यूपी की राजनीति में बनती-बिगड़ती जोड़ियां
आखिरकार अमर सिंह की अगस्त 2016 में समाजवादी पार्टी में वापसी भी हो गयी। लेकिन 2017 को विधानसभा चुनाव आते आते मामला बिगड गया।अखिलेश यादव पार्टी के अध्यक्ष हो गए और उन्होंने अमर सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ: समाज के हर क्षेत्र में जोड़ियों का अपना महत्व है। इन जोड़ियों को जीवन में सफलता का एक कारक भी माना जाता है, भले ही वह सामाजिक क्षेत्र हो] व्यापारिक क्षेत्र हो अथवा राजनीति का ही क्षेत्र क्यों न हो? अब जब देश में लोकसभा का चुनाव होने जा रहा है तो देश की राजनीती का केंद्र बने यूपी की बात कई क्यों न कर ली जाएं। . यूपी की राजनीति में भीखूब जोड़ियां बनी तो टूटी भी। जिनकी राजनीतिक क्षेत्र में खूब चर्चा हुई। नजर डालते हैं ऐसी ही राजनीतिक जोडियों पर जो बनने के बादटूटती भी रही और जुड़ती भी रही ।
कल्याण सिंह-कुसुम राय
रामलहर ¼19991½ के बाद कल्याण सिंह के नेतृत्व में 1997 में जब भाजपा की दूसरी बार सरकार बनी तो लखनऊ की स्थानीय महिला नेत्री कुसुम राय उनके सहयोग के लिए आगे आई। कुछ वर्षो बाद जब कल्याण सिंह भाजपा से अलग हुए तो कुसुम राय ने भी पार्टी छोड़ दी। 2003 में मुलायम सिंह के नेतृत्व में यूपी में सरकार बनी तो कल्याण के राजनीतिक प्रभाव से कुसुम राय राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी। इसके बाद जब कल्याण सिंह दोबारा भाजपा में आए तो कुसुम राय भी उनके साथ वापस आ गयी। कल्याण के नेतृत्व में 2007 का चुनाव जब भाजपा बुरी तरह से हारी तो पार्टी में विवाद गहरा गया। चुनाव के बाद कल्याण सिंह अपने पुत्र राजबीर को राज्यसभा भेजना चाहते थें लेकिन भाजपा हाईकमान ने कुसुमराय को भेज दिया। कल्याण इससे नाराज हो गये और कल्याण-कुसुम की राजनीतिक जोडी की राहे जुदा हो गयी।
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चौधरी अजित सिंह-अनुराधा चौधरी
किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चै चरण सिंह के पुत्र चै अजित सिंह और अनुराधा चौधरी की जोड़ी की राजनीति में खूब चर्चा रही। मुलायम सिहं सरकार को समर्थन देने वाले राष्ट्रीय लोकदल में वह कैबिनेट मंत्री भी रही। राष्ट्रीय लोकदल में अनुराधा चौधरी की इजाजत के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता था। लेकिन 2009 का लोकसभा चुनाव हुआ तो चै अजित सिंह के पुत्र जयंत चैधरी का राजनीति में पदार्पण हो चुका था। अनुराधा चैधरी और जयंत चैधरी चुनाव लडे, जयंत तो चुनाव जीत गए पर अनुराधा हार गयी। बस, यही से अनुराधा का कद घटना षुरू हो गया और जयंत का कद बढना षुरू हो गया। तो अनुराधा चैधरी और चै अजित सिंह के रिष्तों में तल्खी आना षुरू हो गयी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मनमोहन सरकार में जब अजित सिंह केन्द्रीय मंत्री बने और अनुराधा चैधरी उनसे मिलने पहुुंची तो छोटे चैधरी ने उनको खूब इंतजार कराया। जिसके बाद नाराज होकर उन्होंने रालोद से किनारा कर लिया।
मायावती-बाबू सिंह कुशवाहा
यूपी में जब 2007 में मायावती की सरकार बनी तो इस सरकार में सबसे ताकतवर कोई था तो वह थें बाबू सिंह कुशवाहा । कार्यालय प्रभारी से कैबिनेट मंत्री बने बाबू सिंह कुशवाहा को मायावती का आंख-कान कहा जाता था। मुख्यमंत्री मायावती के हर फैसले की जानकारी बाबू सिंह के पास रहती थी। यदि मायावती से मिलना है तो पहले बाबू सिंह कुशवाहा से मिलना होता था। परन्तु एचआरएम घोटाले में बाबू सिंह कुषवाहा के कारनामों से मायावती बेहद नाराज हो गयी और उन्होंने अचानक 2011 में अपने आवास में उनकी इंट्री बैन कर दी साथ ही मंत्रिमंडल से भी बाहर कर दिया। यहीं नहीं पार्टी के कार्यक्रमों में जाने से भी उनको रोक दिया गया। जब मामला बिगडने लगा तो बाबू सिंह भी विद्रोही हो गए और उन्होंने एक पत्र जारी कर मायावती के करीबियों पर अपनी हत्या कराए जाने की आषंका जता दी। बाबू सिंह कुछ समय के लिए भाजपा के भी हमराही हुए पर उनका सफर आगे नहीं बढ सका।
मायावती-पीएल पुनिया
मायावती सरकार में सचिव रहे पीएल पुनिया उनके सबसे करीबी हुआ करते थें। पुनिया की राजनीतिक ताकत यहां तक थी कि लोग कहते थें कि ‘‘आगे -आगे पुनिया, पीछे सारी दुनिया’’। लेकिन ताज कोरीडोर मामला उछलने के बाद मायावती और पुनिया में दूरियां बढ गयी। बाद में पुनिया कांग्रेस में शामिल हो गए और बाराबंकी से सांसद भी बने।यूपीए सरकार में पुनिया राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष बने और अब मायावती पर हमले की कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
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मुलायम सिंह-बेनी प्रसाद वर्मा
सियासत में बनती बिगडती जोडियों में एक नाम मुलायम और बेनी प्रसाद वर्मा का भी आता है। समाजवादी पार्टी की स्थापना में शामिल रहे बेनी प्रसाद वर्मा मुलायम के बेहद करीब हुआ करते थें। दोनो की जोडी तीनदशक तक चली। लेकिन 2007 में उन्होेने मुलायम सिंह का साथ छोडकर अपनी अलग पार्टी समाजवादी क्रांतिदल का गठन कर लिया। बाद में वह कांग्रेस में शामिल होकर केेन्द्रीय मंत्री भी बने। 2016 में बेनी की वापसी समाजवादी पार्टी में हुई थी। लेकिन 2017 के चुनाव में उनके पुत्र का टिकट जब पार्टी ने काट दिया तब से बेनी फिर नाराज होकर बैठे हुए हैं।
मुलायम सिंह-अमर सिंह
अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव की जोड़ी की राजनीति में अलग पहचान रही है। लेकिन आजम खां से विवाद के चलते मुलायम सिंह और अमर सिंह की राहे 2010 में जुदा हो गयी। अमर सिंह ने लोकमंच का भी गठन किया लेकिन सफल नहीं हो सके। उधर मुलायम सिंह अखिेलष सरकार के कई कार्यक्रमों में अमर सिंह की काबिलियत की बखान करते रहे। आखिरकार अमर सिंह की पिछले साल अगस्त में समाजवादी पार्टी में वापसी भी हो गयी। लेकिन 2017 को विधानसभा चुनाव आते आते मामला बिगड गया।अखिलेश यादव पार्टी के अध्यक्ष हो गए और उन्होंने अमर सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया।
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