पायलट का उत्तराधिकारीः कौन हैं ये, कितना जानते हैं इनके बारे में आप

डोटासरा का जन्म एक अक्टूबर 1964 को लक्ष्मणगढ़ के कृपाराम जी की ढाणी गांव में हुआ। इनके पिता मोहन सिंह डोटासरा सरकारी अध्यापक थे। डोटासरा ने राजस्थान विश्वविद्यालय से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई की है।

Update: 2020-07-14 12:34 GMT

पूरे देश का हॉट टॉपिक बना हुआ राजस्थान के सियासी जंग ने एक नया रूप धारण कर लिया है। कांग्रेस के अंदर चल रही घुटबाजी के चलते सचिन पायलट पर एक्शन ले लिया गया है। आपको बता दे कि कांग्रेस ने ये निर्णय लिया है कि सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत सरकार में शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को पार्टी की कमान लेंगे। डोटासरा राजस्थान के सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से लगातार तीसरी बार विधायक हैं और गहलोत के करीबी नेताओं में शुमार है।

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गोविन्द सिंह की जीवनी

डोटासरा का जन्म एक अक्टूबर 1964 को लक्ष्मणगढ़ के कृपाराम जी की ढाणी गांव में हुआ। इनके पिता मोहन सिंह डोटासरा सरकारी अध्यापक थे। डोटासरा ने राजस्थान विश्वविद्यालय से बीकॉम और एलएलबी की पढ़ाई की है। गोविंद सिंह डोटासरा जाट समुदाय से आते हैं, जो राजस्थान की सियासत में काफी अहम माना जाता है। जाट मतदाता बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है, जिसे साधने के लिए कांग्रेस ने पायलट की जगह डोटासरा को पार्टी की कमान सौंपी है।

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गोविन्द सिंह का राजनैतिक सफ़र

डोटासरा ने छात्र राजनीति के बाद युवा कांग्रेस में सक्रिय होकर कार्य किया था। वे युवक कांग्रेस में विभिन्न पदों पर रहे। 2005 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मणगढ़ जिले (सीकर) पंचायत समिति सदस्य का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में गोविंद सिंह विजय हुए और लक्ष्मणगढ़ पंचायत समिति के प्रधान भी चुने गए।

गोविंद सिंह डोटासरा ने इसके बाद पलटकर पीछे नहीं देखा और सियासत में आगे बढ़ते गए। डोटासरा के राजनीतिक जीवन में उनके राजनीतिक गुरु और कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष चौधरी नारायण सिंह का भी बड़ा योगदान रहा। डोटासरा लगातार सात साल तक सीकर के कांग्रेस जिला अध्यक्ष रहे हैं। इस तरह से संगठन की बेहतर समझ रखते हैं। लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से वो लगातार तीन बार विधायक हैं।

2008 में मिला पहली बार विधानसभा का टिकट

2008 के विधानसभा चुनाव में डोटासरा को पहली बार विधानसभा का टिकट तो मिला। हालांकि, इस चुनाव में लक्ष्मणगढ़ की सीट परिसीमन में पहली बार सामान्य हुई थी इसलिए चुनाव लड़ने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त थी, लेकिन पार्टी ने उन्हें भरोसा जताया। इस चुनाव में महज 34 वोट से जीतकर वो विधायक बने थे। इसके बाद 2013 में उन्होंने बीजेपी के सुभाष महारिया को करारी मात देकर अपना सियासी वर्चस्व कायम किया जबकि इस चुनाव में महज कांग्रेस के 20 विधायक ही जीत सके थे।

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