बुद्ध सर्किट पथः क्यों भारत छोड़ थाईलैंड जा रहे, बौद्ध देशों के सैलानी

दुनियाभर में फैले करोड़ों बौद्ध धर्म के अनुयायियों को अभी तक तो हम भारत के प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों की तरफ लाने में असफल ही रहे हैं।

Update: 2020-07-21 12:43 GMT

यह मत सोचें कि वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण सरकारी कामकाज और भावी योजनाओं पर स्थायी रोक लग गई है। ऐसा बिलकुल नहीं है। सच्चाई तो यह है कि सरकार के तमाम विभाग पहले की भांति ही सक्रिय हैं। सरकार का इस समय एक फोकस भगवान बुद्ध को मानने वाले देशों से पर्यटकों को भारत लाना है। यह पर्यटकों का एक बहुत बड़ा समूह है। दुनियाभर में फैले करोड़ों बौद्ध धर्म के अनुयायियों को अभी तक तो हम भारत के प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थलों की तरफ लाने में असफल ही रहे हैं। यह एक सच्चाई है। अब तक हमें ताजमहल और डल लेथ के अतिरिक्त पर्यटकों को कहीं और आकर्षित करने की योजना ही नहीं बनाने की सोची।

थाईलैंड-श्रीलंका में लगता बुद्ध पर्यटकों का तांता

यदि आप कभी थाईलैंड या श्रीलंका नहीं गए तो सच में आपको यकीन नहीं होगा कि वहां के बुद्ध मंदिरों में हर समय बुद्ध देशों के हजारों पर्यटक आ-जा रहे होते हैं। ये भगवान बुद्ध की मूर्तियों के दर्शन करके अभिभूत होते रहते हैं। इस बीच, बुद्ध देशों के पर्यटकों को भारत लाने की कोशिशों में सरकार का एक बड़ा फैसला कुशीनगर के एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाना है। यह निर्णय पूर्णतः सही है। भारत की कोशिश होनी चाहिए कि कम से कम डेढ़-दो करोड़ बुद्ध पर्यटक तो हमारे यहां हर साल आ ही जाएं।

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अभी तो हमारे यहां कुछ लाख ही बौद्ध पर्यटक पहुंचते हैं। बौद्ध पर्यटकों की विशेषता यह है कि जब भी वह भारत आते हैं दो-तीन हफ्ते गुजारते ही हैं। बोधगया से वैशाली, सारनाथ से कुशीनगर का चक्कर लगते रहते हैं। कुछ नागपुर की दीक्षा भूमि भी जाकर देखते हैं। जहाँ डॉ. बालासाहब भीमराव आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

बोधगया से सारनाथ और आगे

हमें बोधगया में अधिक से अधिक पर्यटकों को लाना होगा। यहाँ ही राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वे बुद्ध बने। बोधगया आने वाले पर्यटक सारनाथ भी अवश्य जाते हैं। सारनाथ में बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बुद्ध की जन्मस्थली और कार्यस्थली भारत को लेकर आकर्षण होना स्वाभाविक ही है। बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट देश के सबसे खासमखास पर्यटन स्थलों में माना जाता हैं। इधर दक्षिण-पूर्व एशिया, श्रीलंका,जापान वगैरह से पर्यटक पहुंचते हैं। और उसके बाद राजगीर चले जाते हैं, जहां से बुद्ध ने अपनी आगे की यात्रा की। यूं तो ये साल भर आते ही रहते हैं, पर अक्तूबर से मार्च तक इनकी संख्या सबसे अधिक रहती है।

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पर अगर आप इन सैलानियों की संख्या की तुलना थाईलैंड और श्रीलंका से करेंगे तो आप निराश ही होंगे। इन दोनों छोटे से देशों में भारत की तुलना में कई गुना अधिक बुद्ध सैलानी पहुंचते हैं। बेशक, जब से बौद्ध सर्किट से जुड़े स्थानों को बेहतर बनाने का सिलसिला शुरू हुआ है, तब से थाईलैंड, श्रीलंका, साउथ कोरिया, जापान और दूसरे तमाम बौद्ध देशों से आने वाले पर्यटकों की तादाद में कुछ इजाफा तो हुआ है। पर अभी हमें बहुत कुछ और भी करना है। अकेले थाईलैंड में ही हर साल साढ़े चार-पांच करोड़ पर्यटक आते हैं। श्रीलंका में भी इसी प्रकार आते हैं। बोधगया और उससे सटे बुद्ध सर्किट के शहरों-राजगीर और नालंदा, वैशाली, वाराणसी, सारनाथ और कुशीनगर का दौरा करने वाले सभी पर्यटक साल भर में मोटा पैसा खर्च करते है।

बनें नए-नए बुद्ध तीर्थ स्थल

एक बात समझनी होगी कि जैसे थाईलैंड में नए-नए बुद्ध तीर्थ स्थल विकसित हो रहे हैं। उसी तरह से हमें भी बौद्ध सर्किट पर विकास करने होंगे। हमने कुछ किए भी हैं। उदाहरण के रूप में राजधानी दिल्ली के मंदिर मार्ग पर स्थित महाबोधि मंदिर है। यह दिल्ली का पहला बुद्ध मंदिर है। इसका उदघाटन महात्मा गांधी ने 1939 में किया था। महाबोधि मंदिर में डा. राजेन्द्र प्रसाद, डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डा. बाबा साहेब अंबेडकर जैसी शख्सियतें भी विशेष अवसरों पर आती रही हैं। यहाँ भगवान बुद्ध की एक सुंदर मूर्ति स्थापित है। इधर भी विदेशी पर्यटक लाए जाए जा सकते हैं। इसी तरह से राजधानी का बुद्ध जयंती पार्क है। बुद्ध जयंती पार्क भगवान बुद्ध के निर्वाण के 2500वें वर्ष के स्मरणोत्सव के समय 1959 में तैयार किया गया था।

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इस में भिक्षु शासनधर सागर ने 2 अक्तूबर 1993 को महात्मा बुद्ध के एक मंदिर का उदघाटन किया था। इधर बुद्ध की बैठी हुई स्थिति में प्रतिमा है। बुद्ध जयंती पार्क में एक पीपल का वृक्ष भी है जिसका संबंध भगवान बुद्ध से है। जिस पीपल के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, उसकी एक टहनी सम्राट अशोक के पुत्र द्वारा श्रीलंका में भी रोपित की गई थी। श्रीलंका की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती सिरिमाओ भंडारनायके ने इस वृक्ष की एक टहनी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री को 1964 में भेंट की थी। उन्होंने उसी टहनी को 25 अक्तूबर 1964 को यहां रोपित किया। आज यह वृक्ष पूर्ण रूप से हरा भरा है।

भारत में सिर्फ कुछ चुनिंदा स्थानों पर आते हैं पर्यटक

दरअसल, भारत में विदेशी पर्यटकों के आने का क्रम जो मेगस्थनीज, फाह्यान, हवेन त्सांग वगैरह के साथ शुरू हुआ था, वह जारी है। पर रहना चाहिए। हमारे यहां दुर्भाग्य से पर्याप्त पर्यटक नहीं आते। दुनियाभर के लिए भारत कौतूहल पैदा करता है। भारत का चप्पा-चप्पा पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है। हर तरह के पर्यटकों को भारत भाता भी है। सबकी दिलचस्पी का भारत में कुछ न कुछ है ही। इतिहास के दर्शन करने वालों से लेकर, घने जंगलों में विचरण करते पशुओं को देखने की चाहत रखने वालों से लेकर, अध्यात्म में रुचि रखने वालों के लिए बेजोड़ है भारत। भारत में सबसे ज्यादा सैलानी आते हैं अमेरिका, ब्रिटेन,कनाडा, फ्रांस और श्रीलंका से। इस तरह का दावा भारत का पर्यटन मंत्रालय करता है।

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कुल विदेशी पर्यटकों में 16 फीसद अमेरिका से और 12.6 फीसद ब्रिटेन से रहते हैं। विदेशी पर्यटकों के सबसे पसंदीदा पाँच स्थान आगरा, गोवा, केरल, वाराणसी और दिल्ली/ कश्मीर माने जाते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि पर्यटक कुछ खास पर्यटन स्थलों को ही देखने के लिए यहां आते हैं। इसके साथ यह भी सच्चाई है कि अब बड़ी संख्या में पर्यटक भारत के कुछ शहरों तक ही अपनी सफर को सीमित रखते हैं। साऊथ अफ्रीकी के राजधानी में तैनात एक रायनयिक ने बताया कि उनके देश के पर्यटक दिल्ली और मुंबई भर ही जाना चाहते हैं। दिल्ली में उन्हें गांधी जी की समाधि के साथ-साथ कुतुब मीनार, लाल किला, पुराना किला, लोटस टेम्पल और अक्षरधाम मंदिर देखने को मिल जाता है। ये मौका लगने पर ताजमहल देखने आगरा भी चले जाते हैं।

बुद्ध पर्यटकों पर करना होगा फोकस

कहते हैं कि अमेरिकियों के लिए कोई खास शहर या स्थान अहमियत नहीं रखता। इनमें से बहुत सारे दिल्ली, जयपुर, आगरा, वाराणसी तो जाते ही हैं। कुछ दिल्ली, मुंबई और केरल ही जाना पसंद करते हैं। और गोवा भी अनेकों विदेशी पर्यटक जाना पसंद करते हैं ? गोवा के अदभुत समुद्री तट साऊथ अमेरिका और कैरिबियाई द्वीपों से बहुत मिलते-जुलते हैं।

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इसलिए इन देशों से आने वाले पर्यटकों को गोवा का सफर करना अच्छा लगता है। देखिए हमारी कोशिश तो यह होनी चाहिए कि सारी दुनिया से हमारे यहां सैलानी सैर-सपाटे के लिए आएं। उनके आने से देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और लोगों को रोजगार मिलता है। पर हमें पहला फोकस बुद्ध देशों पर ही करना होगा। इन्हें हम छोड़ने की मूर्खता नहीं कर सकते।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार पूर्व सांसद हैं )

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