कांग्रेस का संकट: खत्म नहीं हुए चिट्ठी में उठाए गए मुद्दे, और मुखर हुए आजाद

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद भले ही पार्टी में खिंची तलवारें म्यान में चली गई हैं मगर 23 वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी में उठाए गए मुद्दे अभी खत्म नहीं हुए हैं।

Update: 2020-08-28 04:05 GMT
गुलाम नबी आजाद ने पत्र लिखने को सही ठहराया

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद भले ही पार्टी में खिंची तलवारें म्यान में चली गई हैं मगर 23 वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी में उठाए गए मुद्दे अभी खत्म नहीं हुए हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी में संगठन चुनाव की मांग लगातार तेज होती जा रही है और कई वरिष्ठ नेता इसे लेकर मुखर हैं।

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राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता गुलाम नबी आजाद ने पत्र लिखने को सही ठहराते हुए कहा कि अगर संगठन में चुनाव जीतकर आने वाले लोग कांग्रेस की अगुवाई नहीं करेंगे तो पार्टी अगले 50 साल तक विपक्ष में ही बैठेगी। दूसरे वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल की भी तल्खी बरकरार है और उनका कहना है कि अपनों पर हमलों की जगह भाजपा के खिलाफ पार्टी को सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए।

नहीं दूर हो रहे गिले-शिकवे

कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक के दौरान 23 वरिष्ठ नेताओं की चिट्ठी पर का खासा विवाद हो चुका है। गांधी परिवार के प्रति वफादार नेताओं ने इस चिट्ठी को लेकर काफी हंगामा किया था और इसे लेकर चिट्ठी लिखने वाले वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधा गया था। हालांकि बाद में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी की गई थी। इसके लिए खुद पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोर्चा संभाल लिया। राहुल गांधी ने भी गुलाम नबी आजाद से बात कर उनके गिले-शिकवे दूर करने की कोशिश की थी मगर गुलाम नबी आजाद अभी भी चिट्ठी में उठाए गए मुद्दों पर कायम हैं।

पूर्णकालिक अध्यक्ष चुना जाना हमारी जीत

अब उन्होंने खुलकर चिट्ठी में उठाए गए मुद्दों पर अपनी बात रखी है और कहा है कि 6 महीने में पूर्णकालिक अध्यक्ष चुने जाने का फैसला ही हमारी जीत है। दूसरी और पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल भी अपने ट्वीट के जरिए पार्टी के खेमे को चुभने वाले मुद्दों को उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं।

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चिट्ठी लीक होने पर आखिर इतना हंगामा क्यों

पार्टी के वरिष्ठ नेता आजाद का कहना है कि एक फीसदी लोग भी इस बात के समर्थन में नहीं हो सकते कि अध्यक्ष पद पर बिना चुनाव के किसी की नियुक्ति कर दी जाए। उन्होंने कहा कि चिट्ठी लीक होने पर इतना हंगामा करने की क्या जरूरत है। यह कोई सीक्रेट नहीं है। इसमें संगठन को मजबूत करने के लिए केवल चुनाव कराने की मांग ही तो की गई है।

उन्होंने कहा इंदिरा जी के समय में भी कैबिनेट की बैठक से जुड़ी जानकारियां लीक हो जाया करती थीं। उन्होंने कहा कि हमारा इरादा कांग्रेस को सक्रिय और मजबूत बनाने का है मगर जिन लोगों को केवल अपॉइंटमेंट कार्ड मिले हैं, वे हमारे प्रस्ताव का विरोध करते दिख रहे हैं।

गालियां देने वालों पर क्या कार्रवाई हुई

आजाद ने कहा कि हम पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाने वालों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। जो लोग कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक के दौरान कमेंट्री में जुटे हुए थे, क्या ऐसा करना अनुशासनहीनता नहीं है? जो लोग पत्र लिखने पर हमें गालियां दे रहे थे, क्या उन्होंने अनुशासनहीनता नहीं की है? उन्होंने कहा कि हमने तो किसी को गाली नहीं दी है मगर जिन लोगों ने गालियां दीं, क्या उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए?

हमने की थी सोनिया से ये अपील

आजाद ने कहा कि शुरुआत में राहुल गांधी को पत्र के बिंदुओं को लेकर आपत्तियां थीं मगर बाद में राहुल और सोनिया दोनों ने कहा कि चुनाव एक महीने में हो जाएं। इस पर हमने कहा कि कोरोना संकट काल में ऐसा किया जाना संभव नहीं है और हमने सोनिया गांधी से अनुरोध किया कि वे बतौर अध्यक्ष 6 महीने तक पद पर बनी रहें और तब तक चुनाव करा लिए जाएं।

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चिट्ठी का मकसद पार्टी को मजबूत बनाना

आजाद ने कहा कि कांग्रेस के आंतरिक कामकाज में जिसकी भी दिलचस्पी होगी, वह चुनाव कराने के हमारे प्रस्ताव का स्वागत करेगा। हमारा सुझाव था कि राज्यों में जिलों का अध्यक्ष निर्वाचित होना चाहिए और पार्टी में फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था कार्यसमिति के सदस्यों का भी चुनाव कराया जाना चाहिए। चिट्ठी लिखने का मकसद पार्टी को मजबूत व सक्रिय बनाना है मगर इसका विरोध नहीं लोग कर रहे हैं जिन्हें मनोनयन से पार्टी में नियुक्तियां मिली हैं।

चुनाव होने पर विरोधी कहीं नहीं दिखेंगे

आजाद ने कहा कि वफादारी का दावा करने वाले लोग वास्तव में सस्ती राजनीति करने में जुटे हुए हैं और उनका इरादा पार्टी को मजबूत बनाने का है ही नहीं। जो पदाधिकारी या राज्य इकाई के अध्यक्ष या ब्लॉक अध्यक्ष हमारे प्रस्ताव से सहमत नहीं है, उन्हें यह बात बखूबी पता है कि वे चुनाव होने पर कहीं नहीं होंगे।

मेरा स्पष्ट तौर पर मानना है कि पार्टी के राज्य, जिला और ब्लॉक अध्यक्ष का चुनाव पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा ही किया जाना चाहिए। यह अफसोसजनक है कि पार्टी में पिछले कई दशकों से चुनाव नहीं कराए गए।

बात नहीं मानी तो विपक्ष में ही बैठना होगा

उन्होंने कहा कि हम चुनाव पर चुनाव हारते जा रहे हैं और अगर हमें सत्ता में वापस आना है तो चुनाव के जरिए ही अपनी पार्टी को मजबूत बनाना होगा। उन्होंने कहा कि हमें भाजपा से लड़ाई लड़नी है जो काफी मजबूत हो चुकी है और भाजपा को हराने में कभी कमजोर कांग्रेस सक्षम नहीं होगी। अगर पार्टी मौजूदा नीतियों पर ही चलती रही तो अगले 50 वर्षों तक उसे विपक्ष में ही बैठना होगा।

सिब्बल के भी तेवर अभी भी तल्ख

दूसरी ओर चिट्ठी लिखने वाले एक और प्रमुख नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल का तेवर अभी भी तल्ख बना हुआ है। चिट्ठी लिखने वालों में शामिल पूर्व मंत्री जितिन प्रसाद के खिलाफ यूपी में हुए प्रदर्शन पर सिब्बल ने नाराजगी जताई है। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस को अपनों पर हमले की जगह भाजपा के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए।

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भाजपा से लड़ने में लगाएं ऊर्जा

सिब्बल का कहना है कि यह बात काफी अफसोसजनक है कि जितिन प्रसाद को यूपी में निशाना बनाया जा रहा है। हमें अपनो के खिलाफ ऊर्जा बर्बाद करने की जगह भाजपा से लड़ने के लिए तैयार होना चाहिए। सिब्बल की यह टिप्पणी लखीमपुर खीरी जिला इकाई की ओर से जिनके खिलाफ प्रस्ताव पारित कर कार्रवाई करने की मांग के बाद आई है।

पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता और सांसद मनीष तिवारी ने भी सिब्बल की बातों का समर्थन किया है। तिवारी भी पत्र लिखने वाले नेताओं में शामिल थे। जितिन प्रसाद ने भी दोनों नेताओं के ट्वीट को रीट्वीट किया है। हालांकि उन्होंने इसे लेकर कोई टिप्पणी नहीं की है।

इतनी आसानी से नहीं खत्म होगा संकट

जानकार सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस में विभिन्न मुद्दों को लेकर आवाज उठाने वाले नेता अभी भी मुखर बने हुए हैं। ऐसे में पार्टी का संकट इतनी आसानी से खत्म होता नहीं दिख रहा है। पिछले दिनों मोदी सरकार के अध्यादेशों पर पार्टी की रणनीति बनाने के लिए बनाई गई कमेटी में भी चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को जगह नहीं दी गई थी।

कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में 6 महीने में पूर्णकालिक अध्यक्ष चुने जाने की बात कही गई है। संसद का मानसून सत्र 14 सितंबर से शुरू होने वाला है। अब देखने वाली बात यह होगी कि पार्टी मानसून सत्र से पहले अपने मतभेदों को खत्म करने में कामयाब हो पाती है या नहीं।

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