भारत-चीन सीमा पर बिहार रेजिमेंट की तैनाती क्यों, जानिए इसका इतिहास और खासियत
लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच झड़प के बाद बिहार रेजिमेंट काफी चर्चा में है। इस हिंसक झड़प में शहीद 20 सैन्य कर्मियों में अधिकांश बिहार रेजिमेंट से ही जुड़े हुए थे।
अंशुमान तिवारी
नई दिल्ली: लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन के बीच झड़प के बाद बिहार रेजिमेंट काफी चर्चा में है। इस हिंसक झड़प में शहीद 20 सैन्य कर्मियों में अधिकांश बिहार रेजिमेंट से ही जुड़े हुए थे। शहादत देने वालों में बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू भी शामिल हैं। चीन सीमा पर तैनात की गई बिहार रेजिमेंट की अलग ही खासियत है। इस रेजिमेंट का इतिहास जांबाजी और शौर्य से भरा हुआ है। सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर कारगिल युद्ध में विजय की गाथा लिखने तक इस रेजिमेंट योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
रेजिमेंट से जुड़े हैं विभिन्न प्रदेशों के जवान
इस रेजिमेंट का नाम बिहार से जुड़ा होने के कारण कई लोगों को यह गलतफहमी होती है कि इसमें सिर्फ बिहार के लोग ही चुने जाते हैं जबकि सच्चाई यह है कि इस रेजिमेंट से विभिन्न प्रदेशों के जवान जुड़े हुए हैं। चीन के साथ हिंसक झड़प में शहीद कर्नल संतोष बाबू तेलंगाना के रहने वाले थे मगर फिर भी वे इस रेजिमेंट से जुड़े हुए थे। इस हिंसक झड़प में शहीद बिहार रेजिमेंट के कई जवान भी दूसरे प्रदेशों के रहने वाले हैं।
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जटिल स्थितियों का मुकाबला करने में सक्षम
बिहार रेजिमेंट के बारे में कहा जाता है कि इससे जुड़े जवान किसी भी स्थिति का मुकाबला करने में सक्षम होते हैं। इस कारण उन्हें जटिल और दुर्गम परिस्थितियों वाले इलाकों में तैनात किया जाता है। गलवान घाटी के अलावा कुछ अन्य दुर्गम इलाकों में भी बिहार रेजिमेंट के जवानों की तैनाती की गई है।
जवान इस तरह खुद में भरते हैं जोश
इस रेजिमेंट का मुख्य वाक्य है जय बजरंगबली और बिरसा मुंडा की जय। बिहार रेजिमेंट के जवान इस वाक्य का उच्चारण करके खुद को जोश से भरते हैं और फिर दुश्मनों को जमीन सुंघा देते हैं। इस रेजिमेंट का इतिहास प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा करने से भरा हुआ है।
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कारगिल युद्ध में लिखी विजय की गाथा
अपने गठन के बाद इस रेजिमेंट को तीन अशोक चक्र और एक महावीर चक्र दिया जा चुका है। 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारत की विजय गाथा लिखने में इस रेजिमेंट का बड़ा योगदान रहा है। कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन गुर्जन गुरजिंदर सिंह सूरी को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
उरी में लिया पाक आतंकियों से मोर्चा
रेजिमेंट के जवानों ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ मोर्चा संभाला था। पाकिस्तान से आए आतंकियों से लोहा लेते हुए रेजिमेंट के 15 जवानों ने शहादत दी थी। इस घटना में 17 जवान शहीद हुए थे जिनमें सर्वाधिक 15 बिहार रेजिमेंट से जुड़े हुए थे। 2008 में मुंबई में हुए बड़े आतंकी हमले में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन भी बिहार रेजिमेंट से जुड़े हुए थे। वे बिहार रेजिमेंट से प्रतिनियुक्ति पर एनएसजी में गए थे।
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पाक ने इसी रेजिमेंट के सामने किया था सरेंडर
बिहार रेजिमेंट का गठन 1941 में किया गया था। उस समय 11वीं टेरिटोरियल बटालियन, 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट को नियमित करके नई बटालियनों का गठन किया गया था। इस रेजिमेंट ने दूसरे विश्व युद्ध में भी हिस्सा लिया था। बांग्लादेश युद्ध के दौरान भी बिहार रेजिमेंट के जवानों ने अपने शौर्य का प्रदर्शन किया था। युद्ध के दौरान जब रेजिमेंट के वीर जवानों की गोलियां कम पड़ गईं तो उन्होंने संगीनों से ही कई पाकिस्तानियों को मार डाला था। पाकिस्तान के 96000 सैनिकों ने उस युद्ध में बिहार रेजिमेंट के सामने ही आत्मसमर्पण किया था।
दानापुर में है रेजिमेंट का मुख्यालय
बिहार रेजिमेंट का मुख्यालय बिहार की राजधानी पटना के पास स्थित दानापुर में है। इसे देश का दूसरा सबसे बड़ा कैटोनमेंट माना जाता है। 1941 में अपने गठन के बाद से ही इस रेजिमेंट ने देश की हर जरूरत के समय अपनी जांबाजी और शौर्य से हर किसी का दिल जीता है और देश के लिए शहादत देकर अपनी रेजिमेंट का गौरव बढ़ाया है।