नंदीग्राम का संग्राम: ममता v/s शुभेंदु, टीएमसी मुखिया को घेरने का बड़ा सियासी दांव

पश्चिम बंगाल में भी सबसे बड़ी सियासी संग्राम नंदीग्राम में लड़ा जाएगा। ममता बनर्जी के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के एलान के बाद अब भाजपा ने भी अपने पत्ते खोल दिए हैं।

Update: 2021-03-06 15:07 GMT

अंशुमान तिवारी

कोलकाता। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में सबकी नजर पश्चिम बंगाल में होने वाली सियासी जंग पर टिकी हुई है। पश्चिम बंगाल में भी सबसे बड़ी सियासी संग्राम नंदीग्राम में लड़ा जाएगा। ममता बनर्जी के नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के एलान के बाद अब भाजपा ने भी अपने पत्ते खोल दिए हैं।

भाजपा ने इस विधानसभा सीट से कभी ममता बनर्जी के काफी करीबी रहे शुभेंदु अधिकारी को उतारकर उन्हें घेरने की कोशिश की है। माना जा रहा है कि नंदीग्राम की रणभूमि में दो सियासी दिग्गजों के बीच कड़ी टक्कर होगी।

भाजपा ने भी खोले पत्ते, शुभेंदु को उतारा

ममता बनर्जी ने शुक्रवार को पार्टी के 291 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की थी। पहले माना जा रहा था कि ममता बनर्जी दो विधानसभा सीटों भवानीपुर और नंदीग्राम से चुनाव मैदान में उतरेंगी मगर ममता ने नंदीग्राम को ही अकेले अपनी सियासी रणभूमि के रूप में चुना है। ममता ने पहले ही इस चुनाव क्षेत्र से मैदान में उतरने का एलान कर दिया था।

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भाजपा ने भी शनिवार को पहले और दूसरे चरण की 57 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी। सबकी नजर नंदीग्राम से भाजपा के उम्मीदवार पर टिकी हुई थी और आशा के अनुरूप ही भाजपा ने इस चुनाव क्षेत्र से शुभेंदु अधिकारी को चुनाव मैदान में उतारने का एलान किया है।

पहले से ही दे रहे थे चुनौती

अधिकारी पहले से ही नंदीग्राम में ममता को चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे थे। उन्होंने इस चुनाव क्षेत्र से ममता बनर्जी को 50 हजार से अधिक वोटों से हराने का दावा भी किया था।

अधिकारी की ओर से दी जा रही चुनौती को ममता बनर्जी ने भी स्वीकार कर लिया है और अब यह तय माना जा रहा है कि नंदीग्राम में बहुत कड़ी सियासी जंग होगी।

सियासी लाभ उठाने में जुटी है भाजपा

सियासी नजरिए से नंदीग्राम को पहले ही काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में रहने वाली आबादी में करीब 70 फीसदी हिंदू हैं जबकि शेष मुसलमान है।

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ खूनी संघर्ष का गवाह रहा नंदीग्राम चुनाव से पहले ही सांप्रदायिक आधार पर ब॔टा हुआ नजर आ रहा है। भाजपा इस स्थिति का फायदा उठाने में जुटी हुई है। ममता बनर्जी ने अपने लिए नंदीग्राम को छोड़कर कोई दूसरी सीट भी नहीं चुनी है।

संघर्ष का साक्षी रहा है नंदीग्राम

भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष के कारण नंदीग्राम कभी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा है। 2007 में प्रदेश की तत्कालीन वामपंथी सरकार की ओर से यहां विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) बनाने के खिलाफ संघर्ष हुआ था। नंदीग्राम में हुए गोलीकांड में 14 किसानों की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा किसानों के गायब होने का दावा किया गया था।

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उस समय एक ही नारा गूंजा करता था- तुम्हारा नाम, मेरा नाम, नंदीग्राम, नंदीग्राम मगर अब यह इलाका उस समय से काफी आगे निकल आया है। अब नंदीग्राम की दीवारों पर जगह-जगह जय श्रीराम का नारा प्रमुखता से लिखा हुआ दिखता है।

इस कारण हो रहा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

विधानसभा क्षेत्र में बढ़ते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की सबसे बड़ी वजह कभी तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे शुभेंदु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने और फिर ममता के यहां से चुनाव लड़ने की घोषणा को बताया जा रहा है।

मजे की बात यह है कि ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी दोनों ही नंदीग्राम आंदोलन के नायक माने जाते रहे हैं और अब समय ने ऐसी करवट ली है कि इस चुनाव क्षेत्र में दो नायकों के बीच ही संघर्ष की जमीन तैयार हो गई है।

नंदीग्राम को बनाया था बड़ा हथियार

पश्चिम बंगाल की सियासत में वामदलों और कांग्रेस को हाशिए पर धकेलने में ममता बनर्जी ने कभी नंदीग्राम को ही बड़ा हथियार बनाया था और अब नंदीग्राम में ही ममता बनर्जी को भाजपा से बड़ी सियासी जंग लड़नी होगी। नंदीग्राम में हिंसा की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं।

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वर्ष 2007 से 2011 के बीच यहां हुए संघर्ष में कई लोग मारे गए थे मगर तब भी कभी सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण नहीं हुआ था और मतभेद पूरी तरह राजनीतिक ही दिखते थे मगर अब स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही हैं।

तुष्टीकरण से नाराज हैं इलाके के लोग

वैसे इलाके के कुछ जानकारों का मानना है कि इलाके में सांप्रदायिक विभाजन के लिए टीएमसी ही जिम्मेदार है क्योंकि टीएमसी ने मुस्लिम तुष्टीकरण की अपनी नीति को जारी रखा। इससे एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के खिलाफ खड़े होते नजर आ रहे हैं।

इलाके के जानकारों का कहना है कि भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के दौरान हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ाई लड़ी, लेकिन कुछ मुट्ठी भर नेता और एक समुदाय विशेष के लोगों को ही ज्यादा फायदा मिला और इसे लेकर अब दूसरे समुदाय के लोगों में नाराजगी है और ऐसे लोग चुनाव के दौरान टीएमसी को सबक सिखा सकते हैं।

शुभेंदु को सबक सिखाने का इरादा

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का एलान काफी सोच-समझकर किया है। वे टीएमसी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले बागियों को सबक भी सिखाना चाहती हैं।

शुभेंदु अधिकारी ने भाजपा की सदस्यता लेकर टीएमसी को भारी झटका दिया है और ऐसे में ममता शुभेंदु अधिकारी से अपना हिसाब बराबर करना चाहती हैं। दूसरी ओर शुभेंदु अधिकारी को नंदीग्राम के मतदाताओं पर पूरा भरोसा है।

उन्होंने नंदीग्राम से पिछला विधानसभा चुनाव काफी अंतर से जीता था और उन्हें पूरा भरोसा है कि वह ममता बनर्जी जैसी सियासी दिग्गज को भी इस चुनाव मैदान में हराने में कामयाब होंगे।

आखिर कौन बनेगा महानायक

हालांकि भाजपा की ओर से शुभेंदु को और शनिवार को नंदीग्राम से आधिकारिक रूप से उम्मीदवार घोषित किया गया है मगर वे नंदीग्राम में अपनी रणनीति बनाने में काफी दिनों से जुड़े हुए थे। उन्होंने नंदीग्राम से ममता बनर्जी के चुनाव लड़ने के फैसले का स्वागत किया है।

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सियासी जानकारों का कहना है कि अब भाजपा की ओर से भी पत्ते खोल दिए जाने के बाद अब यह तय है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा संग्राम नंदीग्राम में ही लड़ा जाएगा। ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी दोनों नंदीग्राम संघर्ष के नायक रहे हैं और देखने वाली बात यह होगी कि दो नायकों के संघर्ष में कौन महानायक बनकर उभरता है।

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