में नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने की मांग की थी।
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अपने फेसबुक पेज में उन्होंने साफ साफ लिखा है, मैं इस दिन की शुरुआत अपराधियों और झूठे लोगों की बात सुने बिना करता हूँ। यह चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि कौन सा सहकर्मी आपकी पीठ में छूरा घोंपेगा, गुटबाजी और पीठ पीछे बुराई करेगा। उन्होंने कहा वह उच्च पदों पर भ्रष्ट लोगों को समायोजित करने की वजहों के बारे में हाईकमान की सुनने के लिए भी तैयार नहीं।
वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ कर दी बगवात
इसी तरह, झारखंड इकाई के पूर्व अध्यक्ष 57 वर्षीय अजॉय कुमार ने भी पिछले महीने पद से इस्तीफा देने से पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ बगावत कर दी थी। पिछले हफ्ते कट्टर प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल होने वाले कुमार ने वरिष्ठ नेताओं पर आरोप लगाया था कि वे "व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीतिक पद हथियाने" की मांग कर रहे हैं और पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए लगाए गए सिस्टम को दरकिनार करने की हर कोशिश कर रहे हैं।
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कांग्रेस में घमासान कमोबेश सबकहीं चल रहा है। चुनावी राज्य भी इससे मुक्त नहीं है। उदाहरण के लिए, हरियाणा में, 43 वर्षीय, अशोक तंवर को हटाकर 57 वर्षीय शैलजा कुमारी को राज्य इकाई प्रमुख के रूप में स्थापित किया गया था।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों में विभाजित
वजह यह थी कि कांग्रेस तंवर के समर्थकों और हरियाणा के 72 साल के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों में विभाजित है। बदलाव के बाद दिल्ली में हुई कांग्रेस प्रदेश इलेक्शन कमेटी की बैठक में अशोक तंवर शामिल नहीं हुए। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उनका कहना था कि कुछ लोगों को मेरी शक्ल पसंद नहीं है, इसलिए मैं इस बैठक में नहीं गया।
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महाराष्ट्र में तो और बुरी स्थिति है। एक ही दिन तीन नेता कांग्रेस से किनारा कर गए। जिसमें हर्षवर्धन पाटिल, कृपा शंकर सिंह और अभिनेत्री उर्मिला मारतोडकर शामिल रहीं।
नेतृत्व पर आरोप लगाकर भाजपा में हुए शामिल
56 वर्षीय हर्षवर्धन पाटिल नेतृत्व पर आरोप लगाकर भाजपा में शामिल हो गए। हर्षवर्धन पाटिल पुणे जिले की इंदापुर सीट से चार बार विधायक रहे हैं, उन्होंने कांग्रेस राकांपा गठबंधन द्वार इंदापुर सीट उनके लिए न छोड़े जाने पर इस्तीफा दिया है।
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फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने गुटबाजी का आरोप लगाकर और कृपाशंकर सिंह ने आलाकमान से नाराजगी के बाद कांग्रेस छोड़ दी है। जम्मू कश्मीर में से अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर कांग्रेस पार्टी के रुख का कृपाशंकर सिंह ने कड़ा विरोध किया था। इस संबंध में कृपाशंकर ने कांग्रेस प्रभारी मल्लिकार्जुन खड़गे से भी बात की थी। उनकी बात को तवज्जो न दिए जाने से वह कांग्रेस में नाराज चल रहे थे।
कांग्रेस में बढ़ रही अंतर्कलह
इन नेताओं मे देवबर्मन, कुमार और तंवर राहुल गांधी के खेमे के ही थे। इससे एक बात तो साफ है कि कांग्रेस इन राज्यों में बीजेपी से मुक़ाबले की हालत में भी नहीं है। क्योंकि राहुल गांधी के इस्तीफ़े के बाद पार्टी के भीतर अंतर्कलह लगातार बढ़ रही है। सोनिया इस पर लगाम नहीं लगा पा रही हैं। पुरानी पीढ़ी और युवा नेताओं जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा और सचिन पायलट के बीच भी जंग अब खुलकर सामने है।
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कुल मिलाकर कांग्रेस में अगली पीढ़ी के नेता तरक्की के अवसरों के अभाव और पार्टी के मौजूदा वैचारिक अटकाव की वजह से क्षुब्ध हैं। उनका मानना है कि हम चुनाव हारते रहेंगे, क्योंकि मतदाताओं को पता ही नहीं है कि हम किस बात का समर्थन कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति को लेकर हम ज़मीन पर एक विरोध प्रदर्शन तक नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे पास न नेतृत्व है, न कार्यकर्ता।
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राहुल गांधी के लिए सही हो सकता है कि वह संन्यास लेकर बैठ जाएं। लेकिन युवा नेता ऐसा नहीं चाहते। उन्होंने बेहतर भविष्य के लिए मेहनत की, और तौर-तरीके सीखे। अब गद्दी उनकी मां संभाले बैठी हैं, और उनके घेरे बैठे हैं पुरानी सलाहकारों की टीम, युवा कहां जाएं...?" ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपने समापन की ओर बढ़ रही है।