झारखंड में सियासी बदलाव की बयार, मरांडी की घर वापसी के आसार

सियासी जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के बाद बदले सियासी समीकरण में जेवीएम का बीजेपी में विलय हो सकता है। जानकार तो यहां तक बता रहे हैं कि इस नए सियासी खेल के लिए अंदरखाने बातचीत का दौर शुरू हो चुका है।

Update: 2020-01-07 10:26 GMT

रांची: पिछले महीने एक बड़ा राजनीतिक बदलाव देख चुके झारखंड में एक और बड़े सियासी बदलाव की संभावना आहत दे रही है। सूबे के सियासी गलियारों में इस बात की अटकलें काफी तेज हैं कि पूर्व सीएम और झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के नेता बाबूलाल मरांडी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं।

सियासी जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के बाद बदले सियासी समीकरण में जेवीएम का बीजेपी में विलय हो सकता है। जानकार तो यहां तक बता रहे हैं कि इस नए सियासी खेल के लिए अंदरखाने बातचीत का दौर शुरू हो चुका है। पिछले महीने आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक इस बार जेवीएम के तीन विधायक चुनाव जीतने में कामयाब हुए हैं।

यह महज संयोग या कुछ और

भाजपा और मरांडी की पार्टी जेवीएम के साथ आने का पहला संकेत तब मिला जब भाजपा ने खरमास के बहाने अपने विधायक दल के नेता का चयन 14 जनवरी तक के लिए टाल दिया। दूसरी ओर मरांडी ने भी कुछ ऐसा ही कदम उठाया। मरांडी ने भी अपनी पार्टी की कार्यसमिति भंग कर खरमास समाप्त होने के बाद इसे लेकर पुनर्विचार की बात कही है। हाल के दिनों में भाजपा और बाबूलाल में एक-दूसरे को लेकर इतनी नरमी झलक रही है कि खरमास के बाद मधुमास की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।

विलय की दिशा में बढ़े कदम

सियासी गलियारे में बाबूलाल की घर वापसी के दावे तक किए जाने लगे हैं। चर्चा तो यहां तक पहुंच चुकी है कि पार्टी बाबूलाल को भाजपा विधायक दल के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करेगी। जहां तक भाजपा का सवाल है तो पार्टी के नेता इस बाबत टिप्पणी से कतरा रहे हैं। दूसरी ओर मरांडी भी फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। मरांडी इसे खारिज जरूर कर रहे हैं मगर भाजपा व जेवीएम के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि दोनों दल विलय की संभावनाओं को तलाश रहे हैं।

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झारखंड के एक भाजपा नेता ने कहा कि इस बाबत अभी कुछ जल्दबाजी होगी मगर इतना तो सच है कि विलय की दिशा कुछ प्रगति हो रही है। दूसरी ओर जेवीएम के सूत्र भी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि आने वाले दिनों में यह संभावना हकीकत में बदल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

संघ से जुड़े रहे हैं मरांडी

मरांडी की राजनीतिक पृष्ठभूमि भाजपा और संघ से जुड़ी हुई है। संघ से जुड़ाव के बाद उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी थी। झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद वे 2000 में राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे। तीन साल बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और उनके बाद अर्जुन मुंडा ने राज्य की कमान संभाली। बाद में मरांडी ने 2006 में अपनी अलग पार्टी बना ली और तब से वे राज्य में अपनी पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। उनकी पार्टी ने 2009 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटें जीती थीं, जो 2014 में घटकर 8 हो गई। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में उनकी ताकत और घट गई और उनकी पार्टी के विधायकों की संख्या घटकर 3 रह गई।

भाजपा की नजर आदिवासियों पर

सियासी जानकारों का मानना है कि हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा झटका आदिवासी मतदाताओं ने दिया है। पार्टी उम्मीद के मुताबिक आदिवासी वर्ग का समर्थन पाने में नाकाम रही। झारखंड की सत्ता गंवाने के बाद भाजपा ऐसा आदिवासी चेहरा तलाश रही है, जिसकी संथाल क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ हो। बीजेपी के धाकड़ आदिवासी नेताओं में अर्जुन मुंडा की पैठ कोल्हान क्षेत्र में है, जहां हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। इस साल बिहार और अगले साल पश्चिम बंगाल में भी चुनाव होने वाले हैं।

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मरांडी को हो सकता है सियासी फायदा

ऐसे में पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि बिहार और पश्चिम बंगाल से लगे झारखंड में आदिवासी मतदाताओं के लुभाने के लिए मरांडी बीजेपी का चेहरा बन सकते हैं। वहीं, मरांडी भी 62 साल की उम्र में घर वापसी की कोशिश में है। वह बीजेपी में शामिल होने के बाद झारखंड में नेता प्रतिपक्ष या फिर मोदी सरकार में मंत्री बन सकते है। इस लिहाज से यह दोनों के लिए फायदे का सौदा है। मरांडी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत अपने दो अन्य साथी विधायकों को मनाने की है। वक्त बताएगा कि वे क्या राजनीतिक कदम उठाते हैं और अपने साथियों को मनाने में कहां तक कामयाब होंगे।

संशय में हैं साथी विधायक

मरांडी की पार्टी फिलहाल हेमंत सोरेन सरकार को समर्थन कर रही है। ऐसे में मरांडी के विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की भी संशय में हैं। कार्यसमिति भंग करने को लेकर यादव का मानना है कि इसकी कोई जरुरत नहीं थी। ऐसे में इन दोनों विधायकों के कांग्रेस में जाने की अटकलें तेज हैं। वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में भी हैं। मरांडी के भाजपा में जाने के सवाल पर यादव का कहना है कि जब आप लोग कयासों की ही बात कर रहें हैं, तो बेहतर यह होगा कि इस बाबत उन्हीं से ही बात करें।

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