रहस्य बने सुभाष चंद्र बोसः जीवन से जुड़ी हैं ना जाने कितनी परतें, पर्दा उठेगा पुस्तक से

अलग-अलग देशों की आला खुफिया एजेंसियों ने अपने तरीकों से इस तारीख से जुड़ी सच्चाई को खंगालने की कोशिश की. कुछ स्वतंत्र जांच भी हुई. कई देशों में हजारों पेजों की गोपनीय फाइलें बनीं. तमाम किताबें लिखीं गईं. रहस्य ऐसा जो सुलझा भी लगता है और अनसुलझा भी.

Update: 2020-11-08 13:25 GMT
Book review: Subhash whose life is related, not knowing how many layers of mystery

रत्ना

आजादी की लड़ाई के दौरान देश के शीर्ष नेताओं में थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में उनके निधन की खबर आई. लेकिन इसके बाद लगातार ये खबरें भी आती रहीं कि वो जिंदा हैं. ये दावे 80 के दशक तक होते रहे. ऐसा लगता है कि नेताजी का जीवन ना जाने कितनी ही रहस्य की परतों में लिपटा हुआ है.

अनसुलझे रहस्य

अलग-अलग देशों की आला खुफिया एजेंसियों ने अपने तरीकों से इस तारीख से जुड़ी सच्चाई को खंगालने की कोशिश की. कुछ स्वतंत्र जांच भी हुई. कई देशों में हजारों पेजों की गोपनीय फाइलें बनीं. तमाम किताबें लिखीं गईं. रहस्य ऐसा जो सुलझा भी लगता है और अनसुलझा भी.

दरअसल जापान से ये खबर आई कि 18 अगस्त 1945 को दोपहर ढाई बजे ताइवान में एक दुखद हवाई हादसे में नेताजी नहीं रहे. हालांकि हादसे के समय, दिन, हकीकत और दस्तावेजों को लेकर तमाम तर्क-वितर्क, दावे और अविश्वास जारी हैं.

परिवार को यकीन रहा

इसी सब पहलुओं को उजागर करती सुभाष बोस पर एक नई किताब आई है. उसका नाम है सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा. इसके लेखक हैं संजय श्रीवास्तव. सुभाष के निधन को लेकर पूरा बोस परिवार तक बंटा हुआ है. परिवार के एक हिस्से ने हमेशा माना कि सुभाष जीवित हैं और वो लौटेंगे. उस हिस्से ने रैंकोजी मंदिर में उनकी अस्थियों को भी स्वीकार नहीं किया.

इसीलिए वो अस्थियां कभी ससम्मान भारत लाई नहीं गईं. शुरू में उनके बड़े भाई शरत चंद्र बोस को भी लगा कि उनके छोटे भाई की मृत्यु हो चुकी है लेकिन बाद में उन्हें कुछ ऐसी जानकारियां मिलीं कि उन्होंने दावा किया कि उनका भाई जीवित है और जल्द लौटेगा. शरत ने सुभाष के निधन की सच्चाई जानने के लिए जापान, बर्मा (अब म्यांमार) की यात्राएं कीं.

सुरक्षित होने का यकीन

उनके इस दावे के बाद देश में लोग मानने लगे जापान ने विमान हादसे की खबर फैलाकर सुभाष को कहीं सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया. देश के आजाद होने के बाद कोई उन्हें स्वदेश लौटने से नहीं रोक सकेगा.

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आमतौर पर माना जा रहा था कि जापानी विमान ने उन्हें मंचूरिया की सोवियत संघ के लगती सीमा पर उतारा. वहां से वो सुरक्षित उस धरती पर चले गए, जो मित्र सेनाओं की पकड़ से दूर थी. जब आजादी के बाद नेहरू मंत्रिमंडल गठित होना था तो अक्सर ये सवाल नेहरू और सरदार पटेल से प्रेस कांफ्रेंस में पूछा जाता था कि अगर सुभाष लौट आए तो सरकार में उन्हें कौन सी जगह मिलेगी.

सुभाष लापता

देश आजाद हो गया. नेताजी नहीं आए. लेकिन ना जाने कहां-कहां से उनके देखे जाने की खबरें आने लगीं. लोगों को लग रहा था कि सरकार को मालूम है कि सुभाष कहां हैं लेकिन वो इसकी कोई जानकारी नहीं दे रही है. बहुत से लोगों को ये भी लगता था कि सुभाष ने सोवियत संघ से नेहरू को चिट्ठी लिखकर बताया है कि वो किस हाल में हैं और कहां हैं. तरह - तरह की बातें देशभर में नेताजी को लेकर फैलने लगीं थीं. तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं होती रहीं.

सुभाष के जिंदा होने का यकीन

सरकार को सुभाष के नहीं लौटने का कसूरवार मानने वालों की कमी नहीं थी. ये भी माना गया कि ब्रिटेन सरकार के दबाव में सुभाष को सोवियत संघ से रिहाई में दिक्कत आ रही है. उस समय ना जाने कैसे भारत में ज्यादातर लोग मानने लगे कि हो ना हो नेताजी सोवियत संघ में ही हैं. देश में कोई ये मानने को तैयार ही नहीं था कि नेताजी का निधन हवाई हादसे में हो चुका है.

जापानी जांच में छेद

भारत के अनुरोध पर जापान सरकार ने अपनी शुरुआती जांच रिपोर्ट भारत सरकार को भेजी. उसमें कहा गया था कि तायहोकु में प्लेन क्रैश होने के बाद सुभाष बोस का वहीं के मिलिट्री हास्पिटल में ले जाने पर रात तक उनका निधन हो गया. लेकिन इस प्रकरण की जब जांच की जाने लगी तो उसमें बहुत से छेद नजर आए. किसी भी तरह के दस्तावेज का नहीं मिलना एक बड़ी वजह है जिससे लगता है कि सुभाष का निधन विमान हादसे में नहीं हुआ.

जांच आयोग और सच्चाई

नेहरू सरकार ने 1956 में नेताजी के हवाई हादसे में निधन की सच्चाई की जांच करने के लिए तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया. आयोग का निष्कर्ष था कि नेताजी का निधन हवाई हादसे में ही 18 अगस्त 1945 को हुआ. आयोग के सदस्य सुरेश चंद्र रिपोर्ट से सहमत नहीं थे.

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उन्होंने असहमति रिपोर्ट जारी की. जिसमें कहा गया कि सुभाष हवाई हादसे में नहीं मरे बल्कि जापान ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया. जस्टिस मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट भी यही कहती है कि सुभाष हवाई हादसे में नहीं मरे. तो फिर सुभाष के जीवन का क्या हुआ. वो कहां गए. कहां रहे.

रहस्य और कौतूहल

सुभाष की अज्ञात यात्रा बहुत रहस्यपूर्ण और कौतुहल लिए हुए है. इस किताब में उसी यात्रा की ओर देखने की कोशिश है. कुछ सवाल आपके जेहन में लगातार सुभाष बोस और उनके जीवन को लेकर उठते होंगे, इस किताब ने उसका जवाब देने की कोशिश भी की है. नेताजी के निधन की जांच के संबंध में बने तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट को किताब में विस्तार से देखा गया है, जो उन पर लिखी किसी किताब में इससे पहले नहीं रहा.

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किताब ये भी बताती है कि आखिर कौन थे गुमनामी बाबा. इसके अलावा शॉलमारी आश्रम के स्वामी शारदानंद और मध्य प्रदेश के चर्चित ज्योतिर्देव के भी सुभाष बोस होने का दावा किया गया.

इस विवाद का पटाक्षेप जापान की राजधानी तोक्यो के रैंकोजी मंदिर में रखी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों की डीएनए जांच से हो सकता है. लेकिन ऐसा हो क्यों नहीं रहा. किताब सहज और प्रवाहपूर्ण भाषा में है. सुभाष के बारे में बहुत सी नई बातें इस किताब के जरिए सामने आती हैं.

किताब - सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा

लेखक - संजय श्रीवास्तव

पृष्ठ - 288

मूल्य - 300 रुपए पेपर बैक

प्रकाशक - संवाद प्रकाशन, मेरठ

-रत्ना श्रीवास्तव

सी-623, फिफ्थ एवेन्यू,

गौर सिटी वन

नोएडा एक्सटेंशन

ग्रेटर नोएडा वेस्ट

जिला - गौतमबुध नगर

पिन -201318

(उप्र)

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